Kamyab Beema Agent Kaise Bane
By Ashok Goyal
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Kamyab Beema Agent Kaise Bane - Ashok Goyal
जीवन बीमा उद्योग की स्थिति
जीवन बीमा का क्षेत्र आज देश का अत्यंत महत्त्वपूर्ण उद्योग है। सन् 2000 से पहले भारत में जीवन बीमा क्षेत्र में केवल भारतीय जीवन बीमा निगम का ही अस्तित्व था। 1956 में बनाए गए संसदीय कानून के अंतर्गत लगभग 250 बीमा कंपनियों को समेटकर भारतीय जीवन बीमा नाम के सरकारी संस्थान का निर्माण किया गया और उन सब कंपनियों की संपत्तियां और चालू पॉलिसी इसके हिस्से में आ गई। नेहरू युग में जब बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों का संचालन सरकार के हाथों में जा रहा था, जीवन बीमा को भी एक राष्ट्रीय महत्त्व की चीज माना गया और सरकार ने इसे स्वयं संचालित करने का निर्णय लिया।
तब सरकार के सामने एक लक्ष्य था, जो आज के लक्ष्य से भिन्न था। सारी कंपनियों का कारोबार भारतीय जीवन बीमा निगम के माध्यम से जब सरकार के हाथों में आ गया तो निवेशक के पैसे की सुरक्षा तो बढ़ी परंतु एकाधिकार के कारण उत्पादकता नहीं बढ़ पाई। अपने देश में पैसे का सर्वश्रेष्ठ संरक्षक तो सरकार को माना जाता है, मगर पैसे को बढ़ाने की या रिटर्न देने की क्षमता प्राइवेट सेक्टर की ज्यादा मानी जाती है। सरकार ने स्वयं इस बात को महसूस किया कि कुल व्यवसाय बढ़ने के बावजूद बीमा क्षेत्र की जहां तक पहुंच हो सकती थी, वह नहीं बन पाई। जीवन बीमा वास्तव में मध्यम वर्ग तक ही सीमित होकर रह गया। ऊंचे तबके के लोगों तक एजेंट पहुंच नहीं पाए और नीचे के दर्जे के लोगों तक पहुंचने का प्रयास नहीं किया गया।
ऐसा अनुभव किया गया कि प्रतिस्पर्धा के अभाव में जैसे प्रोडक्ट बिकने चाहिए, वे नहीं बेचे जा रहे थे। इस मामले में हम दुनिया के बाकी देशों से पीछे होते जा रहे थे। बीमा पॉलिसी को प्रायः लोग आयकर के लाभ के कारण ही खरीद रहे थे। ग्रामीण क्षेत्र में जीवन बीमा का विस्तार इसीलिये नहीं हो पाया क्योंकि कृषि के आयकर मुक्त होने से वहां आयकर का लाभ दिखाकर बीमा नहीं बेचा जा सकता था।
दूसरे, बीमा एजेंट के ज्ञान का स्तर भी नहीं बढ़ रहा था। एकाधिकार वाले बाजार की सारी कमजोरियां उजागर होने लगी थीं। बीमा एजेंट प्रायः पार्ट टाइम काम करने वाले लोग थे, और वे अपने आपको इस विषय में होने वाले नये विकास से दूर ही रखते थे। दूसरे एजेंट वे थे जो चार्टर्ड अकाउटेंट होने के कारण अत्याधिक शिक्षित तो थे, पर बीमा बेचने में उनकी रुचि इतनी ही थी कि उनके नियमित ग्राहक जब साल के अंत में आयकर रिटर्न भरवाने आएं तो टैक्स बचाने के लिए उनकी एकाध पॉलिसी कर दी। शायद यही एक कारण था कि ऊंचे दर्जे के, पढ़े लिखे, जागरूक ग्राहकों तक हम बीमा नहीं पहुंचा पाए। दूसरा एक बड़ा कारण था कि निवेश किए गए पैसे की सुरक्षा पर ही सारा ध्यान केंद्रित किया गया और रिटर्न ज्यादा नहीं आ पाई। इससे बड़े निवेशकों के लिए जीवन बीमा में निवेश कोई आकर्षण का विषय नहीं रह गया।
इन सब स्थितियों को देखते हुए सरकार ने अनुभव किया कि अब इस क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया जाए। अतः सन् 2000 में इंश्योरेंस रेगुलेटरी एण्ड डिवेल्पमेंट एक्ट संसद में पास किया गया। इसके तहत आईआरडीए नाम की रेगुलेटरी संस्था बनाई गई, जिसे अधिकार दिया गया कि वह देश में होने वाले सभी बीमा संबंधित कार्यों की निगरानी करे।
