Diana : Ek Romanchak Gatha
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डायना का जीवन परी-कथा की तरह एक ऐसी राजकुमारी का जीवन था जिसका जन्म एक कमल के फूल पर हुआ था और कमल के उसी फूल पर रोते-रोते उसके जीवन का अन्त भी हो गया था ।
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Diana - Prakash Nagaich
सुन्दरी
ब्रिटेन के राजवंश की परम्पराएं
31 अगस्त, 1997 को वेल्स की राजकुमारी डायना की फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक कार-दुर्घटना में अचानक ही मृत्यु हो गई । इस दुःखद समाचार को पाकर सारा संसार स्तब्ध रह गया । सन् 1961 में जन्मी डायना का सन् 1981 में यानी बीस वर्ष की आयु में ब्रिटेन के प्रिंस ऑफ वेल्स जो अपनी माता महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बाद ब्रिटिश सिंहासन के उत्तराधिकारी थे, के साथ विवाह हुआ था । लेकिन विवाह के सोलह वर्ष बाद ही केवल 36 वर्ष की छोटी आयु में राजकुमारी डायना की यह दर्दनाक मौत विश्व के उन करोड़ों दीन-दुखियों, असहायों, भयंकर रोगों से ग्रस्त रोगियों, और अनाथ बच्चों के लिए एक ऐसा गहरा घाव है जिसे वे कभी भूल नहीं पायेंगे । ब्रिटेन के राजघराने से सम्बन्धित परिवार में जन्म लेकर ब्रिटेन के भावी सम्राट की पत्नी बनकर भी राजकुमारी डायना अपने आपको सामान्य नारी ही समझती रहीं । बचपन में सहे दुःखों को बकिंघम पैलेस के राजसी वैभव में रहने के बावजूद कभी नहीं भूल पाईं । दीन-दुखियारों के लिए जिनकी आंखों के आंसू कभी सूख नहीं पाए और मानव कल्याण के लिए जिस समय उसकी अत्यधिक आवश्यकता थी, मौत के बेरहम हाथों ने उन्हें छीन लिया ।
ब्रिटेन के युवराज चार्ल्स के साथ विवाह हो जाने के बाद राजकुमारी डायना इंग्लैण्ड ही नहीं विश्वभर के पत्र-पत्रिकाओं का विशेष समाचार बनी रहीं । राजकुमार चार्ल्स और उनके मित्रों ने अपने कालेकारनामों को छिपाने के लिए राजकुमारी डायना के चरित्र पर जी भर कर कीचड़ उछाला । डायना के पीछे फोटोग्राफरों और पत्रकारों की एक फौज तैनात कर दी । डायना जहां भी जातीं राजकुमार चार्ल्स की यह फौज निरन्तर उनका पीछा करती रहती ।
अगर हम गम्भीरता से डायना पर राजकुमार चार्ज की इस फौज द्वारा लगाए गए आरोपों पर मनन और चिन्तन करें तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि राजकुमारी डायना पर जो भी आरोप लगाये गए वे सभी उसके विद्रोह की परिणति थे । स्त्री और पुरुष के समान अधिकारों का ढिंढोरा पीटने वाले और अपने आपको संसार का सर्वाधिक सभ्य तथा सुसंस्कृत कहने वाला देश ब्रिटेन ही नहीं, पूरा यूरोप इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर पाया कि ब्रिटेन के संविधान के अनुरूप राजकुमार चार्ल्स को जो अधिकार प्राप्त थे, वे ही अधिकार राजकुमारी डायना को भी प्राप्त थे । ब्रिटेन के संविधान ने किसी पति को अगर यह अधिकार दे रखा है कि एक 'पत्नी के होते हुए भी वह परायी स्त्रियों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर सकता है तो एक पत्नी को यही अधिकार प्राप्त क्यों नहीं है?
ब्रिटेन की पार्लियामेण्ट के कई सदस्यों को मन्त्रिपरिषद से इसलिए त्याग-पत्र देना पड़ा कि उनके किसी परायी स्त्री के साथ यौन सम्बन्ध थे । लेकिन राजपरिवार के व्यक्तियों पर यही कानून लागू क्यों नहीं है? क्या यह दोहरी नीति संसार के पार्लियामेण्ट्री शासन, समता, समानता और संविधान का ढिंढोरा पीटने वाले ब्रिटेन के लिए न्याय संगत है?
