Vishwa Ke 7 Adbhud Ashcharya: Wonders of the World from Different Times in Hindi
By Vikas Khatri
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Vishwa Ke 7 Adbhud Ashcharya - Vikas Khatri
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505717-6-7
संस्करण 2021
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प्रकाशकीय
आत्मविकास एवं शैक्षणिक पुस्तकों के प्रकाशक वी एण्ड एस पब्लिशर्स अनेक वर्षों से जनविकास सम्बन्धी पुस्तकें प्रकाशित करते आ रहे हैं। अभी हाल ही में अंग्रेजी की पुस्तक Seven Wonder of the World प्रकाशित की गयी तो पाठकों के बीच इस पुस्तक की बढ़ती लोकप्रियता तथा इसके हिन्दी रूपान्तरण की माँग पर हमने हिन्दी भाषा की एक अनूठी पुस्तक विश्व के 7 अद्भुत आश्चर्य प्रकाशित किया है। दरअसल वी एण्ड एस पब्लिशर्स की रुचि सदैव ही ऐसे पुस्तकों के प्रकाशन में रही है जो पाठकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ उनका ज्ञानवर्द्धन भी करे ।
प्रस्तुत पुस्तक दुनिया में प्रकृति और मानव निर्मित शिल्प रचनाओं का संकलन है। पुस्तक की भाषाशैली तथा शब्दों का प्रवाह सहज, सरल तथा आकर्षक है। कथा सामग्री को और भी रोचक बनाने के लिए पुस्तक में सभी सात आश्चर्यों के चित्र तथा उनसे सम्बन्धित आँकड़ों की जानकारी दी गयी है। हम आशा करते हैं कि यह पुस्तक सभी आयु वर्गों के पाठकों द्वारा अवश्य सराही जायेगी।
हमारी ओर से पुस्तक को त्रुटिरहित रखने का यथासंभव प्रयास किया गया है। फिर भी यदि पुस्तक में कोई त्रुटि रह गयी हो तो सुधि पाठक हमें इसकी जानकारी अवश्य दें, जिससे आगामी संस्करण में आवश्यक सुधार किया जा सके।
विषय-सूची
कवर
मुखपष्ठ
प्रकाशक
प्रकाशकीय
विषय-सूची
भूमिका
विश्व के सात अजूबों की ऐतिहासिक शुरुआत
प्राचीन काल के सात आश्चर्य
रॉड्स का विशालकाय बुत (ग्रीस)
अलेक्जेंड्रिया का (फेरोस) लाइट हाउस (मिस्र)
बेबीलोनिया के झूलते बगीचे (इराक)
अर्टेमिस (डायना) का मंदिर (ग्रीस)
खूफू का महान पिरामिड (मिस्र)
मैसोलस का मकबरा (हेली करनासस, ग्रीस)
ज्यूस की कलात्मक मूर्ति (ओलंपिया)
मध्य काल के सात आश्चर्य
रोम का कोलोसियम
अलेक्जेंड्रिया के भूमिगत कैटाकॉम्बस
चीन की विशाल दीवार
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर (सेलिस्बरी, इग्लैंड)
नानकिन का पार्सिलन पगोडा (चीन)
पीसा की झुकी मीना (पीसा इटली)
कांस्टेंटीनोपाल का विशाल चर्च हैगिआ सोफिया (इस्तंबूल, तुर्की)
आधुनिक काल के सात आश्चर्य
ग्रैंड कैनियन (एरिजोना)
रियो डि जेनियरो हार्बर (ब्राजील)
इगुआकू जलप्रपात (अर्जेंटीना)
योसेमाइट घाटी तथा विशालकाय सिकवोइयाँ (कैलिफोर्निया)
माउंट एवरेस्ट (नेपाल)
नील नदी (मिस्र)
उत्तरी ध्रुव के आकाश पर प्रकाश की रहस्यमय धाराएँ (उत्तरी कनाडा व अलास्का)
वर्तमान विश्व के सात आश्चर्य
मिस्र का विशाल पिरामिड और गीजा का महान स्फिंक्स
ताजमहल (आगरा, भारत)
वाशिंगटन मान्युमेंट (वाशिंगटन, अमेरिका)
एफिल टॉवर (पेरिस, फ्रांस)
एंपायर एस्टेट बिल्डिंग (न्यूयार्क)
सिविल इंजीनियरिंग क्षेत्र के सात आश्चर्य
पनामा नहर (प्रशांत व अटलांटिक महासागर)
चैनल टनल (यूरो टनल) ब्रिटेन और यूरोप को जोड़ती जलगत सुरंग
इताइपू बाँध (ब्राजील- पराग्वे सीमा)
सी एन टॉवर (टोरंटो, कनाडा)
नार्थ सी प्रोटेक्शन वर्क्स (नीदरलैंड)
गोल्डन गेट ब्रिज (अमेरिका)
एंपायर एस्टेट बिल्डिंग (न्यूयार्क)