आज देश में जीवन बीमा क्षेत्र में भारतीय जीवन बीमा निगम के अतिरिक्त 22 प्राइवेट कंपनियां काम कर रही हैं। इनमें देश के बड़े बड़े व्यापारिक घराने शामिल हैं, जैसे रिलायंस, टाटा, आदित्य बिरला, बजाज, मैक्स, डीएलएफ आदि। साथ ही कुछ बहुत बड़े बैंक भी अपनी बीमा कंपनी के माध्यम से इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए हुए हैं, जैसे आईसीआई बैंक, एसबीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, आदि। कुछ बैंक जो अभी दूसरी बीमा कंपनियों की पॉलिसी बेच रहे हैं, वे भी अपनी बीमा कंपनी खोलकर मैदान में आने को तैयार हैं।
आज भारत में बीमा क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया है। सन् 2000 में देश में कुल प्रिमियम 26250 करोड़ रुपये का आया था, जबकि 2010-11 में केवल नया प्रिमियम ही 82654 करोड़ रुपये आया। इतना प्रिमियम करने के लिये साल भर में 4 करोड़ 81 लाख पॉलिसी बेची गईं। यह प्रिमियम पिछले बरस के प्रिमियम से लगभग एक प्रतिशत ज्यादा है जबकि पॉलिसी संख्या में 9 प्रतिशत की गिरावट है।
इस समय देश में भारतीय जीवन बीमा निगम सबसे बड़ी कंपनी है। 2048 शाखाओं और 1035 सहयोगी शाखाओं के साथ इसका सबसे बड़ा नेटवर्क है। देश के 29 लाख कुल जीवन बीमा एजेंटों में से आधे इसी कंपनी के पास हैं। 2010-11 में इसका मार्केट शेयर प्रथम आय के आधार पर 63 प्रतिशत और पॉलिसी संख्या के आधार पर 77 प्रतिशत रहा। प्राइवेट कंपनियों में पहली पांच कंपनियां रहीं आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल, एसबीआई लाइफ, एचडीएफसी लाइफ, रिलायंस लाइफ और बजाज एलियांज।
बीमा सेक्टर इतना बड़ा होने के बावजूद इसमें एजेंट के स्तर पर अभी प्रोफेशनलिज्म की बहुत कमी है। यदि आप एक हजार कॉलेज जाने वाले छात्रों से पूछें कि वह क्या बनना चाहते हैं तो ऐसा कहने वाला शायद ही कोई मिले जो बीमा एजेंट बनने की इच्छा जाहिर करे। इनमें वे छात्र भी होंगे जिनके पिता सफल बीमा एजेंट हैं और उनकी कमाई से ये पूरी संपन्नता भोग रहे हैं। आने वाले समय में यह स्थिति बदलने के आसार हैं और वही लोग बीमा एजेंट बन पायेंगे और बने रह पायेंगे जो इस प्रोफेशन को पूरी गंभीरता से लेंगे।
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जीवन बीमा एजेंट का व्यवसाय
बीमा एजेंट बनने का व्यवसाय बहुत ही लाभदायक व्यवसाय है। हालांकि इसे दुनिया के सबसे कठिन सेल्स कार्यों में गिना जाता है, फिर भी इसमें लाभ की गुंजाइश बहुत है। यदि आपने पॉलिसी ठीक से बेची है, ग्राहक की आवश्यकता को जांचकर, तो आप बहुत ही नेक काम कर रहे हैं। आपने ऐसा इंतजाम कर दिया है कि यदि वह पॉलिसी अवधि तक जीवित रहता है तो अपने गुजारे के लिए एक सम्मानजनक रकम जोड़ पाएगा और यदि उसकी असमय मृत्यु हो गई तो उसके परिवार के लिए तुरंत एक रकम उपलब्ध रहेगी। अतः ये एक नेक व्यवसाय है। यदि एजेंट ने पॉलिसी बेचते समय पूरे सोच विचार कर उसे उचित पॉलिसी दी है तो वह ग्राहक और उसका परिवार बरसों तक उसका आभार मानता रहेगा, चाहे मन ही मन माने। सो, बीमा बेचना एक आंतरिक सुख का काम है।
