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रावण वध

रावण वध

FromShri Ram katha


रावण वध

FromShri Ram katha

ratings:
Length:
8 minutes
Released:
Oct 5, 2022
Format:
Podcast episode

Description

अपने पुत्रों, भाइयों और सभी प्रमुख महारथियों की मृत्यु के पश्चात रावण ने अत्यंत क्रोधित होकर वानर सेना पर आक्रमण कर उनके मध्य हाहाकार मचा दिया। रावण ने तमस अस्त्र का प्रयोग कर अनेक वानरों को धराशायी कर दिया। श्रीराम और लक्ष्मण ने वानरों को इस प्रकार गिरते हुए देखा और रावण का सामना करने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण पर प्रहार किये। दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण के सारथी को मारकर रावण का धनुष तोड़ दिया। विभीषण ने अपने मुग्दर से रावण के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इससे क्रोधित होकर रावण के एक भाला उठाया और अपने भाई पर प्रहार किया। लक्ष्मण ने अपने तीरों से उस भाले को तीन हिस्सों में काटकर गिरा दिया। रावण ने एक और भाला उठाकर फिर से विभीषण की ओर निशाना साधा। विभीषण के प्राण खतरे में देखकर लक्ष्मण ने रावण पर लगातार तीरों से प्रहार किये। रावण ने विभीषण को छोड़कर वह भाला जोर से लक्ष्मण जी की ओर फेंका। भाला लक्ष्मण के वक्षस्थल पर लगा और उसके प्रहार से वो मूर्छित हो गए। श्रीराम ने लक्ष्मण को मूर्छित होते देखा तो तुरंत ही उनके पास आए और अपने हाथों से लक्ष्मण जी की छाती पर लगा हुआ भाला बाहर निकाला। हनुमान जी और सुग्रीव को लक्ष्मण की सुरक्षा में नियुक्त कर वो रावण का सामना करने लगे। अपने रथ से विहीन रावण श्रीराम के बाणों का सामना नहीं कर सका और लंका वापस लौट गया।
रावण के युद्धस्थल से जाने के बा श्रीराम लक्ष्मण जी के पास आए और उनका सर अपनी गोद में रखकर विलाप करने लगे। श्रीराम को विलाप करता देखकर वानरों के वैद्य और तारा के पिता सुषेण ने उनको सांत्वना देते हुए कहा की लक्ष्मण जी सिर्फ मूर्छित हुए हैं। उन्होंने हनुमानजी से जांबवान के बताए हुए द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर वहाँ से सभी घाव भरने वाली विशल्यकर्णी और जीवनदायिनी संजीवनी, सौवर्णकर्णी और संधानकर्णी नामक जड़ी बूटियाँ लाने को कहा। हनुमानजी मन की गति से द्रोणगिरि पर्वत पहुँचे और सही जड़ी-बूटी ना पहचानने के कारण पूरा द्रोणगिरि पर्वत ही उठाकर लंका ले आए। सुषेण ने हनुमानजी द्वारा लाई हुई बूटियों से औषध तैयार की और लक्ष्मण जी को सुँघाई। औषध की गंध से लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटी और उनके घाव भी भर गए। 
रावण जब पुनः अपने रथ पर सवार युद्ध में उतरा तब इन्द्रदेव ने अपने सारथी मताली के साथ अपना रथ श्रीरामचन्द्र जी के लिए भेजा। मताली ने श्रीराम से देवराज इन्द्र के रथ पर सवार होकर रावण का सामना करने को कहा। 
इन्द्र के रथ पर आरूढ़ श्रीराम और दशानन के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। रावण ने श्रीराम पर नाग-अस्त्र से प्रहार किया जिससे उसके बाण भयानक नागों के रूप में परिवर्तित होकर श्रीराम की ओर बढ़े। उसका प्रतिकार करने के लिए श्रीराम ने गरुड़-अस्त्र का प्रयोग किया, जिसने सभी नागों को नष्ट कर दिया। रावण ने श्रीराम पर भाले से प्रहार किया जिसे श्रीराम ने मताली के साथ लाए हुए इन्द्र के अस्त्र से नष्ट कर दिया। श्रीराम ने अनेक बाणों से रावण पर प्रहार किये और उसके शरीर के अनेक अंगों को अपने बाणों से बींध दिया। श्रीराम भी रावण के बाणों से प्रहार से रक्त-रंजित हो चुके थे। 
रावण को श्रीराम का सामना करने में असफल होते देख उसके सारथी ने रथ को युद्धस्थल से दूर ले जाने की सोची। उसके रथ घुमाते ही रावण ने उसे फटकार लगाते हुए रथ को पुनः युद्धस्थल की ओर ले जाने को कहा। श्रीराम ने रावण का रथ वापस आते हुए देखकर मताली से कहा कि लगता है रक्षसराज ने आज युद्ध में प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया है। उन्होंने मताली को बिना किसी भय और व्यवधान के अपना रथ रावण की ओर ले जाने को कहा। 
दोनों क बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। श्रीराम को अपनी विजय का निश्चय था और रावण को उसकी मृत्यु साक्षात दिख रही थी। दशानन ने राघव के रथ पर प्रहार किया परंतु उसके तीर इन्द्र के दैवी रथ से टकराकर गिर गए। श्रीराम ने रावण के रथ की ध्वजा को अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। रावण ने क्रोधित होकर श्रीराम के रथ के घोड़ों पर अनेक बाण चलाए परंतु वो दैवी घोड़े रावण के बाणों से भयभीत नहीं हुए। रावण ने श्रीराम पर अनेक मायावी अस्त्रों से प्रहार किया जिन्हे उन्होंने अपने दैवी अस्त्रों से काट दिया। रावण ने मताली पर कई बाण चलाए जिससे श्रीराम को अत्यंत क्रोध आया और  उन्होंने क्षुर नामक अस्त्र से रावण का सर धड़ से अलग कर दिया, परंतु उस कैट हुए सर के स्थान पर एक और सर प्रकट हो गया। श्रीराम ने फिर से दशानन का सर काट दिया और उसकी ग्रीवा से एक और सर निकल आया। 
इस प्रकार रावण का अन्त होते नहीं प्रतीत हो रहा था, तब मताली ने श्रीराम से कहा कि रावण का अन्त करने के लिए ब्रह्मदेव के अस्त्र का प्रयोग करें। मताली के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि द्वारा उनको दिया ह
Released:
Oct 5, 2022
Format:
Podcast episode

Titles in the series (25)

Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.