Khud Ko Khush Rakho: Aap Leader Ho
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About this ebook
इस पुस्तक, 'ख़ुद को ख़ुश रखो - आप लीडर हो', के लेखक गंवरु प्रमोद (प्रमोद कुमार) एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं. गंवरु प्रमोद जी की सिद्धहस्तता काव्य, औपन्यासिक गद्य, समीक्षा, विस्तृत निबंध में है. इनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकें हैं- 'सफलता के ग्यारह अध्याय'; 'कर्म के ग्यारह अध्याय'; 'उत्सर्ग'; 'उ-उछंग'; 'अश्रु-समंदर' एवं उसके अंग्रेजी संस्करण 'सी ऑफ टियर्स'; 'सीतायण' महाकाव्य; 'स्वाभिप्रेरित - एकलव्य' महाकाव्य; 'रामराज्य की परिकल्पना'; '7.4 (सेवन पॉइंट फोर)'; 'कासृति हिंदुस्तान की'; ' 'कर्मवीर' काव्य-संग्रह; 'टोही टोकरी'. प्रस्तुत पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण है- 'एंचेट योरसेल्फ - यू आर ए लीडर'.
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Book preview
Khud Ko Khush Rakho - Ganvru Pramod (Pramod Kumar)
ISBN : 978-9394920910
Published by :
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
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प्रथम संस्करण : दिसम्बर 2022 – पेपरबैक
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
——————————————————————-
First Edition : Dec. 2022 – Paperback
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Copyright © प्रमोद कुमार
यह एक काल्पनिक कृति है। नाम, पात्र, व्यवसाय, स्थान और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना के उत्पाद हैं या काल्पनिक तरीके से उपयोग किए जाते हैं। वास्तविक व्यक्तियों, जीवित या मृत, या वास्तविक घटनाओं से कोई भी समानता विशुद्ध रूप से संयोग है। यह पुस्तक इस शर्त के अधीन बेची जाती है कि इसे प्रकाशक की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी रूप में मुद्रित, प्रसारित-प्रचारित या बिक्रय नहीं किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में इस पुस्तक के किसी भी भाग को पुनर्विक्रय के लिए फोटोकॉपी नहीं किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार के लिए इस पुस्तक के मुद्रक/प्रकाशक/वितरक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। सभी विवाद मध्यस्थता के अधीन हैं, किसी भी तरह के कानूनी वाद-विवाद की स्थिति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत ही होगा।
इस पुस्तक के कुछ आदर्श वाक्य / अनुच्छेद
वक्त से बातें कीजिएगा तो वक्त निश्चित रूप से एकदिन आपका होगा.
(अध्याय-3)
काल को ज़्यादा उत्सव और ख़ुशी मंजूर नहीं होती. उत्सव और ख़ुशी की नाबालगी काल को पसंद हैं लेकिन तब तक जब तक कि उत्सव और ख़ुशी तनिक भी चूँ-चा न करे.
(अध्याय-32)
अपनी ख़ुशी तथा पूरे परिवार, समाज एवं देश की खुशियों के आकार, प्रकार, क्षमता आदि का निर्धारण करने वाले व्यक्ति हमेशा तिरंगा की भांति लहराते रहते हैं.
(अध्याय-39)
एक फटा-चिटा कपड़ा पहने पोस्ट ग्रेजुएट लड़का रोड क्रॉस करते हुए स्कूली बच्चों को उसे सकुशल रोड पार करा देता है. आप जो खड़े-खड़े उसकी ओर निहारते हैं वह फ़जूल का निहारते हैं. वह व्यक्ति समाज का सच्चा लीडर है. वह स्कूली बच्चों के भविष्य का लीडर है. अपने-अपने फील्ड का लीडर कोई भी व्यक्ति हो सकता है. लेकिन देश और समाज का सच्चा लीडर वही होता है जो बिना लोभ-मोह के दूसरों की मदद करता है.
(अध्याय-33)
मन में लोभ और मोह रूपी मोतियों की लड़ियाँ हमेशा लटकती रहतीं हैं। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उन लड़ियों की तरफ, किसी भी दशा मे कभी, आकर्षित हो पाते हैं या नहीं।
(अध्याय-49)
ताकतवर लोग ही अपनी गलती को स्वीकार कर सकते हैं। कमजोर लोगों मे ऐसी ताकत ही कहाँ कि वे अपनी गलती को कभी स्वीकारे।
(अध्याय-10)
अगर आपको अपने लक्ष्य को पाने के लिए दुनिया की सारी चीजों के प्रति विरक्ति और अपने लक्ष्य को पाने के प्रति अनुरक्ति हो जाए तो समझ लीजिए कि सफलता आपको अवश्य मिलेगी.
