Church Membership (Hindi): How the World Knows Who Represents Jesus
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About this ebook
Why should you join a church? Becoming a member of a church is an important, and often neglected, part of the Christian life. Yet the trend these days is one of shunning the practice of organized religion and showing a distaste or fear of commitment, especially of institutions. Jonathan Leeman addresses these issues with a straightforward explan
Jonathan Leeman
Jonathan edits the 9Marks series of books as well as the 9Marks Journal. He is also the author of several books on the church. Since his call to ministry, Jonathan has earned a master of divinity from Southern Seminary and a Ph.D. in Ecclesiology from the University of Wales. He lives with his wife and four daughters in Cheverly, Maryland, where he is an elder at Cheverly Baptist Church.
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Book preview
Church Membership (Hindi) - Jonathan Leeman
कर्इ डिनॉमिनेशन के कलीसियार्इ अगुवे पाएंगे कि यह छोटी पुस्तक व्यवहारिक कल्पनाओं उत्तम विवादों से परिपूर्ण है जो कलीसियार्इ सदस्यता, पासबान के अधिकार, जीवन के प्रति उत्तरदायित्व और उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कोर्इ भी सीमाओं के लिए उनकी चिढ़ (एलर्जी) से आज हमारी संस्कृति के मसीहियों को चंगा करने में सहायता करेगी।
टीम केलर, वरिष्ठ पासबान, रिडीमर प्रेस्बिटेरियन चर्च, न्ययॉर्क सिटी
संक्षिप्त और बाइबल आधारित, बुद्धिमानीपूर्ण और व्यावहारिक - कलीसिया अनुशासन की इस पुस्तक की खोज में आप थे।" मार्क डेव्हर, वरिष्ठ पासबान कैपिटॉल हिल बैप्टिस्ट चर्च, वांशिंग्टन, डी सी
व्यवहारिक, कायल करने वाली। बाइबल की दृष्टि से विश्वासयोग्य। लीमैन हमें स्मरण दिलाते हैं कि कलीसिया की सदस्यता चुनाव नहीं परंतु मांग है। यह पुस्तक प्रभावशाली और उत्साहित करने वाली है, परंतु उसी समय अनुग्रह के सुसमाचार से भरपूर है।
थॉमस स्क्रीनर, जेम्स बुचनन हैरिसन, नए नियम की व्याख्या के प्राध्यापक, सदर्न बैप्टिस्ट थियोलॉजिकल सेमिनरी।
हम ऐसे युग में रहते हैं जहां पर लोग कलीसिया के साथ ऐसा व्यवहार करते हैैंं और ऐसे निर्णय लेते हैं जैसे वे किसी रेस्तरां के साथ करते हैं। हमें हमारी उपभोक्तावादी नींद से जाग उठने की अत्यंत ज़रूरत है। यह पुस्तक एक चेतावनी है जो कलीसियार्इ उपभोक्ताओं को सुसमाचार में भाग लेने वालों के रूप में बदलने के लिए ज़रूरी है।
डॅरिन पॅट्रिक, प्रमुख पासबान, द जर्नी, सेंट लुर्इस, मिसूरी, लेखक, फॉर द सिटी अॅण्ड चर्च प्लांटर
कलीसियार्इ सदस्यता
जोनाथन लीमैन
Church Membership: How the World Knows Who Represents Jesus
Copyright © 2012 Jonathan Leeman
Published by Crossway1300 Crescent StreetWheaton, Illinois 60187
All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted in any form by any means, electronic, mechanical, photocopy, recording, or otherwise, without the prior permission of the publisher, except as provided for by USA copyright law.
Cover design: Dual Identity inc.
Cover image(s): Illustration by Wayne Brezinka for brezinkadesign.com
First printing 2012
Printed in the United States of America
Unless otherwise indicated, Scripture quotations are taken from THE HOLY BIBLE, NEW INTERNATIONAL VERSION®, NIV® Copyright © 1973, 1978, 1984, 2011 by Biblica, Inc.™ Used by permission. All rights reserved worldwide.
Scripture quotations marked esv are from the ESV® Bible (The Holy Bible, English Standard Version®), copyright © 2001 by Crossway. Used by permission. All rights reserved.
All emphases in Scripture quotations have been added by the author.
Trade paperback ISBN: 978-1-4335-3237-5PDF ISBN: 978-1-4335-3238-2Mobipocket ISBN: 978-1-4335-3239-9ePub ISBN: 978-1-4335-3240-5
Library of Congress Cataloging-in-Publication Data
Leeman, Jonathan, 1973-
Church membership : how the world knows who represents Jesus / Jonathan Leeman ; foreword by Michael Horton.
p. cm. — (9Marks)
Includes bibliographical references and index.