राजकुमारी डायना ने राजकुमार चार्ल्स की अनगिनत प्रेमिकाओं से दुखी होकर अगर पर-पुरुषों के साथ मित्रता की तो इसमें अस्वाभाविक क्या था? यदि ब्रिटेन के एक परिवार की महिला के गलत आचरण से राजपरिवार बदनाम होता है तो क्या राजघराने के पुरुषों की अनैतिकता इस राजवंश की प्रतिष्ठा और सम्मान में चार चाँद लगा देती है?
इनसान हाड़-मास का बना एक जीता-जागता पुतला है । जब एक पति यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उसके होते हुए उसकी पत्नी किसी पर-पुरुष के साथ किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध रखे तो एक पत्नी से वह यह अपेक्षा कैसे कर सकता है कि वह अपनी पत्नी की आंखों के सामने ही परायी स्त्रियों के साथ अनैतिक सम्बन्ध रखे ।
लेकिन राजघराने के स्त्री-पुरुषों के अनैतिक सम्बन्धों की परम्परा आज की परम्परा नहीं है, बहुत प्राचीन परम्परा है । यह परम्परा तभी से चली आ रही है जब से इंग्लैण्ड की राजशाही ने जन्म लिया है ।
सोलहवीं शताब्दी से ही इंग्लैण्ड का राज परिवार अपने अनैतिक सम्बन्धों के लिए कुख्यात रहा है ।
सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स द्वितीय, उनकी महारानी बारबरा, जार्ज चतुर्थ और महारानी कैरोलीन, महारानी एलिजाबेथ प्रथम आदि की प्रेम और वासना की कथाएं अतीत की धरोहर बन चुकी हैं । अठारहवीं शताब्दी के आते-आते ब्रिटिश साम्राज्य जब बड़ी तेजी से संसार के कोने-कोने में फैलता जा रहा था, इंग्लैण्ड ने अपने-आपको संसार का सर्वाधिक सभ्य देश घोषित कर दिया और सभ्यता की आड़ में दूसरे देशों को सभ्य बनाने के नाम पर उनकी स्वाधीनता को अपनी दासता की जंजीरों में जकड़ता चला गया ।
अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के शासन काल को ब्रिटेन के सर्वाधिक अभ्युदय का काल माना जाता है । इसी काल में यह कहावत प्रसिद्ध हुई कि ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता । और इसी के साथ ब्रिटेन को विश्व का सर्वाधिक सभ्य देश होने का ढिंढोरा इतने जोर-शोर से पीटा जाने लगा कि पराधीन देशों ने इस शोर से तंग आकर, विवश होकर स्वीकार कर लिया कि हां, ब्रिटेन संसार का सबसे अधिक सभ्य देश है ।
लेकिन ब्रिटेन का राज परिवार कितना सभ्य और सुसंस्कृत था इसके सम्बन्ध में संसार ने कभी छानबीन नहीं की क्योंकि किसी पराजित को यह अधिकार कहां था कि विजेता के दोषों पर उंगली उठाए!
विक्टोरियन युग में ब्रिटेन के राजपरिवार ही नहीं सामान्य जनता में भी जो नैतिक मान्यताएं स्थापित हुईं विचित्र थीं । इस युग में प्रेम और नैतिकता के विचित्र मानदंड स्थापित किये गए । राजघराने की कुंवारी लड़कियों को तो राज महल की प्राचीरों के बीच सख्त पहरे में रखा जाता था । उन पर राजपरिवार के पुरुषों तक की छाया नहीं पड़ने दी जाती थी, सामान्य पुरुष की बात तो बहुत दूर की बात थी । वो अपनी इच्छा से राज महल से निकलकर आजादी के साथ न तो कहीं आ-जा सकती थीं, और न किसी पुरुष के साथ कोई सम्बन्ध रख सकती थीं । लेकिन जिन लड़कियों के विवाह हो जाते थे या जो लड़कियां राजपरिवार की बहू बनकर राजमहल में आती थीं उन पर ये पाबन्दियां लागू नहीं होती थीं । वे स्वेच्छा से जहां भी चाहें, जा सकती थीं । पति के होते हुए परपुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित कर सकती थीं । समाज के विशिष्ट वर्ग के पुरुषों के साथ प्रेम-सम्बन्ध, जो वास्तव में यौन-सम्बन्ध होता था, स्थापित करने के लिए वे स्वतन्त्र थी । राजघराने की विवाहित स्त्रियों का परपुरुषों के साथ यौन-सम्बन्ध अनैतिक नहीं माना जाता था । इसकी सबसे बड़ी मिसाल- महारानी विक्टोरिया का अपने साईस जॉन ब्रॉउन से जितना घनिष्ठ सम्बन्ध था उतना अपने पति प्रिंस अलबर्ट से नहीं था ।
