Complete Personality Development Course
By Surya Sinha
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About this ebook
इस पुस्तक में मैंने व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व, भीतरी गुणों, विचारों, भावनाओं और बातचीत आदि के दूसरों पर पड़ने वाले प्रभाव का बारीकी से खुलासा किया है। यह मेरे जीवन के अनुभव का अनूठा संग्रह है लिहाजा मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक आपको अवश्य ही पसन्द आएगी।
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Complete Personality Development Course - Surya Sinha
व्यक्तित्व
दोस्तों, व्यक्तित्व-निखार की जब हम बात कर रहे हैं तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि व्यक्तित्व आख़िर चीज़ है क्या?
व्यक्तित्व किसी एक चीज़ का नाम नहीं है, बल्कि इसमें व्यक्ति के बाह्य सौन्दर्य के साथ-साथ भीतरी सौन्दर्य एवं गुणों का भी समावेश होता है। व्यक्तित्व को गहराई से तथा भलीभांति समझने के लिए इसे इस प्रकार समझें‒
व्यक्तित्व = बाह्य व्यक्तित्व + आंतरिक व्यक्तित्व
ठीक इसी प्रकार :
आकर्षक व्यक्तित्व = व्यक्ति का बाह्य सौन्दर्य + व्यक्ति के भीतरी गुणों का सौन्दर्य
व्यक्ति के बाह्य सौन्दर्य में आता है - उसका शारीरिक गठन व खूबसूरती, व्यक्ति के नैन-नक्श, उसके उठने-बैठने का ढंग, व्यक्ति का पहनावा आदि। कहने का मतलब वो सभी बातें जिनसे व्यक्ति की बाहरी सुंदरता दिखती हो।
व्यक्ति के भीतरी गुणों के सौन्दर्य से हमारा तात्पर्य है, व्यक्ति के भीतरी वो गुण जिनकी वजह से असल आकर्षण निखरकर सामने आता है उसका यही गुण आदमी के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है। व्यक्ति अपने भीतरी गुणों के कारण ही सफलता की बुलन्दियों को छूता है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की सफलता में अगर व्यक्ति का बाह्य सौन्दर्य 10 प्रतिशत भूमिका निभाता है तो व्यक्ति के भीतरी गुणों का सौन्दर्य 90 प्रतिशत भूमिका निभाता है। व्यक्ति के भीतरी गुणों में व्यक्ति का चरित्र, व्यक्ति का व्यवहार, व्यक्ति का देखने, सोचने व समझने का नजरिया और काम करने का ढंग आदि आते हैं।
जब बाह्य सौन्दर्य व व्यक्ति के भीतरी गुणों के सभी तत्वों का सही-सही समावेश व्यक्ति में होता है, तब हम कहते हैं अमुक आदमी विकसित और प्रभावशाली व्यक्तित्व से भरपूर है। इनमें से यदि एक भी तत्व कम है। यानी बाहरी तौर पर आप बहुत सुन्दर हैं, स्मार्ट हैं, अच्छे वस्त्र पहनते हैं, उठने-बैठने का सलीका भी आपमें है और आप बातें भी अच्छी-अच्छी करते हैं, लेकिन यदि आपका व्यवहार अच्छा नहीं है, आपमें अच्छे गुण नहीं हैं, आपका नजरिया नकारात्मक है, आपके विचार ओछे हैं, आपका स्वभाव ठीक नहीं है या आपने बुरी आदतें पाली हुई हैं तो आपका बाहरी सौन्दर्य कोई मायने नहीं रखता। सबकुछ अर्थहीन हो जाएगा।
आपके बाहरी व्यक्तित्व से सामने वाला तभी तक प्रभावित रहेगा, जब तक आपका भीतरी व्यक्तित्व उसके सामने नहीं आता। जैसे ही उसे आपके घटिया व्यवहार, अवगुणों, नकारात्मक नज़रिए, बुरे विचारों, चिड़चिड़े स्वभाव और गन्दी आदतों का पता चलता है, वैसे ही आपका प्रभाव उस पर से छू-मन्तर हो जाता है। आपके इस प्रभाव को टूटने में एक क्षण भी लग सकता है, एक दिन भी लग सकता है और एक महीना भी लग सकता है। कहने को इसे हम व्यक्तित्व का क्षणिक प्रभाव भी कह सकते हैं।