विश्व के सात प्राकृतिक आश्चर्य
पैरिकुटिन ज्वालामुखी (मैक्सिको)
विक्टोरिया जलप्रपात (अफ्रीका)
ग्रेट बैरियर रीफ (आस्ट्रेलिया)
महासागरों की दुनिया के सात आश्चर्य
पलाऊ (माइशेनेशिया, प्रशांत महासागर)
बेलीज बैरियर रीफ (वेस्टइंडीज)
गालापेगस द्वीप (इक्वेडोर)
उत्तरी लाल सागर
बैकाल झील (सोवियत संघ)
ग्रेट बैरियर रीफ (आस्ट्रेलिया)
डीप सी वेंट (प्रशांत महासागर)
औद्योगिक दुनिया के सात आश्चर्य
ग्रेट ईस्टर्न जलपोत (ब्रिटेन)
बेल रॉक लाइट हाउस (ब्रिटेन)
ब्रुकलिन पुल (अमेरिका)
लंदन सीवेज सिस्टम (ब्रिटेन)
हूवर बाँध (अमेरिका)
ट्रांसकांटिनेंटल रेलमार्ग (अमेरिका)
भूमिका
'विश्व के सात महान आश्चर्य' के बारे में सभी ने सुना होगा लेकिन सबके नाम प्रायः कम लोग ही जानते हैं। अधिकांश लोग केवल मिस्र के पिरामिडों के बारे में बता सकते हैं, जबकि शेष आश्चर्यों के बारे में जानने के लिए आज हर कोई उत्सुक है।
विश्व के पाँच महाद्वीपों में अलग-अलग समय पर अद्भुत रचनाएँ निर्मित हुई, ये रचनाएँ कला व स्थापत्य की अनोखी कृतियाँ हैं। इन्हें देखकर तत्कालीन सभ्यता, संस्कृति एवं कला का ज्ञान होता है। प्राचीन समय में जिन रचनाओं को अजूबों की श्रेणी में शामिल किया गया था, आज उनका स्थान दूसरी अद्भुत रचनाओं ने ले लिया है।
प्राचीन और मध्यकाल में जिन सात रचनाओं को 7 आश्चर्यों की श्रेणी में रखा गया था वे रचनाएँ वस्तु व स्थापत्य कला की दृष्टि से विलक्षण थीं। किंतु आधुनिक काल तक इनके स्थान पर सात अन्य नये अजूबे विश्व के सामने लाये गये । ये अजूबे स्थापत्य या वास्तुकला की बजाय प्रकृति की अनोखी शक्तियों से बनायी गयी कुछ भौगोलिक कृतियाँ थीं।
वर्तमान समय में एक बार फिर प्राकृतिक अजूबों के स्थान पर मानव निर्मित रचनाओं को प्रमुखता दी गयी है। इनमें भारत के ताजमहल को पहली बार स्थान मिला है। हैंगिआ सोफिया, पीसा की झुकी मीनार एफिल टॉवर, एंपायर स्टेट बिल्डिंग, वाशिंगटन मोन्युमेंट के साथ-साथ प्राचीन अजूबे मिस्र के पिरामिड को भी इसमे शामिल किया गया है।
आज 7 आश्चर्यों की परिपाटी से हटकर प्रकृति द्वारा निर्मित सात प्राकृतिक आश्चर्यजनक रचनाओं की एक अलग श्रेणी बनायी गयी है, जिसमें केवल प्राकृतिक शक्तियों से बनी अद्भुत भौगोलिक रचनाओं को ही रखा गया है। इन आश्चर्यों के अतिरिक्त एक अन्य संस्था ( अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स) सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र के सात अजूबों का निर्धारण करती है। इस स्वतंत्र संस्था का उद्देश्य सिविल इंजीनियरिंग क्षेत्र की अद्भुत व विलक्षण रचनाओं का विश्व स्तर पर चयन कर इनका प्रचार-प्रसार करना है।
वर्तमान में विश्व के नये सात अजूबों के चयन का दायित्व 'द न्यू सेवन वंडर्स सोसायटी' ने उठाया है। संस्था द्वारा पहले 17 रचनाओं को इसके लिए चुना गया, जिनमें से 2005 में सात नये आश्चर्य चुने जाने थे किंतु बाद में अन्य कृतियों की प्रसिद्धि को देखते हुए उन्हें भी इस प्रतियोगिता में शामिल किया गया। इस प्रकार कुल 115 नाम इस दौड़ में शामिल हो गये। गौरतलब है कि संस्था द्वारा सात नये आश्चर्यों के चयन के लिए ऑनलाइन वोटिंग प्रणाली का सहारा लिया गया ताकि इस अभियान में विश्व के प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सके।
इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को न केवल प्राचीन, मध्यकालीन व वर्तमान आश्चर्यों का परिचय दिया गया है बल्कि सात प्राकृतिक आश्चर्यों, सिविल इंजीनियरिंग के आश्चर्यों तथा महासागरों की दुनिया के सात आश्चर्यों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
पुस्तक का उद्देश्य केवल आश्चर्यजनक इमारतों का वर्णन करना ही नहीं है बल्कि उनके ऐतिहासिक महत्त्व और विशेषताओं को भी बताना है। इनके ऐतिहासिक संदर्भों के साथ ही इनके निर्माताओं का भी परिचय दिया गया है। जिन्हें आज इतिहास ने भुला दिया है।
पुस्तक में उन दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है जो सिविल इंजीनियरिंग तथा नये आश्चर्यों की खोज करने में प्रयत्नशील है। शाब्दिक रूप में यह पुस्तक एक इनसाइक्लोपीडिया हैं जिसमें विश्व के अजूबों की समस्त जानकारी उपलब्ध है। हमें विश्वास है कि पाठकों को इस पुस्तक के माध्यम से विश्व के अलग-अलग कालखंड के सात आश्चर्यों की जानकारी मिलेगी और यह पुस्तक अपने उद्देश्य में खरी उतरेगी।
विश्व के सात अजूबों की ऐतिहासिक शुरुआत
प्रारंभ से मानव की प्रकृति विलक्षण रचनाएँ बनाने की रही है। कुछ ऐसा, जो अब तक किसी ने निर्मित न किया हो । आदिकाल से अब तक मानव ने ऐसे अनेक प्रयास किए हैं। जब विज्ञान व तकनीक का विकास नहीं हुआ था तक भी मुनप्य ने बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर गुफाओं का निर्माण किया और अपनी असाधारण प्रतिभा की छाप दुनिया के ऊपर छोड़ी। उनके द्वारा किए गये कई प्रयास या तो भूमि के गर्भ में विलीन हो गये। वे समय के साथ-साथ अपना अस्तित्व खो चुके हैं। किंतु जब से मनुष्य ने अपने इतिहास के महत्त्व को समझा है इन रचनाओं को संरक्षित करने का प्रयास किया जाने लगा है, ताकि इन ऐतिहासिक धरोहरों को भविष्य में सुरक्षित रखा जा सके। ये आश्चर्यजनक रचनाएँ केवल स्थापत्य कला की ही नहीं, मानवीय सभ्यता व उसके विकास की महत्त्वपूर्ण कड़ियाँ भी हैं ।
विश्व के विभिन्न देशों में ऐसी विलक्षण रचनाएँ भिन्न-भिन्न समय में निर्मित की गयीं, जिन्हें विश्व के आश्चर्यों का नाम दिया गया। इनके प्रति जागरूता व आकर्षण के कारण कई खोजकर्ताओं ने सर्वप्रथम प्राचीन भूमध्यसागरीय क्षेत्र तथा मध्य-पूर्व की विलक्षण स्थापत्य कला को सूचीबद्ध किया था, किंतु दुर्भाग्यवश इसका कोई प्रामाणिक विवरण नहीं मिलता। माना जाता है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में महान लेखक ऐंटीपैटर ऑफ सिडोन ने सर्वप्रथम यह प्रयास किया था। इस कार्य में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के महान गणितज्ञ फिलोन ऑफ बायजैनटियम का नाम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है । जिन्होंने कई विशेषताओं की कसौटी पर परखकर इनका चयन किया।
यह भी कहा जाता है कि सात अजूबों का वर्णन हेरोडोटस व उनके बाद के युनानी इतिहासकारों ने किया था। 350 से 240 वर्ष ईसा पूर्व के एलेक्जेंड्रिया के पुस्तकालय प्रमुख (लाइब्रेरियन) कौलिमक्स ऑफ सीरिन ने 'ए कलेक्शन ऑफ वंडर्स अराउंड द वर्ल्ड' नामक एक पुस्तक लिखी थी, किंतु एक बार पुस्तकालय में लगी भयंकर आग में अन्य दुर्लभ व महान कृतियों के साथ-साथ उनकी यह कृति भी जलकर नष्ट हो गयी। अब हमें केवल इन अजूबों के नाम ही ज्ञात हैं।
सात आश्चर्यों की अंतिम व निर्णायक सूची मध्ययुग में बनायी गयी जिसमें स्थापत्यकला, मूर्तिकला क्षेत्र की सात विलक्षण कृतियों को सूचीबद्ध किया गया, जो अपने आप में अद्वितीय व बेजोड़ मानी गयी थीं। 'विश्व के प्राचीन आश्चर्य' शीर्षक से सूचीबद्ध रचनाओं में आज केवल मिस्र के विश्वप्रसिद्ध पिरामिड ही अस्तित्व में हैं।