दूसरे, दुनिया में ज्यादातर काम ऐसे हैं जिनमें हम कोई चीज बेचकर एक बार ही मुनाफा कमा सकते हैं। चाहे आप कंप्यूटर बेचेें, फर्नीचर बेंचें, कागज बेंचें या कोई मकान दुकान, मुनाफा एक बार ही मिलना है। जीवन बीमा एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें आज बेची गई एक पॉलिसी का कमीशन आप 15-20 बरस तक भी पा सकते हैं, बशर्ते उसकी किश्तें समय पर भरी जा रही हों। यदि आप हर बरस नियमित रूप से पॉलिसी बेचते जा रहे हैं, और ग्राहक उनकी किश्तें लगातार भर रहे हैं तो कुछ ही बरसों के पश्चात् आपकी पुरानी पॉलिसी से होने वाली आय (renewal income) नई पॉलिसी की आय से ज्यादा हो जाएगी। वास्तव में एजेंट को मजा तभी आता है जब पुरानी आय ज्यादा हो जाए, क्योंकि उसमें आपका श्रम बहुत ही कम लगता है।
तीसरा लाभ एजेंसी चलाने का है कि इसमें औसत का नियम (Law of Average) आपके हाथ में रहता है। कल्पना करें कि एक दुकान के आगे से 100 लोग हर रोज गुजरते हैं, 20 दुकान पर आते हैं और 10 लोग सामान खरीदते हैं। उस दुकानदार के लिए औसत का नियम है 10, क्योंकि गुजरने वाले औसतन 10 में से एक व्यक्ति सामान खरीदता है। अब यदि वह चाहे कि हर रोज 20 लोग सामान खरीदें तो उसके लिए जरूरी है कि 200 लोग उसकी दुकान के आगे से गुजरें, जो कि उसके हाथ में नहीं है। वह इस अनुपात को थोड़ा बढ़ा सकता है कि कुछ सजावट आदि से 100 में से 25 लोग अन्दर आने लगें। सेल्समैन और माल की रेंज से उन 25 में से 13-14 ग्राहक माल खरीद सकते हैं। इस अनुपात को और ज्यादा बढ़ाना उसके वश में नहीं है। अब यही स्थिति बीमा एजेंट के लिए देखें। वह अपने अनुभव से जानता है कि जिन दस लोगों के पास वो जाता है, उनमें से 3 लोग पॉलिसी खरीदते हैं। अब यदि किसी सप्ताह वो 6 पॉलिसी बेचना चाहे तो वह अपनी मेहनत दुगुनी करके 20 लोगों के पास जा सकता है। यहां औसत का नियम उसके हाथ में है। जो लोग इस क्षेत्र में सफल हैं, वे ऐसे ही अपने काम को बढ़ाते जाते हैं।
संपर्क के दायरे का लाभ
बीमा एजेंट, बनने का एक बड़ा लाभ है कि आपके संपर्क का दायरा निरंतर बढ़ता जाता है और आप समाज के अलग अलग क्षेत्र के लोगों को जानने लगते हो। आपके संपर्क में व्यापारी, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, पुलिस अधिकारी, बिजली विभाग के लोग, टैंट हाऊस का मालिक, कैमिस्ट, प्रॉपर्टी डीलर, बिल्डर, राजनेता, जज आदि सब तरह के लोग आते हैं। इस बड़े दायरे के लोगों से संबंध होने का जीवन में बड़ा लाभ रहता है।
आप इस दायरे का लाभ एक और तरीके से भी उठा सकते हो। यदि आपके किसी ग्राहक के घर में शादी है तो तय है कि उसे टैंट की जरूरत पड़ेगी ही। अब यदि आपको कोई दूसरा ग्राहक टैंट का बिजनेस करता है, तो आप उन दोनों को मिलवा सकते हैं। इससे आपके दोनों ही ग्राहक खुश रहेंगे और आपके संबंध उनसे और मजबूत होंगे।
सूचना और ज्ञान में अंतर
सूचना और ज्ञान दो अलग अलग चीजें हैं। सूचना वह जानकारी है जो हमें किसी भी बाहरी स्रोत से प्राप्त होती है, जैसे कोई पुस्तक, व्यक्ति, समाचार पत्र, रेडियो, टीवी आदि। सूचना सही या गलत, दोनों ही तरह की हो सकती है। ज्ञान वह है जो हम उस सूचना के मंथन करने के बाद निकालते हैं। यह अपने अनुभव का निचोड़ है या अपने चिंतन का परिणाम है। मेरा मानना ये है कि कोई भी व्यक्ति या पुस्तक हमें सिर्फ सूचना दे सकता है, ज्ञान नहीं। सूचना एक बाहरी चीज है, जबकि ज्ञान वह है जो अंदर से निकलता है। कोई सूचना किसी बुद्धू को बुद्ध नहीं बना सकती है, ज्ञान बना सकता है।