यदि आपके पास सुन्दर शरीर नहीं है, वस्त्र भी अधिक मूल्यवान नहीं हैं तो हो सकता है कि पहली बार में सामने वाला आपसे प्रभावित न हो, लेकिन जैसे-जैसे उसके सामने आपका भीतरी सौन्दर्य उजागर होता जाता है, वैसे-वैसे उसके दिल पर आपकी छाप बैठने लगती है। इस बात को दूसरे शब्दों में यूं भी कह सकते हैं कि सामने वाले को आपकी मीठी-संयमित बोलचाल, अच्छे व्यवहार, सद्गुणों, सकारात्मक नज़रिए, विकसित विचारों, सुन्दर स्वभाव और अच्छी आदतों का पता जैसे-जैसे चलता जाता है, वैसे-वैसे उस पर आपके व्यक्तित्व का सम्मोहन भी बढ़ता चला जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन पर हमारे बाहरी सौन्दर्य का 10 प्रतिशत और भीतरी सौन्दर्य का 90 प्रतिशत प्रभाव पड़ता है। जब सभी तत्वों का उचित अनुपात में समन्वय होता है, तब बनता है एक प्रभावशाली और विकसित व्यक्तित्व।
इस सन्दर्भ में मैं विश्वप्रसिद्ध विचारक सुकरात का उदाहरण देना चाहूंगा। सुकरात देखने में बिल्कुल भी सुन्दर नहीं थे। बाहरी सौन्दर्य के नाम पर उनके पास कुछ भी नहीं था, यानी कुरूप चेहरा, बड़े-बड़े कान, लम्बी नाक। लेकिन भीतरी सौन्दर्य में वे 100 प्रतिशत खरे थे और उनके उस भीतरी सौन्दर्य ने ही उन्हें महानता की ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इसी प्रकार महात्मा गांधी थे। हालांकि वह कुरूप तो नहीं थे, लेकिन सादगी पसंद अवश्य थे। उनके पास आकर्षक शरीर नहीं था, लेकिन भीतरी सौन्दर्य इतना जबरदस्त था कि एक धोती और लाठी के बल पर ही वह पूजनीय हो गए। अंग्रेजों को उनके भीतरी सौन्दर्य के सामने आख़िर झुकना पड़ा, घुटने टेकने पड़े और देश आज़ाद हो गया।
तो दोस्तों, बाहरी सौन्दर्य हो तो अच्छी बात है, लेकिन यदि उसमें कोई कमी-बेशी भी है, तो आपका भीतरी सौन्दर्य कम से कम इस हद तक होना चाहिए कि वह बाहरी कमी को ढक ले। देखने वाले को केवल उसकी खूबियां दिखाई दें, खामियां नहीं। किसी रूप में यदि कोई कमी या खामी दिखाई भी दे, तो वह उसे देखना ही न चाहे, अनदेखा कर दे।
□
व्यक्तित्व के आयाम
वर्तमान समाज में पर्सनैलिटी शब्द बहुत ही प्रचलित हो चुका है। यह आज के युवा वर्ग का न सिर्फ़ प्रिय शब्द बन चुका है, बल्कि प्रत्येक युवक के लिए अपनी पर्सनैलिटी को डेवलॅप करना अनिवार्य भी हो गया है। यही कारण है कि प्रत्येक युवक चाहता है कि उसकी पर्सनैलिटी न केवल अच्छी व आकर्षक बने बल्कि दिखे भी। वैसे भी अच्छे व्यक्तित्व (पर्सनैलिटी) का होना आज की युवा पीढ़ी की न सिर्फ़ जरूरत है, बल्कि उसके लिए अति आवश्यक भी है। ‘पर्सनैलिटी’ शब्द का अर्थ ज्यादातर लोग व्यक्तित्व के बाहरी रूप को ही समझते हैं। यानी व्यक्ति की वेशभूषा, शारीरिक गठन व बाहरी सौन्दर्य आदि। शायद यही कारण है कि आजकल हर गली-मोहल्ले में ब्यूटी पार्लर और जिम खुल रहे हैं। यहां पर न केवल युवा, बल्कि अधेड़ उम्र के लोग भी जाकर अपने बाहरी सौन्दर्य को निखारना चाहते हैं और इसके लिए वे ना जाने कितना पैसा भी खर्च कर रहे है।
फल-फूल रही इस प्रवृत्ति पर यदि हम गौर करें तो पाएंगे कि व्यक्ति का यह बाहरी रूप उसके व्यक्तित्व का अंश मात्र ही है। आप अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व तभी निखार पाने में सक्षम होते हैं, जब आप अपने सभी आन्तरिक गुण, क्षमता और बाहरी पक्षों को स्वच्छ करते हैं। इससे न सिर्फ़ आपके व्यक्तित्व में निखार आता है, बल्कि आप अपने सभी पक्षों का सन्तुलित विकास करने में भी सक्षम हो जाते हैं।
यदि हम अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व की बात करें तो पाएंगे कि हमारा व्यक्तित्व मुख्यतः छः बिन्दुओं पर आधारित है। किसी भी एक बिन्दु की अनुपस्थिति या कमी से हमारा जीवन-चक्र ठीक तरह से चल नहीं सकता। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हम अपने व्यक्तित्व से जुड़े सभी आधार बिन्दुओं को सन्तुलित रखें, जिससे हमारा जीवन-चक्र सन्तुलित व सुव्यवस्थित रूप से चलता रहे। व्यक्तित्व के यह छः आधार बिन्दु इस प्रकार से हैं‒
