Share Bazar Khajane ki Chabi (शेयर बाज़ार: खज़ाने की चाबी : खज़ाने की चाबी)
By Anand Kumar
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Share Bazar Khajane ki Chabi (शेयर बाज़ार - Anand Kumar
बातें
1
शेयर : परिचय
आज के भौतिकवादी जीवन में धन की महत्ता से इंकार नहीं किया जा सकता। धन साध्य ही न हो परंतु यह सबसे बड़ा साधन है। एक उच्च व्यक्ति से लेकर सामान्य व्यक्ति तक धन की इस महत्ती आवश्यकता को स्वीकार करता है। हर व्यक्ति विभिन्न माध्यमों से धन कमाने की जुगत करता है और उसे अपने भविष्य को सुरक्षित रखने को संग्रहीत भी करता है। धन संग्रह का एक माध्यम बैंकिंग प्रणाली भी है, जहां हमारा धन पूर्णतया सुरक्षित और संयमित रहता है, परंतु बैंकिंग व्यवस्था में धन की बढ़ोतरी उतनी तीव्रता से नहीं होती, जितनी तीव्रता वर्तमान की मांग है। ऐसे में हम अगर थोड़े से विवेक और जागरूकता के साथ अपने धन को विस्तृत क्षेत्र की ओर ले जाएं तो धन वर्तमान की मांग के अनुरूप ही विकास करता है और इसके लिए सबसे उचित और सुरक्षित क्षेत्र है शेयर बाज़ार।
यह जानने के लिए कि यह शेयर-बाज़ार है क्या? आइए, पहले हम यह जानते हैं कि शेयर क्या है? सामान्य बोलचाल की भाषा में जब हम शेयर की बात कर रहे होते हैं, तो हमारा मतलब किसी कंपनी द्वारा अपने मूलधन को एक निश्चित अनुपात में बांटकर जारी किए गए हिस्से होता है, अर्थात् दूसरे शब्दों में शेयर का मूल अर्थ कारोबार में हिस्सेदारी है।
इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ यह है कि जब आप किसी शेयर में निवेश कर रहे होते हैं, तब आप अपना धन बाज़ार के किसी सौदे को खरीदने में नहीं व्यय कर रहे होते हैं, अपितु एक संपूर्ण कारोबार में हिस्सेदारी हासिल कर रहे होते हैं। इस तरह आप अंशतः उस कंपनी के मालिक बन जाते हैं।
यह तो आप भी जानते हैं कि जब हम किसी कंपनी या कारोबार को संचालित करते हैं तब हमारे पास लाभ और हानि दोनों की समान संभावनाएं निहित होती हैं।
कैसे जारी होते हैं शेयर
सभी कंपनियां, जो शेयर जारी करती हैं, उसका एक तय मूल्य होता है, जो बाज़ार की भाषा में ‘तय वैल्यू’ या ‘पार वैल्यू’ कहा जाता है। यह मूल्य शेयर सर्टिफिकेट पर स्पष्टतः अंकित होता है। अमूमन भारत में यह तय वैल्यू 10 रुपए होती है, हालांकि कतिपय कम्पनियों ने अब इन्हें 5 रुपए, 2 रुपए व 1 रुपए तक के शेयरों में भी विभाजित करना शुरू कर दिया है। यह अंकित मूल्य कम्पनी के खाते में शेयर का सांकेतिक मूल्य होता है। बाद में यह बाज़ार में किसी भी भाव पर खरीदा या बेचा जा सकता है।
यहाँ यह भी समझ लेना आवश्यक होगा की बाजार में शेयर का भाव निरंतर चढ़ता या गिरता रहता है और उसका फेंस वैल्यू से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। परन्तु शेयरों पर डिविडेंड अथार्त लाभांश शेयर की पार वैल्यू के आधार पर ही तय किया जाता है।
निवेश किसे कहते हैं?
