आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध)
By दादा भगवान
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आत्मार्थियों ने आत्मा से संबंधित अनेक बातें अनेक बार सुनी होंगी, पढ़ी भी होंगी लेकिन उसकी अनुभूति, वह तो एक गुह्यत्तम चीज़ है! आत्मानुभूति के साथ-साथ पूर्णाहुति की प्राप्ति के लिए अनेक चीज़ों को जानना ज़रूरी है, जैसे कि प्रकृति का साइन्स, पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) को देखना-जानना, कर्मों का विज्ञान, प्रज्ञा का कार्य, राग-द्वेष, कषाय, आत्मा की निरालंब दशा, केवलज्ञान की दशा और आत्मा व इस स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के तमाम रहस्यों का खुलासा, जो मूल दशा तक पहुँचने के लिए माइल स्टोन के रूप में काम आते हैं। जब तक ये संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से दृष्टि में, अनुभव में नहीं आ जाते, तब तक आत्मविज्ञान की पूर्णाहुति की प्राप्ति नहीं हो सकती। और इन तमाम रहस्यों का खुलासा संपूर्ण अनुभवी आत्म विज्ञानी के अलावा और कौन कर सकता है? पूर्वकाल के ज्ञानी जो कह गए हैं, वह शब्दों में रहा है, शास्त्रों में रहा है और उन्होंने उनके देशकाल के अधीन कहा था, जो आज के देशकाल के अधीन काफी कुछ समझ में और अनुभव में फिट नहीं हो पाता। इसलिए कुदरत के अद्भुत नज़राने के रूप में इस काल में आत्म विज्ञानी अक्रम ज्ञानी परम पूज्य दादाश्री में पूर्णरूप से प्रकट हुए ‘दादा भगवान’ को स्पर्श करके पूर्ण अनुभव सिद्ध वाणी का फायदा हम सभी को मिला है।
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