नए राष्ट्र की पटकथा
By Zaki Ansari
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नए राष्ट्र की पटकथा, यह महज़ एक मनोरंजक कविताओं की क़िताब भर ही नहीं है, बल्कि यह एक कोशिश है उन संवेदनाओं और दर्द को समेटने की जो हमारे आस पास की दुनिया में बिखरा पड़ा है, जिसे हम कभी देख पाते हैं तो कभी देख कर भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं, यह कविताएं बस एक लेखक की सोच ही नहीं है लेकिन हर एक कविता के पीछे एक कहानी है और उस कहानी के क़िरदार हमारी इसी दुनिया के लोग हैं, यह कविताएं राजनीति पर कटाक्ष करती हैं तो राजनेताओं से सवाल करती हैं, गरीब और मजबूर लोगों का दर्द बयां करती हैं तो बाल मज़दूरी के ज़ुल्म को भी दर्शाती है, यह समाज को आइना दिखती हैं तो कोख में दम तोड़ती बेटियों की चीखे सुनाती हैं, माइग्रेंट मज़दूरों के पलायन के ग़म कहती हैं, यह आतंकवाद पर बदुआए देती हैं तो बढ़ते हुए धार्मिन उन्माद को मुहब्बत और एकता का पैग़ाम भी देती हैं.
यह किसी भी व्यक्ति विशेष पर निशाना नहीं साधती, लेकिन उन किरदारों से सवाल करती हैं जो समाज में कही न कही किसी न किसी रूप में मौजूद हम सब हैं.
इस क़िताब का मक़सद महज़ मरोरंजन करना नहीं है, लेकिन एक छोटी सी कोशिश है उन सभी मुहब्बत, हमदर्दी और एकता के ख़ुशनुमा जज़्बात को जगाने की जो जाने अनजाने हमारे अंदर कही गहरी नींद सो चुके हैं या फिर सब कुछ देख कर भी खामोश है.
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Zaki Ansari
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नए राष्ट्र की पटकथा - Zaki Ansari
अनुक्रमणिका
प्रकरण पेज संख्या
प्रस्तावना4
वबा क्या आई वतन में5-7
बाक़ी हैं अभी ज़ुल्म और भी8-9
नफ़रत की राजनीति10-11
वायरस बद्दुआओं का12-13
तेरी दुनिया बदल गई है14-15
टूल किट भारी है16-17
बस इंक़लाब लिखूं18-19
जाएज़ नहीं20
चीख रही है दर्द से21
नए राष्ट्र की पटकथा22-25
सियासत तू कमाल करती है26-27
आवाम की जान बेच दे28-29
क़लम और हथियार30-31
शैतान बनेगा32-33
लिबास देख कर34-35
सितारों का डर36-37
लहू रिस रहा है38-39
धर्म मज़हब में मत बांटो40
चुनाव की तारीख़41
दम तोड़ रहा है42-43
सियासी कारोबार करना है44-45
गंगा के पानी से वज़ू करता हूँ46-78
मज़हब परिन्दों का49
ख़्वाब बेचता है50-51
ख़ौफ़ का कारोबार52
आसमां में जंग53
शहर में आईने54
इंसाफ़ कहाँ से हो55-56
हम लौट कर जा रहे हैं57-60
मसीहा बन कर आते हैं61-62
हम हैं मौजूद वतन में63
ख़ुदा कहाँ रहता है64
बर्तन का ख़ालीपन65-66
ख़ुद से ही ख़फ़ा67
मोजज़ा हो जाये68
तन्हाई69-70
ज़िंदा इंसान थोड़े हैं71-73
ग़म सारे झेलते है74-77
क़त्ल दवाख़ानों में78-80
नए दौर का नेता81-83
बंद करो क़लमा पढ़ना84-85
ईश्वर नहीं मिलता86
खेल सके आँगन में अपने87-88
Digitalization Ofगरीबी89-90
यही बस मुक़द्दर तेरा है91-92
आभार93
प्रस्तावना
नए राष्ट्र की पटकथा, यह महज़ एक मनोरंजक कविताओं की क़िताब भर ही नहीं है, बल्कि यह एक कोशिश है उन संवेदनाओं और दर्द को समेटने की जो हमारे आस पास की दुनिया में बिखरा पड़ा है, जिसे हम कभी देख पाते हैं तो कभी देख कर भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं, यह कविताएं बस एक लेखक की सोच ही नहीं है लेकिन हर एक कविता के पीछे एक कहानी है और उस कहानी के क़िरदार हमारी इसी दुनिया के लोग हैं, यह कविताएं राजनीति पर कटाक्ष करती हैं तो राजनेताओं से सवाल करती हैं, गरीब और मजबूर लोगों का दर्द बयां करती हैं तो बाल मज़दूरी के ज़ुल्म को भी दर्शाती है, यह समाज को आइना दिखती हैं तो कोख में दम तोड़ती बेटियों की चीखे सुनाती हैं, माइग्रेंट मज़दूरों के पलायन के ग़म कहती हैं, यह आतंकवाद पर बदुआए देती हैं तो बढ़ते हुए धार्मिन उन्माद को मुहब्बत और एकता का पैग़ाम भी देती हैं.
यह किसी भी व्यक्ति विशेष पर निशाना नहीं साधती, लेकिन उन किरदारों से सवाल करती हैं जो समाज में कही न कही किसी न किसी रूप में मौजूद हम सब हैं.
इस क़िताब का मक़सद महज़ मरोरंजन करना नहीं है, लेकिन एक छोटी सी कोशिश है उन सभी मुहब्बत, हमदर्दी और एकता के ख़ुशनुमा जज़्बात को जगाने की जो जाने अनजाने हमारे अंदर कही गहरी नींद सो चुके हैं या फिर सब कुछ देख कर भी खामोश है.
इस दुनिया के हर एक शक़्स की, आप की, आपके अपनों की बेहतर खुशहाल ज़िन्दगी की दुआ करते हुए आप को समर्पित करता हूँ
मोहम्मद ज़की अंसारी
10 july 2021
वबा क्या आई वतन में
संदर्भ
2020-2021 कोरोना वायरस पैंडेमिक के दौरान समाज का एक बहुत ही डरावना और घिनोना चेहरा भी सामने आया, जहां कुछ लोग अपनी जान की बाज़ी लगा कर अपना सब कुछ दाव पर लगा कर दूसरों की मदद कर रहे