मान लीजिए कि आपने अपने धन से किसी ज़मीन का टुकड़ा खरीदा, जिसका मूल्य उस समय 1000 रुपए है, रास्ते की परेशानी अथवा आसपास की जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए उक्त ज़मीन की कीमत में पांच वर्ष में मात्र दस प्रतिशत की वृद्धि हुई, अर्थात् उस ज़मीन की वर्तमान कीमत 1100 रुपए हो गई जबकि मुद्रास्फीति की वज़ह से मुद्रा का अवमूल्यन 15 प्रतिशत हुआ, अर्थात् आपके द्वारा लगाए गए धन का वर्तमान मूल्य 1150 रुपए हुआ। ऐसे में आप देखेंगे कि प्रत्यक्षतः तो आपके द्वारा लगाया गया धन हालांकि 100 रुपए बढ़ा, परंतु वर्तमान मुद्रा के आकलन के हिसाब से आप 50 रुपए के घाटे में हैं। अगर इस घटना को हम अर्थशास्त्र की भाषा में परिभाषित करें तो वह यह होगा कि मुद्रा का मौलिक मापदंड मूलतः उसके द्वारा खरीदी गई वस्तुओं अथवा सेवाओं से आंका जा सकता है। सीधे शब्दों में आप अपनी जमा पूंजी का जो उपयोग उस पूंजी को स्थिर रखने या उसे बढ़ाने में उपयोग करते हैं, उसे निवेश कहा जाता है। चाहे आपने उसका उपयोग सोना, चांदी जैसे किसी धातु को खरीदने में किया हो अथवा ज़मीन, मकान आदि किसी अचल संपत्ति को खरीदने में।
चूंकि आप पूंजीधारक हैं, अतः अपनी पूंजी को स्थिर रखने अथवा उसे बढ़ाने के लिए आप उसका जो उपयोग कर रहे हैं, उसमें सर्वप्रथम आपके लिए यह निश्चित करना आवश्यक होता है कि आप अपनी जमा पूंजी का जो उपयोग कर रहे हैं, उसके साथ आपकी अपेक्षाएं क्या हैं। क्या आप निवेश से अपनी पूंजी में वृद्धि चाहते हैं, नियमित आय अथवा दोनों। परंतु अपनी अपेक्षाओं के साथ-साथ आपके लिए यह जांचना भी आवश्यक है कि भविष्य में आपकी आवश्यकताएं क्या हैं। यह जांच कर लेने से आप अपनी प्राथमिकताएं आसानी से तय कर पाएंगे और आपके सामने यह स्पष्ट हो सकेगा कि आप अपने निवेश पर कितनी वृद्धि और कितनी आय चाहते हैं। तब आपके सामने यह निर्णय लेना आसान हो जाएगा कि कौन-सा निवेश आपके लिए उपयुक्त है। बाज़ार को समझना और अपनी प्राथमिकताएं तय करना एक बेहतर निवेशक के लिए अति आवश्यक है और यह पूजी निवेश की कला है।
निवेश की आवश्यकता
अगर हम अपने वर्तमान से कुछ दशक पीछे जाएं और 20वीं सदी के मध्यवर्ती दशकों के बाज़ार पर ध्यान दें, तो हम पाएंगे कि तीस-चालीस के दशकों में बाज़ार में चीज़ों के मूल्य लगभग स्थिर रहते थे। अगर बाज़ार मूल्यों में थोड़ी-बहुत तेज़ी-मंदी आती भी थी, तो ऐसी नहीं कि वह हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर कोई स्पष्ट प्रभाव डाल सके। यही कारण था कि तब हम आर्थिक असुरक्षा का बोध नहीं करते थे, परंतु धीरे-धीरे बाज़ार के स्वरूप में तब्दीली शुरू हुई और बाज़ार ने सामान्य उपभोक्तवादी संसार से निकलकर अपने कदम विश्व के विशिष्ट उपभोक्तावादी दुनिया की ओर रखे। साठ के दशक तक आते-आते बाज़ार मूल्यों में निरंतर वृद्धि होने लगी और रुपए का मूल्य गिरने लगा। परिणाम यह हुआ कि निश्चित आय वाला समुदाय (सामान्यतः उच्च-मध्यम वर्ग) अपनी आर्थिक सुरक्षा एकाएक गंवा बैठा। सत्तर और अस्सी के दशक में तो यह स्थिति बद से बदतर होती गई। विगत कुछ दशकों में उपभोक्ता दामों में 10 गुणा से अधिक वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में कहें तो 60 के दशक में 1 रुपए की जो क्रय-क्षमता थी आज उसकी कीमत कुल 4 पैसे रह गई है। पिछले 40 वर्षों में मुद्रास्फीती का सालाना चक्रवृद्धि दर 7-8 प्रतिशत रहा है।