शेष छः रचनाओं के रेखा चित्र व वृत्तांत सिर्फ पुस्तकों में ही देखे जा सकते हैं। कहा जाता है कि इस सूची से पूर्व जो सूचियाँ बनायी गयी थीं, उनमें प्राचीन आश्चर्यों में से किसी रचना के स्थान पर 'वॉल ऑफ बेबीलोन' या पर्शियाँ स्थित 'पैलेस ऑफ किंग साइट्स' को स्थान दिया गया था, जिसे बाद में हटा दिया गया।
प्राचीन काल के सात आश्चर्य
रॉड्स का विशालकाय बुत (ग्रीस)
'कोलोसस' का शाब्दिक अर्थ है विशालकाय बुत या मूर्ति। ऐसी मूर्ति अपनी वास्तविक आकृति से कई गुना बड़ी होती हैं। विश्व में हमेशा ऐसे कोलोसस बनाने की परंपरा रही है। भारत, चीन, जापान, मैसोपोटामिया, मिस्र आदि देशों में समय-समय पर विशालकाय कोलोसस बनाये गये हैं। जापान में 1252 ईस्वी में बनी 37 फीट (11.4 मीटर) ऊँची महात्मा बुद्ध की बेबुत्सु मूर्ति, 2550 ई.पू. मिस्र में बना 240 फीट (73 मीटर) लंबा स्फिंक्स, प्राचीन युग में बने कोलोसस माने जाते है। मध्य युग में पेरिस में 28 फीट (8.5 मीटर) ऊँचा सेंट क्रिस्टोफर का कोलोसस बनाया गया। विश्व प्रसिद्ध कलाकार माइकल एंजिलो की कल्पना पर यह बुत फ्लोरेंस के एकेडेमिया में बना।
आधुनिक युग में अर्जेंटीना व चिली के मध्य बना 'क्राइस्ट ऑफ द एंडस' 26 फीट (7.9 मीटर) ऊँचा है तो अमेरिका के 'स्टेच्यु ऑफ लिबर्टी' की ऊँचाई 305 फीट (93 मीटर) हैं। ये सभी कोलोसस कला जगत के बेहतरीन उदाहरण हैं। प्राचीन ग्रीकवासियों ने भी अपोलो ऑफ डिलोस तथा एथना पार्थिनोंस के कोलोसस बनाये थ। एथना पार्थिनोंस के कोलोसस को सोने व हाथीदाँत से निर्मित किया गया था।
ग्रीक में एक ऐसा ही स्टेच्यू 'कोलोसस ऑफ रॉड्स था जिसे अपने विशाल आकार तथा विशेषताओं के कारण ही प्राचीन युग के विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया था। ग्रीस के रॉड्स द्वीप के उत्तरी सिरे पर रॉड्स शहर स्थित है। इसी स्थान पर इस कोलोसस की स्थापना की गयी थी। इसीलिए इसे कोलोसस ऑफ रॉड्स कहा जाता है। प्राचीन ग्रीकवासी सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। उसी के प्रतीक के रूप में इस बुत का निर्माण किया गया । इसे 'हेलियस' कहा जाता था। इस नग्न बुत का निर्माण रॉड्स द्वीप के शहर लिंडोस में रहने वाले कलाकार चार्ल्स द्वारा किया गया था। 100 फुट (30 मीटर) ऊँचे इस बुत के निर्माण में कांसे का प्रयोग किया गया और इसे बनाने में लगभग 12 वर्षों (292-280 ई.पू.) का लम्बा समय लगा था। इतने ऊँचे और भारी मूर्ति को सहारा देने के लिए लोहे का प्रयोग किया गया और इसके आधार को पत्थरों से भारी बनाया गया, ताकि यह नीचे न गिर जाये। इसके सिर पर 'स्वतंत्रता की देवी' (अमेरिका) की तरह ही ताज पहनाया गया था।
इस विशालकाय बुत के पीछे एक किंवदंती है। कहा जाता है कि इस द्वीप पर कभी डेमेट्यिस पोलियोकेटस (305 ई.पू.) का शासन था, जिसने अपने राज्य में ईश्वर की पूजा पर पाबंदी लगा रखी थे। बाद में अपनी प्रजा के विरोध और रोष के कारण उसे यह पाबंदी समाप्त करनी पड़ी। इस कोलोसस के माध्यम से ही ग्रीकवासियों ने अपना रोष प्रकट किया था और राजा के आदेश को चुनौती दी। इस बुत का हवा में उठा हुआ दायाँ हाथ इसी चुनौती की ओर संकेत करता था। बाद में यह लोगों की विजय का प्रतीक बन गया। इसके बाएं हाथ में एक छड़ी थमाई गयी थी।
कोलोसस का निर्माता चार्ल्स इसे रॉड्स के