जॉन ब्रॉउन को महारानी विक्टोरिया के पति अलबर्ट ने एक खिदमतगार के रूप में नियुक्त किया था । महारानी विक्टोरिया घूमने-फिरने और सैर-सपाटे की बेहद शौकीन थीं । पहाड़ी इलाकों में घूमना और वहां खेमों में रहना उन्हें बेहद पसन्द था । उस समय जॉन ब्रॉउन निरन्तर उनके साथ रहता था । महारानी विक्टोरिया, को घुड़सवारी का बेहद शौक था । जॉन बचन उन्हें सहारा देकर घोड़े पर सवार कराता था, घोड़े से उतारता था। पर्वतीय इलाकों में मच्छरों आदि के काट लेने पर उनके शरीर की मालिश किया करता था और इस प्रकार विक्टोरिया के पति अलबर्ट के बाद जॉन ब्रॉउन ही एक मात्र ऐसा व्यक्ति था जिसके हाथों से महारानी विक्टोरिया के शरीर का कोई भी अंग अछूता नहीं रहा था । और इसी स्पर्श ने जॉन ब्रॉउन और महारानी विक्टोरिया के बीच की शाही दूरियां समाप्त कर दी थीं ।
महारानी विक्टोरिया के पुत्र सम्राट एडवर्ड सप्तम के काल में भी राजपरिवार की स्त्रियां समाज के विशिष्ट वर्गों के पुरुषों के साथ यौन-सम्बन्ध स्थापित करने के लिए पूर्ण रूप से स्वतन्त्र थीं । इस यौन-सम्बन्ध को अनैतिक नहीं माना जाता था और न सामाजिक कलंक माना जाता था । फिर भी राजघराने के पुरुषों के अतिरिक्त समाज के अन्य प्रतिष्ठित पुरुष विधवा और तलाकशुदा स्त्रियों से दूर रहने का प्रयत्न करते थे । क्योंकि इंग्लैण्ड के सभ्य समाज द्वारा किसी प्रतिष्ठित पुरुष के किसी तलाकशुदा या विधवा स्त्री के साथ इस प्रकार के सम्बन्धों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था ।
जिन दिनों महारानी विक्टोरिया राजसिंहासन पर बैठी ही थीं और उनका विवाह प्रिंस अलबर्ट के साथ हो गया था, वह फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय से प्रेम करती थीं, उनके इस प्रेम-सम्बन्ध से सारा राजपरिवार परिचित था । जॉन ब्रॉउन के उनके जीवन में आने से पहले भी उनके कई पुरुषों के साथ प्रेम-सम्बन्ध थे ।
महारानी विक्टोरिया के बाद जब उनका बड़ा बेटा एडवर्ड अलबर्ट सम्राट एडवर्ड सप्तम के नाम से इंग्लैण्ड के सिंहासन पर बैठा तो उसने अनेक विवाहिता स्त्रियों के साथ प्रेम-सम्बन्ध स्थापित किए । इन विवाहित प्रेमिकाओं में लिली लैगट्री सबसे अधिक विख्यात हुई थी ।
राजकुमार चार्ल्स की तरह प्रिंस एडवर्ड अलबर्ट भी उन दिनों केवल प्रिंस आफ वेल्स ही थे और अविवाहित थे जब उनकी पहली मुलाकात लिली लैगट्री के साथ हुई थी ।
इतिहास हमेशा अपने-आपको दोहराता रहता है । प्रिंस एडवर्ड अलबर्ट की लिली लैगट्री के साथ उतनी ही घनिष्टता थी जितनी घनिष्टता राजकुमार चार्ल्स और उनकी प्रेमिका फेमिला पार्कर वाउल्स से है । इन दोनों में अन्तर केवल इतना ही है कि लिली लैगट्री शादीशुदा थी जबकि फेमिला पार्कर वाउल्स अभी तक अविवाहित जीवन व्यतीत कर रही है । हालांकि आज उसकी उम्र पचास के आस पास है लेकिन उसे राजकुमार चार्ज से इतना गहरा प्रेम है कि अभी तक उसने- शादी नहीं की है । अगर बीच में डायना न आ गई होती तो राजकुमार चार्ल्स फेमिला के साथ विवाह जरूर कर लेते । और आज जबकि डायना इन दोनों के बीच से हमेशा-हमेशा के लिए दूर जा चुकी है, यह प्रेम कब प्रणय में परिवर्तित हो जाए कहा नहीं जा सकता ।
