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Naaham Deham
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Ebook115 pages36 minutes

Naaham Deham

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About this ebook

 Naham Deham is a Hindi poetry compilation written by Koham. It consists of poetic commentary on themselves such as existentialism, life, death, love, loss, and truth. The book gets its name from great sentences of Upanishad and literally means- Ain't a Phy

Languageहिन्दी
Release dateApr 10, 2024
ISBN9789359893532
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    Naaham Deham - Koham

    अजर हूँ मैं अमर हूँ मैं ये छाल काट देख ले

    लहू नहीं मैं सोच हूँ ये रूह चाट देख ले

    राम का मैं धर्म हूँ मैं कंस सा प्रचंड हूँ

    मैं ब्रह्म का जगत भी हूँ अखंड नीलकंठ हूँ

    मैं छल में हूँ कपट में हूँ शकुनि का प्रपंच हूँ

    मैं वेद में पुराण में पवित्र अग्निकुंड हूँ

    मैं कल भी हूँ मैं काल हूँ डरूँ तो अब मैं क्यों भला

    मैं मोक्ष हूँ मैं आस्था तू देख मैं निडर चला

    फरेब जो मुझमें लगे तो प्राण लेके देख ले

    लहू नहीं मैं सोच हूँ श्मशान भेज देख ले

    नाकामियों का तीर्थ हूँ समय की मैं तो मार हूँ

    सदियो पुरानी जीत हूँ इस क्षण की मैं तो हार हूँ

    न भय की स्याह रात है अब न रहे जज़्बात है

    भाव सारे मिट गए मोह भी न साथ है

    वैराग सा हूँ बन गया इंसान थोड़ा बन गया

    मैं आग में था गिर गया मैं तप के स्वर्ण बन गया

    गिर-गिर के जिस्म छिल गया फिर भी मुझे विश्वास है

    सशक्त शास्त्र एक हूँ इस शव के शिव जो साथ है

    फरेब जो मुझमें लगे तो प्राण लेके देख ले

    लहू नहीं मैं सोच हूँ श्मशान भेज देख ले

    मैं आत्मा को त्याग दूँ जो धर्म ही तो है मेरा

    तो काल से मैं क्या डरूँ जो आज न तो कल मिला

    ये मुख के बाण मैं काट दूँ जो नासमझ ये जग जने

    ये क्रोध ईर्ष्या वासना ये न है मेरी अड़चनें

    फरेब जो मुझमें लगे तो प्राण लेके देख ले

    लहू नहीं मैं सोच हूँ श्मशान भेज देख ले ।।

    इक फाँस का फंदा साथ मेरे

    इक हाथ मेरे शमशीर भी है

    कुछ दिल में मेरे प्यार भरा

    हालत भी कुछ गम्भीर सी है

    ये हाथ भी मेरे काँप रहे

    आँखों से रिसते ख़्वाब मेरे

    पर क़दम खड़े लड़खड़ करते

    क्यूँकि दामन में दाग़ मेरे

    ये हवा जो साँसे है देती

    वो हवा भी भारी पड़ती है

    और हलक में गहरा भारीपन

    हर नस भी आज सिकुड़ती है

    जग कहता है मैं मान रहा

    मेरे बोलों का मोल नहीं

    वो कहते उचित मैं खिल जाता

    वो कहते चुप अब बोल नहीं

    जीवन तो मेरा छीन रहे

    क्या मौत पे मेरे ज़ोर नहीं

    ये आत्मसमर्पण जीवन को

    तत्वज्ञ हूँ मैं कमज़ोर नहीं

    ये रोग नहीं ये सोच ही है

    चिंतन की ये ख़ामोशी है

    मैं त्याग रहा समसार मेरा

    फिर भी वो कहते दोषी है

    यूँ तो तालीम-ए-आज़ादी

    हर चप्पे पर छपवा दी है

    पर आज़ादी बस जीने की

    मृत्यु की ख़त्म करा दी है

    आत्मघात गर ग़लत लगे

    तो ग़लत है इच्छामृत्यु भी

    ना सिर्फ़ ग़लत सब पैमाने

    झूठी तुम्हारी आज़ादी

    आतंकवाद नहीं है ये

    हक़ और किसी का जहाँ छिने

    ये उपज मनन की संजीदा

    जो हर राही का शौक़ बने

    जब चित्तवृत्ति पर रोक नहीं

    तो ख़्याल धरा पर जन्मा है

    जो अगर संस्था-पूत है ये

    फिर क्यूँ अवसाद निकम्मा है

    पर छोड़ो वाद अधूरी ही

    विवाद नहीं ज़रूरी है

    इक फाँस का फंदा साथ मेरे

    इक हाथ मेरे शमशीर भी है ।।

    आवारा हूँ

    मैं ना इसका ना मैं उसका

    मैं लावारिस बस मेरा हूँ

    ना मोमिन

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