कोई भी लेखक, वक्ता, प्रवचनकर्त्ता, धर्मगुरु, नेता, विचारक हमें सिर्फ सूचना देता है। मेरा अनुमान है कि यदि 100 लोग उन्हें सुनते हैं तो 75 लोग इसके बाद यही बोलते हैं कि इस वक्ता ने अच्छा भाषण दिया। पुस्तक को पढ़ने वाले 100 लोगों में से 75 सिर्फ बोलते हैं कि लेखक ने अच्छा या बुरा लिखा है। वे लिखी गई बातों से इससे ज्यादा ताल्लुक नहीं रखते। ऐसा लगता है कि उन्होंने पुस्तक सिर्फ इसीलिए पढ़ी कि लेखक को प्रमाण पत्र दे सकें कि वह कैसा लिखता है। 25 पाठकों को लगता है कि लिखी गई बातों को प्रयोग में लाकर देखना चाहिए कि वे कितना लाभ दे पाती हैं। वे इसमें दी गई सूचना को ज्ञान में बदलने का प्रयास करेंगे। इन 25 में से 5 लोगों को कुछ समय के बाद अहसास होगा कि पुस्तक की अधिकांश बातें उनके लिए काम की नहीं हैं, क्योंकि उनका शहर थोड़ा अलग है, वहां के लोगों की सोच अलग है, कंपटीशन का स्तर अलग है और इसलिए पुस्तक में कही गई बातें उनके लिए काम की नहीं हैं। ठीक से समझकर नकार देना भी एक ज्ञान है। शेष 20 लोग वे होंगे जो पुस्तक में बताई गई बातों पर अमल करेंगे और उन्हें अपनी कार्यप्रणाली का हिस्सा बनाकर लाभ उठाएंगे। इस पुस्तक से भी आपका लाभ उतना ही है इस में दी गई सूचना को ज्ञान में बदल पाएंगे। जो बातें पुस्तक में आगे कही गई हैं, वे मेरे लिए ज्ञान है क्योंकि मैंने खुद उन्हें जांचा परखा है और लाभदायक पाया है। आपके लिये वह अभी सिर्फ सूचना हैं, क्योंकि आपको इनकी अहमियत का अहसास होना बाकी है।
अपने देश में एक आदमी बीमार होने पर दो जगह जाकर इलाज करवा सकता है। एक है डॉक्टर और दूसरा है ओझा, पंडित या मौलवी। डॉक्टर अपने तरीके से पूरी जांच पड़ताल करके दवा देता है और पंडित या मौलवी झाड़ा लगाते हैं। दोनों इलाज में मुख्य अंतर यही रहता है कि डॉक्टर इलाज नहीं करता, बल्कि मरीज को इलाज का तरीका बताता है कि ये दवाएं हैं, इन्हें इस समय, इस विधि से लेना है, ऐसा भोजन करना है, इन चीजों का परहेज करना है, सुबह सैर के लिए जाना है, सर्दी से बचना है, आराम करना है, वगैरह। पंडित या मौलवी खुद उपाय करता है। वह झाड़ा लगाता है, मंत्र फूंकता है और उपचार हो गया। जहां इलाज में मरीज को बहुत कुछ अपने आप करना होता है, वहां झाड़फूंक में मरीज को कुछ नहीं करना होता। हालांकि दोनों ही तरह के इलाज में संभावना है कि मरीज ठीक हो या न हो। बड़ा अंतर ये है कि झाड़फूंक में रोगी का कोई प्रयास नहीं है। मेरी इस पुस्तक के माध्यम से मैं एक डॉक्टर का काम कर रहा हूं, पंडित या मौलवी का नहीं। यह पुस्तक और इसमें दिया गई सूचना अपने आप किसी का भला नहीं कर सकती, जब तक इसे ज्ञान में न बदला जाए। यह सिर्फ आपको अपना भला करने का तरीका बता सकती है, आपको एक बेहतरीन और कामयाब बीमा एजेंट बनने के लिए रास्ता दिखा सकती है। आप इस पुस्तक से कितना जुड़ पाएंगे और कितना लाभ उठा पाएंगे, यह आप पर निर्भर है।
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क्या बीमा एजेंट का काम मुश्किल है?
अक्सर बीमा एजेंट को अपना काम कठिन लगता है। इसका कारण है कि बाकी कोई भी सामान जैसे फल, फर्नीचर या कार आदमी तब खरीदता है जब उसे इनकी आवश्यकता महसूस होती है, लेकिन जीवन बीमा में एजेंट का 90 प्रतिशत समय ग्राहक को ये समझाने में जाता है कि उसे बीमे की आवश्यकता है। कौन सा प्लान चाहिए, कितने प्रिमियम का चाहिए, किसके नाम