राजकुमारी डायना और राजकुमार चार्ल्स की वजह से जिस तरह आज ब्रिटिश राजघराने में तूफान आया हुआ है, उसी तरह का तूफान एडवर्ड अष्टम के समय में भी आया था । इस तूफान का कारण एडवर्ड अष्टम खुद थे । उनका एक अमरीकन लड़की वालिसा सिपंसन से प्रेम चल रहा था । इंग्लैण्ड के राजसिंहासन पर एडवर्ड अष्टम के रूप में आसीन होने वाले राजकुमार एडवर्ड का जन्म 28 जून, 1894 को हुआ था ।'
एडवर्ड अपने माता-पिता जार्ज पंचम और महारानी मेरी के सबसे बड़े पुत्र थे । बड़े होने के कारण एडवर्ड ही राजसिंहासन के उत्तराधिकारी थे । उनके माता-पिता उन्हें बहुत प्यार करते थे । उनका प्यार का नाम डेविड रखा गया था । राजकुमार एडवर्ड प्रिंस ऑफ वेल्स थे । उस समय ग्रेट ब्रिटेन का साम्राज्य समूचे विश्व में छाया हुआ था । लोग कहते थे ब्रिटिश राज का सूरज कभी डूबता नहीं है । राजकुमार एडवर्ड ने सारी दुनिया का दौरा किया था ।
डेविड देखने में बहुत खूबसूरत था । जो उसे देखता, देखता ही रह जाता । किशोर अवस्था तक आते-आते राजकुमार एडवर्ड उर्फ डेविड पर रूप व यौवन का अनोखा ज्वार आया। अनेकों नवयुवतियों की निगाहें राजकुमार एडवर्ड पर लगी हुई थीं । पर राजकुमार एडवर्ड के स्वभाव-में एक विचित्र बात यह थी कि उसे अपनी हम उस लड़कियों से ज्यादा अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों और महिलाओं में दिलचस्पी थी ।
राजकुमार एडवर्ड का पहला प्रेम लिबरल पार्टी के संसद सदस्य डुडली वार्ड की पत्नी फ्रेण्डा डुडली से हुआ था । सन् 1918 में प्रथम विश्व की बमबारी के दौरान बमबारी से बचने के लिए फ्रेण्डा और राजकुमार एडवर्ड ने एक ही स्थान पर शरण ली थी । वह दोनों एक कोने में छिपे थे । तभी फ्रेण्डा ने राजकुमार एडवर्ड की ओर प्रेम भरी निगाहों से देखा । डेविड की खुद की निगाहें भी इस संकट के समय किसी की तलाश में थीं । दोनों की निगाहें मिलते ही प्रेम का फूल खिल गया ।
सोलह साल तक राजकुमार एडवर्ड और फ्रेण्डा का प्रेम चला । फ्रेण्डा को पता था वह सारी उम्र राजकुमार एडवर्ड की प्रेमिका ही बनी रह सकती थी । उसकी पत्नी कभी नहीं बन सकती थी । क्योंकि ब्रिटिश राजपरिवार में विवाह के लिए कैंटबरी के फादर का कानून चलता था । इस कानून के मुताबिक राजपुरुष प्रथम तो राजपरिवार के अलावा किसी अन्य युवती से विवाहनहीं कर सकते थे । दूसरे, राजपरिवार का कोई भी व्यक्ति किसी तलाकशुदा महिला से कभी विवाह नहीं कर सकता था ।
फिर राजकुमार एडवर्ड तो राजगद्दी के सीधे उत्तराधिकारी थे । उनकी पत्नी ब्रिटेन की महारानी बनतीं, ऐसी स्थिति में तो यह विवाह हर तरह से असंभव था । इन सारी विपरीत परिस्थितियों के बीच भी दोनों प्रेमी एक दूसरे से मिलते-जुलते रहे । उनका प्रेम अमर हो गया । उनकी प्रेम-कहानियाँ घर-घर तक जा पहुँचीं । फ्रेण्डा ने राजकुमार एडवर्ड के प्रेम का छककर रसास्वादन किया । पर धीरे-धीरे उसने: राजकुमार एडवर्ड से अलग होना शुरू किया । उसका एक अन्य व्यक्ति से प्रेम हो गया । राजकुमार एडवर्ड भी धीरे-धीरे फ्रेण्डा से अपने आप विमुख होने लगे । तभी उनकी मुलाकात लेडी थेलमा फर्नेस से हुई । वह अमरीकन नागरिक थी । थेलमा फर्नेस किशोरावस्था से ही रंगीन मिजाज थी । जब वह 16 साल की उप की थी तब वह अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गयी थी । 