शारीरिक
बौद्धिक
मानसिक
भावात्मक
सामाजिक
आध्यात्मिक
आइए, अब इन आधार बिन्दुओं पर ज़रा विस्तार से चर्चा कर लें‒
शारीरिक
शरीर आपके व्यक्तित्व की एक इकाई मात्र है, न कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व। व्यक्तित्व मुख्यतः छः आयामों से मिलकर बना है और उन सबका समानुपात सन्तुलन ही मायने रखता है। इसके विपरीत आज के ज्यादातर युवकों को अगर हम देखें तो पाएंगे, कि उनका मुख्य ध्यान शारीरिक गठन व बाहरी दिखावे पर ही अधिक केन्द्रित रहता है।
इसमें दो राय नहीं कि पहली नज़र में हमारा बाहरी रूप ही आकर्षण का केन्द्र बनता है। इसलिए शारीरिक विकास के लिए लोग खेल-कूद, व्यायाम, योगासन और एरोबिक्स आदि को अपनाते हैं और अपने शारीरिक पक्ष को खूबसूरत रूप देने की कोशिश करते हैं। युवकों की यह सोच अपनी जगह सही है, परन्तु पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए अन्य पांचों पक्षों (बौद्धिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक, आध्यात्मिक) पर भी ध्यान देना अनिवार्य है।
कीमती वस्त्र, चमचमाते जूते और मज़बूत शरीर ही व्यक्तित्व नहीं होता। हां, इससे पहली नज़र में व्यक्ति आपकी तरफ आकर्षित अवश्य हो सकता है, किन्तु जब उसके सामने आपका बौद्धिक स्तर उजागर होता है, जब वह आपकी मानसिकता से रु-ब-रू होता है, जब वह देखता या महसूस करता है कि‒आप कितने भावात्मक हैं। समाज के प्रति आप कितने जवाबदेह हैं या आपके विचार कैसे हैं। आप कितने आध्यात्मिक हैं, तभी वह आपके बारे में कोई ठोस राय बनाता है।
अतः जहां तक सम्भव हो, आप अपनी बाहरी सुन्दरता के साथ-साथ भीतरी सुन्दरता पर भी पर्याप्त ध्यान दें।
भीतर की सुन्दरता अध्यात्म से जुड़ा विषय है। व्यक्ति आत्मचिन्तन करे। साथ ही मानसिक एकाग्रता कायम रखे। इन दो बातों से उसके वैचारिक व बौद्धिक पक्ष प्रबल होते हैं, जो उसके व्यावहारिक जीवन को प्रभावित करते हैं। भीतर की सुन्दरता के प्रभाव से ही एक विशेष आभामंडल भी बनता है जो उसकी बाहरी सुंदरता को निखारता तो है साथ ही साथ उसके रूप में चार चांद भी लगाता है।
बौद्धिक
आज हमारे समाज व देश की शिक्षा पद्धति बच्चों व युवाओं के बौद्धिक विकास के लिए पूरी तरह से लगी हुई है। हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति बौद्धिक विकास के अनेक विषयों से छात्रों को परिचित कराती है। उदाहरण के लिए‒गणित, विज्ञान, भूगोलशास्त्र, समाजशास्त्र, एकाउटेन्सी, कम्प्यूटर आदि। ऐसे विषय छात्रों की समझने की शक्ति, तार्किक शक्ति व चिन्तन शक्ति को तो अवश्य विकसित करते हैं, परन्तु इनसे छात्रों की सम्पूर्ण मानसिक शक्तियों का विकास नहीं हो पाता है। कारण, हमारी शिक्षा पद्धति व्यक्तित्व से जुड़े आधार बिन्दुओं (शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक) पर ध्यान देती ही नहीं और न उनके विकास के लिए ही कोई प्रयत्न करती है।
यह ठीक है कि बौद्धिक रूप से आपको मज़बूत होना चाहिए। इसी से आप दुनिया के विषय में जानते हैं। इसी से आपकी तार्किक शक्ति बढ़ती है, इसी से आप तर्क-वितर्क करके अच्छे-बुरे के विषय में निर्णय कर पाते हैं। भाषा या भाषाओं का ज्ञान, बोलचाल की तहज़ीब, शिष्टाचार, समाज का ढांचा, अपने परिवार व समाज के संस्कार, अपने और दूसरे देशों की संस्कृति आदि का ज्ञान हमें शिक्षा से ही मिलता है। शिक्षा हमारे व्यक्तित्व की एक दूसरी इकाई है।
