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एनएल चर्चा 52: सामान्य श्रेणी को आरक्षण, सीबीआई विवाद, राहुल गांधी का बयान और अन्य
FromNL Hafta
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Length:
64 minutes
Released:
Jan 12, 2019
Format:
Podcast episode
Description
की जरूरत थी जो कि महज 48 घंटे में संसद के दोनों सदनों में पास हो गया. किसी भी बिल को पास करने की एक लंबी चौड़ी प्रक्रिया होती है, घंटों बहस चलती है उस पर विचार विमर्श किया जाता है, ज्यादा से ज्यादा लोगों के विचार उसमें शामिल होते हैं. लेकिन यहां एक हड़बड़ी नजर आती है. संविधान संशोधन में इतनी जल्दबाजी ठीक है?”इसका जवाब देते हुए आनंद ने कहा, “आरक्षण पर अंबेडकर ने कहा था कि आरक्षण तात्कालिक है और इसका प्रतिशत कम ही होना चाहिए. कुछ राज्यों में इसे बढ़ाया गया जैसे तमिलनाडु में जनसंख्या के आधार पर आरक्षण 50% से बढ़ाकर 67% कर दिया गया, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा 10% आरक्षण बढ़ाना पैंडोरा बॉक्स खुलने जैसा है. अब केंद्र सरकार ने एक शुरुआत कर दी है. इससे बाकी समुदायों में भी आरक्षण पाने की होड़ लग सकती है. इसके अलावा ऐसा नहीं है कि आरक्षण मिलने से नौकरी मिल जाएगी. 10% आरक्षण के लिए जो क्राइटेरिया तय किया गया है उसके हिसाब से भारत की 95% आबादी आरक्षण के लिए योग्य है. अब उसमें तो प्रतिस्पर्धा बनी ही रहेगी यह सवर्णों के लिए खुद बहुत कंफ्यूज करने वाली स्थिति है.”चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अतुल ने सिद्धांत से सवाल किया, “आरक्षण का लक्ष्य था सामाजिक, शैक्षिक समानता लाना. जो चीजें जातियों से तय होती हैं उसको खत्म करने के लिए आरक्षण लाया गया था. हम पाते हैं कि लंबे समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग भी हो रही थी. लेकिन यह 10% कोटा सामाजिक समानता के लक्ष्य को कहीं ना कहीं असफल करने वाली बात नहीं लगती?”इसका जवाब देते हुए सिद्धांत ने कहा, “आर्टिकल 15 (4) 16 (4) जिसकी आप बात कर रहे हैं उसमें सोशली और एजुकेशनली बैकवर्ड लोगों के बारे में जिक्र होता है, लेकिन इकोनॉमिकली बैकवर्ड के बारे में हम सिर्फ सुनते आ रहे थे. नरेंद्र मोदी उसे लेकर आ गए कि 10% आरक्षण आर्थिक आधार और पिछड़े लोगों को दिया जाएगा.”वो आगे कहते हैं, “66,000 प्रति महीना कमाने वाले आदमी को आप गरीब मानते हैं. तो देखना होगा कि इकोनोमिकली बैकवर्ड का क्लॉज़ जोड़ने के बाद भी आप हासिल क्या कर रहे हैं. कोई नई तस्वीर बन भी रही है या नहीं. क्योंकि हो सकता है सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर दे, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी की इस पॉलिटिक्स का क्या होगा.आरक्षण के मौजूदा स्वरूप को लेकर जो यथास्थिति है उसके बारे में बताते हुए सिद्धांत ने कहा, “2 साल पहले मैंने बीएचयू पर एक स्टोरी की थी. इसमें यह सामने आया, कि बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर की कुल 900 पोस्ट है जिसमें 850 केवल जनरल केटेगरी के प्रोफेसर हैं, एसटी कैटेगरी का एक भी प्रोफेसर नहीं है, एससी के 15 और ओबीसी के कुल 35 असिस्टेंट प्रोफेसर वहां पर कार्यरत है. यह स्थिति जब बनी हुई है नौकरियों में तो फिर सवर्ण के लिए आरक्षण की जरूरत ही क्या है.”इस मसले पर जयया निगम ने भी अपनी राय कुछ इस तरह से रखी, “आरक्षण का यह बिल आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों के लिए लाया गया है और अभी तक इसमें जितनी बातें सामने आई हैं उससे यह कहा जा सकता है इसका फायदा सभी धर्मों के लोगों को मिलेगा लेकिन इस पर अभी तक तार्किक रूप से ऐसा कुछ नहीं आया है, जिसमें यह साफ हो कि सरकार आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए लोगों को कैसे पहचानेगी. इसमें एक बात और सामने आ रही है यूथ फॉर इक्वलिटी की, जो सामान्य श्रेणी के लोगों का एक फोरम है. यूथ फॉर इक्वलिटी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गया है. मतलब सवर्णों के अंदर भी दो मत हैं. अब आप गरीब सवर्ण कैसे तय करेंगे यह आने वाले समय में समाज के लिए एक बड़ी बहस हो सकती है.”पैनल की विस्तृत राय जानने और अन्य मुद्दों के लिए सुने पूरी चर्चा। See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.
Released:
Jan 12, 2019
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Bill Maher on how American politics cannot reject religion and Obama pandering to religious loonies. by NL Hafta