21 साल की उम्र तक आते थेलमा एक एक कर दो व्यक्तियों के साथ ब्याह कर तलाक भी ले चुकी थी । इसके बाद थेलमा की मुलाकात विस्काउंट फर्नेस से हुई जिससे उसने शीघ्र ही तीसरा ब्याह कर लिया ।
राजकुमार एडवर्ड का विस्काउंट फर्नेस के यहाँ रोज का आना-जाना था जिससे उनकी निगाहें थेलमा से लड़ गईं । थेलमा तो खुद ही रंगीन मिजाज थी । दो-चार प्रेमी पाले रखना उसका स्वभाव था । राजकुमार एडवर्ड जैसा खूबसूरत और दिल फेंक नौजवान उसे मिल भी कहाँ सकता था! उसने राजकुमार एडवर्ड को अपने प्रेम-जाल में फँसा लिया । राजकुमार एडवर्ड के प्रेम के पर्चे एक मार फिर घर-घर में गूँजने लगे ।
खुद जार्ज पंचम और महारानी मेरी के हाथों के तोते उड़ने लगे । ब्रिटिश राष्ट्र पर संकट के बादल वैसे ही घिरे हुये थे, इस बार तो घात उनका पुत्र ही कर रहा था । दो बार की तलाकशुदा, अपने प्रेमी के साथ घर से भागी और तीसरी बार तलाकशुदा थेलमा फर्नेस राजकुमार एडवर्ड अष्टम की पत्नी कैसे बन सकती थी!
राजकुमार एडवर्ड की पत्नी और तीसरी प्रेमिका का स्थान लेने के लिए तो एक अन्य नवयुवती वालिसा का जन्म हो चुका था । वालिसा सिपंसन का जन्म 10 जून, 1890 को अमरीका के पेनसिलवानिया राज्य के ब्यूरिज सम्मिट शहर में हुआ था । माँ-बाप ने इस सुन्दर-सी बच्ची का नाम रखा वैस्सी वालिसा वारफील्ड ।
वैस्सी वालिसा जितनी खूबसूरत थी उतनी ही दुर्भाग्यशाली भी थी । अभी वह तीन-चार वर्ष की ही थी कि उसके पिता का देहांत हो गया । वालिसा की माँ के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि उनके प्रति उनके लिए विरासत में कुछ भी नहीं छोड़ गया था-सिवाय मुसीबतों के । मजबूरन उसने 1908 में दूसरा विवाह कर लिया ।
इस विवाह से वालिसा की जिंदगी पर कोई अच्छा असर नहीं पड़ा । उसकी शिक्षा का उचित प्रबंध नहीं था । उसका सौतेला पिता उसकी शिक्षा का खर्च उठाने को तैयार नहीं था । इस कारण भीषण गरीबी में वालिसा को अपना बचपन गुजारना पड़ा । जब वालिसा किशोरावस्था में थी तो उसके सौतेले पिता की भी मृत्यु हो गयी । माँ ने तीसरी बार सन 1926 में फिर ब्याह कर लिया । इस ब्याह तक वालिसा भरपूर जवान हो चुकी थी ।
उसने एक अमरीकन नौसैनिक लेफ्टीनेन्ट अर्लफील्ड स्पैंसर से ब्याह कर लिया । यह अर्लफील्ड स्पैंसर डायना का परदादा था । वालिसा और अर्लफील्ड स्पैंसर का विवाह पाँच साल चल पाया । दोनों के बीच तीन मतभेद हो चुके थे, दोनों ने तलाक ले लिया । जिन दिनों वालिसा के तलाक का मुकद्दमा चल रहा था, उन्हीं दिनों वालिसा की मुलाकात अर्नेस्ट आल्ड्रिच सिंपसन से हुई । अर्नेस्ट आल्ड्रिच सिंपसन का लंदन में व्यापार फैला हुआ था । वह जहाजों का व्यवसाय करता था । न्यूयार्क और लंदन में उसका शानदार कार्यालय था । दोनों की मित्रता धीरे-धीरे प्रगाढ़ प्रेम में परिवर्तित होने लगी । सन् 1928 की 21 जुलाई को वालिसा का विवाह अर्नेस्ट सिंपसन से हो गया ।
गरीबी में पली वालिसा सिंपसन को अर्नेस्ट से वह