Yatharth
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Book preview
Yatharth - Rao Arun Yadav
भारत देखा
गिलगित से लेकर गारो तक
लेह के हिम पठारों तक
उठती एक आवाज प्रखर
नदियाँ, झरने, उन्मुक्त शिखर
लहलहाते खेत और वन उपवन
गुंजायमान आजाद गगन
कश्मीर शीश, उच्च है माथा
सिन्धु वेग संग गाती गाथा
हृदय हिमाचल हिम प्रदेश
कुल्लू कांगड़ा सभ्यता विशेष
पंचनद अपना आशीष बहातीं
पंजाब, हरियाणा में फसलें लहराती
केदारनाथ गिरिपद का प्रहरी
शिवशक्ति स्रोत गंगा यहाँ ठहरी
बुंदेल-विंध्य विशाल उदर से
जन बल प्रकट इनके प्रवर से
गुजरात, मराठा, राजस्थानी
गांधी, शिवाजी, राणा की अमर कहानी
सप्त बहनें पूरब में मुस्कातीं
बीहू के संगीत सुनातीं
प्रकाश बिम्ब नालंदा धरती
माँ दुर्गा बंग की रक्षा करती
छत्तीसगढ, उड़ीसा और बोकारो
छिपे खनिज भंडार हजारों
जंघा सा जटिल दक्षिण शेष
घने आरण्य चंदन विशेष
तमिल, केरला अंगद अडिग पद
पग चूम कर सागर बहता गदगद
एक राष्ट्र इन्द्रधनुष सरीखा
धन्य धन्य जो भारत देखा ।
अंत तक
निराशा में आशा का
एक दीप ले आया हूँ,
क्यों डरी हुई है जिंदगी ?
मैं तुझे बचाने आया हूँ !
सुन्न पड़े उदास मन में
शोर मचाने आया हूँ,
दौड़ मेरे साथ वहाँ तक
जिस मुकाम का पता लाया हूँ !
रोष, लालसा का बंधन फेंक
मेरे साथ तू चल !
अनगिनत, अनसुलझे सवालों का
ले ले मुझसे सारा हल,
उफनती लहरों सा जज्बा
चुरा कर लाया हूँ,
जकड़ ले बाहों को कसकर
तुझे बहाने आया हूँ !
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी पर
काँटों की चादर मत देख,
कदम मिला साथ चल
मिल जायेंगी राह अनेक,
अमावस के अन्धेरे को
फटकार कर आया हूँ,
मेरी चमक देख जिंदगी,
खुद का सूरज लाया हूँ !
निशब्द, निरूत्तर, निराशाओं की
कमर मैंने तोड़ दी,
भय, बाधा, विपदा ने डरकर
राह मेरी छोड़ दी,
मुस्कुरा कर आ गले लग जिंदगी,
खुशियां बटोर लाया हूँ,
मत मुड़ पीछे, मत देख उसे
जिसे जीत मैं आया हूँ !
जलियांवाला
ले आया बाग की फिर वही राख
जो अगिनत मासूमों के लहू में सनी थी
असंख्य गोलियों की बौछार
एक फिरंगी के अहंकार से बनी थी,
हाँ यह जलियांवाला बाग है
जो हर रात मेरे सपने में आता है
झकझोर कर मेरे सुषुप्त मन को
गहरी नींद से जगाता है ।
बद्दिमाग डायर और दम्भी क्राउन का
रचा वह सारा खेल था
बैसाखी त्योहार सन् 1919
दिन तेरह अप्रैल था,
हुकूमत का फरमान था
लोग एकजुट न हो सकें
चारदीवारी में
महिला, बच्चे, नौजवानों और बुजुर्गों की
भावनाओं का मेल था,
काल सा एक क्रूर जनरल
इतिहास को खून में
रंगने को बेचैन था।
निहत्थों को घेर कर गोरों ने
अन्याय का अध्याय रचा
बंद हाते में अचानक
गोलियों की बौछारों से
मौत का तांडव मचा,
सिन्दूर लहू में मिला
सुहाग धरती पर गिरा
मासूमों के सामने
एक निर्दयी बन्दूक ताने खड़ा,
व्यास में जो बह रही
वह खून की अब धार थी
हिमालय का हृदय