भूमंडलीकरण के इस वर्तमान परिवेश में अब मुद्रास्फीती अब अर्थव्यवस्था का एक आवश्यक है। अंतर केवल इतना है कि इसका दर कभी कम हो सकता है, तो कभी अधिक। ऐसे में हम तीस के दशक में आर्थिक मापदंडों को कायम रखकर परंपरागत ढंग से मात्र वेतन, पेंशन अथवा एक दायरे में सिमटे कृषि संसाधनों से प्राप्त आय से अपना कदम वर्तमान व्यवस्था से मिलाकर चल सकेंगे, यह सोचना भी मात्र कल्पना ही है। ऐसे में अपने भविष्य को सुविधाजनक बनाने और सुरक्षित रखने के लिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम अपने जमा धन की क्रय-क्षमता को बढ़ाने के लिए एक सुविधाजनक मार्ग की तलाश करें और उसका एक बेहतर उपाय है, अच्छा निवेश। ऐसा निवेश जिसमें हम न सिर्फ़ अपनी जमा राशि का मूल्य बढ़ा सकें, अपितु इस वृद्धि की मुद्रास्फीती की दर से भी अधिक भी रख सकें। अगर मुद्रास्फीती की दर 8 प्रतिशत है तो हम आदि काट कर आमदनी में 10-12 प्रतिशत वृद्धि होने पर आप अपनी क्रय क्षमता बढ़ा पाएंगे।
ऐसे में आपके लिए निवेश का मूल सैद्धांतिक समझ अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है, ताकि आप वर्तमान से कदम-दर-कदम मिलाकर चल सकें और अपने भविष्य को पूर्ण सुरक्षित बना सकें।
आपने शेयर बाज़ार में होने वाली जबरदस्त कमाई के किस्से जरूर सुने होंगे और आपके मन में भी इस तरह का लाभ हासिल करने की इच्छा जागी होगी, लेकिन आपने अपने किसी मित्र के बारे में ऐसी डरावनी ख़बर भी सुनी होगी कि वह किस तरह शेयर बाज़ार में अपनी सारी जमा-पूंजी गंवा बैठा और तब आपने स्वयं को ढांढस बंधाया होगा कि शेयर बाज़ार में पैसे न लगाकर आपने ठीक ही किया।
शेयर के बारे में पूर्वाग्रह छोड़कर यह जानने का प्रयास करें कि शेयर है क्या? विवेकवान निवेशक काफी समझदारी के साथ शेयर खरीदते हैं और लाभ बटोरने में सफल भी होते हैं।
कई अध्ययनों से स्पष्ट हो चुका है कि दीर्घ अवधि में दूसरी सभी संपत्तियों की तुलना में शेयर से सबसे अधिक कमाई होती है। इसका अर्थ है कि आप बॉन्ड, फिक्स्ड डिपोजिट या सोने में निवेश करके जितना लाभ हासिल कर सकते हैं, उससे अधिक लाभ शेयर बाज़ार में निवेश करके हासिल कर सकते हैं।
यह भी सच है कि शेयर के साथ जोखिम भी जुड़ा होता है, लेकिन अगर आप लंबे समय तक खेलने में विश्वास करते हैं, तो आपको लाभ प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता।
लेकिन शेयर बाज़ार में निवेश करने से पहले जरूरी है कि आप शेयर के बारे में जरूरी बातों को अच्छी तरह समझ लें।
शेयर को समझना अंतरिक्ष विज्ञान को समझने की तरह कठिन नही है। आप अपनी संपत्ति को किस तरह अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते हैं और नुकसान के कारणों को किस तरह दूर कर सकते हैं, इस तरह की रणनीति बनाने के लिए अत्यधिक मेधावी होने की आवश्यकता नहीं है।
अगर आप सोचते हैं कि आपके पास पर्याप्त समय नहीं है, तब आप किसी पोर्टफोलियो मैनेजर या म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश कर सकते हैं, लेकिन आपको कुछ बुनियादी बातों की जानकारी रखनी पड़ेगी। यह जानना पड़ेगा कि कौन-सा फंड बेहतर है, फंड मैनेजर का चुनाव किस तरह किया जाए और उसके प्रदर्शन पर किस तरह नज़र रखी जाए।