(अध्याय-2)
आकाश रूपी छत के नीचे यदि सबकी उन्नति-चटाई बिछा दिए तो समझिए कि दुनिया की बुराइयों से लड़ते-लड़ते आख़िरकार आप जीत गए।
(अध्याय-51)
लोगों के दिलों की धड़कनों को तेज करनेवाली तरकीबें तो कोई होतीं नहीं जो आपको रातोरात प्रसिद्ध बना दे। लोक सिद्धि की कार्डियोवेस्कुलर टेक्निक अथवा तरकीब को आज तक किसी ने भी आविष्कार नहीं कर पाया। न तो कोई कार्डियोलॉजिस्ट बता पाया कि लोगों के दिलों पर राज कैसे किया जा सकता है और न ही कोई माइक्रोबायोलॉजिस्ट बता पाया कि लोक-सिद्धियाँ कहाँ से आतीं है।
(अध्याय-18)
अच्छे लोगों को बदनाम करने से बचो। अच्छा आदमी आपका कटु आलोचक भी हो सकता है और अच्छा आदमी आपका गुणगान करने वाला भी हो सकता है। आलोचक बिना साबुन और पानी के आपके चाल-चरित्र को सुधारकर आपको साफ-सुथरा बना देता है।
(अध्याय-50)
विषय-सूची
आत्मकथ्य
दोस्तों! यह पुस्तक ख़ासकर बच्चों / युवाओं के लिए लिखी गई है। युवावर्ग इसे पढ़कर थोड़ा भी लाभान्वित हो गए तो मैं अपने-आपको धन्य समझूंगा। मैं तो चाहता हूँ कि आप सभी, ख़ासकर युवावर्ग, इसे पढ़ें और पढ़कर अपने-आपको गौरवान्वित महसूस करें। क्योंकि यह पुस्तक आपके आत्म-गौरव के लिए हीं लिखी गई है।
आत्मकथ्य के अंतर्गत मैं, अति संक्षिप्त मे, तीन चौपाई और दो दोहों के माध्यम से अपने विचार को व्यक्त करना चाहूँगा। मेरे युवा मित्रों! इसे पढ़िए, समझिए और आत्मसात कीजिए–
थककर मग मे बैठे जोई।
सो सार सौभाग्य सुख खोई।।
काँट भरा पथ पावै जोई।
चाँद सुरुज सम चमके सोई।। |1|
(अर्थात् अपने मार्ग मे जो व्यक्ति थक-हारकर बैठ जाता है उसका भाग्य / सौभाग्य नष्ट हो जाता है। जो व्यक्ति काँटों से भरा हुआ अथवा कष्ट से भरा हुआ पथ / मार्ग पाता है या कष्ट-मार्ग पर चलता है वह चाँद, सूर्य की भांति चमकता है)
जो जग ठठन हिम्मत जुटावै।
वही निज ख़्वाब सच कर पावै।।
जिसे सिरफ चकाचौंध भावै।
वह सिरफ, स्वप्न मे खो जावै।। |2|
(अर्थात् जो व्यक्ति कष्टमयी दुनिया मे ठठने की हिम्मत जुटाता है वही अपना ख्वाब /सपना सच कर पाता है। जिस व्यक्ति को सिर्फ दुनिया का चकाचौंध पसंद है वह कुछ भी हासिल नहीं कर पाता और सपनों मे खोए रहता है)
जो रहै, किसी अन्य भरोसे।
भाग्य भी उसको ख़ूब कोसे।।
जो निज भूल अन्य पे थोपे।
वह निज पाद मे छुरा घोंपे।। |3|
(अर्थात् जो व्यक्ति अन्य लोगों के भरोसे रहता है उसे उसका भाग्य भी ख़ूब कोसते रहता है। जो व्यक्ति अपनी भूल या अपनी गलती किसी अन्य व्यक्ति पर थोपता / डालता है वह अपने पैरों पर छुरा ख़ुद घोंपता है। मतलब वह अपना ही नुकसान करता है)
जो देखै कष्ट सँसार, न फँसै कभि मझवार।
जो बनै जग मे कहार, न डुबै दुख मझधार।। |1|
(अर्थात् जो व्यक्ति कई कष्ट की दुनिया देख लेता है वह कभी असहाय स्थिति मे नहीं फँसता। जो व्यक्ति इस दुनिया मे कहार, मतलब दूसरों का भार ढोनेवाला, बनता है; वह कभी दुख रूपी सागर के मझधार मे नहीं डूबता)
जो लखे भीतरी भोर, न