आप सुन्दर हैं, स्वस्थ हैं और साथ ही शिक्षित भी हैं, तो यह आपके व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया है। बस, अपने प्रयास से आपको इसे निरन्तर आगे बढ़ाते जाना है।
यूं तो शारीरिक और बौद्धिक विकास बचपन से ही आरम्भ हो जाता है, लेकिन कुछ लोग बौद्धिक विकास को अधिक महत्व नहीं देते। वे समझते हैं कि ऊंच-नीच की चंद बातें जान लेना ही काफी है। आज से तीस-चालीस वर्ष पहले हमारे देश में शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं था। अधिकांश लोगों को शिक्षा का महत्व तक मालूम नहीं था, लेकिन अब लोग शिक्षा के महत्व को समझ चुके हैं। आज लोग समझते हैं कि एक अच्छे जीवन स्तर के लिए व्यक्तित्व विकास और शिक्षा का क्या महत्व है।
इस सन्दर्भ में सुधि पाठकों के लिए मेरी राय है कि वे पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें। अपनी दैनिक चर्चा में से थोड़ा समय निकालकर ऐसे पुस्तकालय में अवश्य जाएं; जहां पठन-सामग्री पर्याप्त मात्रा में निःशुल्क उपलब्ध होती है। वहां जाकर रुचि अनुसार पत्र-पत्रिकाओं अथवा पुस्तकों का अध्ययन करें। इस संदर्भ में कहानियां भी आपके लिए बहुत लाभप्रद होंगी। कहानियां भी बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। समाचार देखना-सुनना भी बौद्धिक विकास का अच्छा और प्रभावी साधन है।
आपको चाहिए कि बौद्धिक स्तर बढ़ाने के लिए सदा नए-नए विषयों की जानकारी लें और सीखने की प्रक्रिया को कभी बाधित न होने दें। सीख या ज्ञान का भण्डार विशाल है। ज्ञान की गहराइयों में जाएं। जितनी गहराइयों में जाएंगे, आपका ज्ञान भण्डार उतना ही उन्नत होगा। जितने अधिक विषय की आपको जानकारी होगी, उतना ही आपका बौद्धिक विकास होगा और यही आपके व्यक्तित्व विकास में सहायक होगा।
मानसिक
मानसिक पक्ष से तात्पर्य यह है कि आपमें मानसिक सन्तुलन, एकाग्रता, धैर्य एवं मनोबल कितना है। आज के ज्यादातर युवा व्यक्तित्व के इस पक्ष से अनजान हैं। यह हमारे जीवन का एक ऐसा बिन्दु है, जिस पर हमारी खुशियां व सुख-समृद्धि आधारित है। अफ़सोस की बात यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली इस कमी को अभी तक पूरा करने में सक्षम नहीं हो पाई है।
मैंने देखा है कि बहुत अधिक पढ़े-लिखे कुछ लोग भी मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। शिक्षित लोगों में भी व्यग्रता, अधीरता, असंयमितता और उद्दण्डता देखने को मिल जाती है। शिक्षा विषय अलग है और मानसिक परिपक्वता विषय अलग है। इन दोनों के सन्तुलित होने पर ही व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है।
हमारा मानसिक विकास ध्यान-साधना द्वारा स्वाध्याय व अपने मन को काबू में लाने से होता है। दुनिया में घटने वाली घटनाओं को देखकर हम सबक लेते हैं कि किस स्थिति में हमें मस्तिष्क को सन्तुलित रखना है।
कब और किस कार्य को पूर्ण करने के लिए एकाग्रता से कार्य करना होगा या कहां धैर्य की आवश्यकता है। कहां मनोबल को ऊंचा रखना है। कहां बोलना है या कहां खामोश रहना है। यह सब मानसिक एकाग्रता से नियंत्रित होता है। मनुष्य यह सब स्व-अनुभवों से भी सीखता है। हालांकि यह सब वह शिक्षा के माध्यम से पढ़ता अवश्य है, लेकिन ग्रहण करता है‒स्वअनुभव से ही।
यहां मैं यह अवश्य बताना चाहूंगा कि मानसिक विकास के लिए ध्यान-साधना बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे-जैसे आप ध्यान-साधना में दक्ष होते जाते हैं, वैसे-वैसे आपके मानसिक सन्तुलन, एकाग्रता, धैर्यशक्ति व मनोबल का भी विकास होता जाता है। इसका