किसी भी व्यवसाय में कई प्रकार की संपत्तियां होती हैं - मशीन, भवन, फर्नीचर, नगदी इत्यादि।
इसी तरह व्यवसाय में देनदारियां भी होती हैं। कम्पनी पर दूसरों का बकाया होता है। बैंक का ऋण, उधार ली गई सामग्रियां आदि देनदारियां कहलाती हैं।
कुल संपत्ति में से देनदारियों को घटाने के बाद जो बचता है, उसे मूलधन कहते हैं।
संपत्ति - देनदारियां = मूलधन
मूलधन वह राशि है जो व्यवसाय में व्यक्ति के पास होता है, जैसे-जैसे कारोबार बढ़ता जाता है और लाभ होने लगता है, वैसे-वैसे मूलधन भी बढ़ता जाता है। इसी मूलधन को शेयरों (या स्टॉक) के रूप में विभाजित किया जाता है।
अगर किसी कम्पनी का मूलधन 10 करोड़ रुपए है, तो इसे 10 रुपए प्रति शेयर के रूप में एक करोड़ शेयरों में विभाजित किया जा सकता है।
मूलधन का हिस्सा या कुछ शेयर उनके पास रहता है, जो कारोबार को शुरू करते हैं और उन्हें प्रोमोटर्स कहा जाता है।
शेष शेयर निवेशकों के पास होता है। ये निवेशक हम और आप जैसे आम लोग होते हैं या म्यूचुअल फंड और अन्य संस्थागत निवेशक होते हैं।
शेयर खरीदने का अर्थ
अब आप समझ गए होंगे कि शेयर खरीदने का अर्थ कारोबार में हिस्सेदारी हासिल करने की तरह होता है।
जब आप शेयर में निवेश करते हैं, तब आप बाजार में निवेश नहीं करते, आप एक कम्पनी के इक्टिवटी शेयर में निवेश करते हैं। इस तरह आप कम्पनी के शेयर होल्डर या आंशिक रूप से मालिक बन जाते हैं।
चूंकि आप कम्पनी की संपत्ति के अंश के स्वामी होते हैं, इस तरह संपत्ति से अर्जित होने वाले मुनाफे या घाटे के हिस्सेदार भी बन जाते हैं।
मान लीजिए, आप गुजरात अम्बुजा सीमेंट के 100 शेयरों के मालिक हैं, तो इसका अर्थ है कि आप उस कम्पनी के क्षुद्रतम हिस्से के स्वामी हैं, चूंकि उस कम्पनी के लाखों शेयर हैं।
शेयर ख़रदीने का अर्थ है कि किसी कारोबार को चलाने का सिर दर्द मोल लिए बिना ही उस कारोबार का हिस्सेदार बन जाना।
उदाहरण के तौर पर, अगर गुजरात अम्बुजा सीमेंट को मुनाफा होता है तो आपके शेयर का भाव भी बढ़ सकता है या घाटे की नौबत आने पर आपके शेयर का भाव भी घट सकता है।
भाव में वृद्धि का अर्थ
अगर किसी कम्पनी ने अपने मूलधन को 10 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से विभाजित कर दिया है, तो 10 रुपए का शेयर का ‘फेस वैल्यू’ कहा जाएगा। जब शेयर की खरीद-बिक्री शेयर बाज़ार में की जाएगी, तो उसकी मांग और आपूर्ति के आधार पर उसके भाव में भी अंतर आ जाएगा।
अगर सभी उसी कम्पनी के शेयर खरीदना चाहेंगे तो भाव में वृद्धि आ जाएगी। अगर कोई शेयरों को खरीदने में दिलचस्पी नहीं लेगा और ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उस कम्पनी के शेयरों को बेचना चाहेंगे, तब भाव नीचे चला जाएगा।
किसी भी समय शेयर बाज़ार में शेयर के मूल्य को ‘शेयर का मूल्य’ या ‘शेयर का मार्केट वैल्यू’ कहा जाता है। इस तरह 10 रुपए के फेस वैल्यू वाले शेयर को 55 रुपए में (फेस वैल्यू की तुलना में अधिक पर) या 9 रुपए में (फेस वैल्यू की तुलना में कम कीमत पर) बेचा जा सकता है।
जब किसी कम्पनी के शेयरों की संख्या के साथ उनके मार्केट वैल्यू को गुणा किया जाता है तो मार्केट कैपिटलाइजेशन सामने आता है।
उदाहरण के तौर पर, 1 नवंबर 2006 को एक कम्पनी के एक करोड़ शेयरों का फेस वैल्यू 10 रुपए और मार्केट वैल्यू 30 रुपए है तो 1 नवंबर