ISBN 978-1-4335-3237-5 (hc)
Copyright (© 2016) Translated and Published in Hindi by
Alethia Publications Chandra Niwas Building, Bitco Point, Nashik Road 422101, Maharashtra and 9Marks
alethiapublications@gmail.com
Translated by Samir B Salve
विषय-सूची
श्रृंखला आमुख
प्रस्तावना
परिचय : हमारी समझ से अधिक बडा लेन देन
(सदस्य बनना)
समापन : कलीसियार्इ सदस्यता प्रेम को कैसे परिभाषित करती है
अन्य सामग्री
विशेष आभार
टिप्पणियां
श्रृंखला आमुख
क्या आप मानते हैं कि एक स्वस्थ कलीसिया बनाना आपकी जिम्मेदारी है? अगर आप एक मसीही हैं तो हम समझते हैं कि यह आप की जिम्मेदारी है।
यीशु आप को शिष्य बनाने की आज्ञा देते हैं (मत्ती 28 :18-20)। यहूदा आप को विश्वास में बने रहने की आज्ञा देता है (यहूदा 20-21)। पतरस आप को आप के वरदानों द्वारा दूसरों की सेवा किये जाने के लिए कहता है (1 पतरस 4:10)। पौलुस आप को प्रेम में सत्य बोलने के लिये कहता है ताकि आप की कलीसिया का पूर्ण विकास हो सके (इफिसियों 4:13, 15)। क्या आप जानते हैं कि इन सब के बीच हमारा स्थान कहां है?
चाहे आप कलीसिया के सदस्य या अगुवे हों, स्वस्थ कलीसियाओं का निर्माण करने वाली इन पुस्तकों की श्रृंखला का उद~देश्य बाइबल की इन आज्ञाओं को पूर्ण करने में आप की सहायता करना है ताकि आप ऐसे चर्च के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकें। कहने का दूसरा तरीका यह हो सकता है कि हम आशा करते हैं कि जैसे यीशु आप की कलीसिया से प्रेम रखते हैं, ये पुस्तकें कलीसिया के प्रति वैसा ही प्रेम रखने में आप की सहायता करेंगी।
9मार्कस् प्रकाशन की योजना है कि एक स्वस्थ कलीसिया के जो 9 चिन्ह होते हैं उनमें से प्रत्येक के उपर एक लघु व पठनीय पुस्तक और साथ ही ठोस सिद्वांतों के उपर भी एक पुस्तक तैयार करे। व्याख्यात्मक प्रचार वाली पुस्तकें, बाइबल के धर्मसिद्धांत, कलीसिया की सदस्यता, कलीसियार्इ अनुशासन, शिष्यता और उसमें बढ़ना व कलीसिया की अगुवार्इ इत्यादि विषयों की पुस्तकों की ओर देखते रहिये।
स्थानीय कलीसिया इसलिये अस्तित्व में हैं कि वे देश-देश के लोगों को परमेश्वर की महिमा प्रगट करें। हम यीशु मसीह के सुसमाचार की ओर आंखे लगाने के द्वारा, उनसे उद्धार मिलने की आशा के द्वारा, परमेश्वर की पवित्रता, एकता और प्रेम में होकर एक दूसरे से प्रेम रखने के द्वारा उनकी महिमा प्रगट कर सकते हैं। हम प्रार्थना करते हैं जो पुस्तक आप के हाथ में हैं, वह आप की सहायता करेगी।
इसी आशा के साथ,
मार्क डिवर एवं जोनाथन लीमैन
श्रृंखला संपादक
प्रस्तावना
मार्क ट्वेन ने कहा था, बाइबल के वे भाग जिन्हें मैं समझ नहीं सकता, मेरी परेशानी का कारण नहीं है, परन्तु वे भाग है जिन्हें समझता हूँ।
दुख की बात है कि ट्वेन की टिपणी को हम बाइबल पर विश्वास करनेवालों के संदर्भ में संकेत के रूप में ले सकते हैं, विशेषकर तब जब बाइबल के वृतान्तों का संबंध कलीसियार्इ सदस्यों की जिम्मेदारियो जैसे विषयों से होता है।
सोचीये कि पश्चिमी संकृती कैसे हम सबको प्रभावित करती है, फिल्मस्टार जॉन वेनी के शब्दों को अकसर उद्धृत किया जाता है कि परमेश्वर उसे तब पसंद है जब वह (घर की) छत के निचे है। हमारे गायक गातें है ‘‘मुझे सीमाओं में मत बांधो’’ और मैंने अपने तरिके से यह किया है। विज्ञापन देनेवाले हमारे आत्म-पे्रम से स्पष्ट अपील करते है : अपने तरिके से ही करे और आप ही चालक के स्थान पर है। प्रसारण की ऐसी सभी बातों के कारण मित्रता, विवाह कार्य के स्थान और निश्चित रूप में कलीसिया के संबंध में जिम्मेदारीयों की नहीं पर लाभों की कामना करना आसान है।
आंशिक रूप में स्वत: निर्मित व्यक्तियों की तस्वीर जो स्वयं आपने द्वारा बनाये जूतों के सहारे आगे बढते है, संस्थाओं के प्रति हमें संदेहशील बनाती है। साथ ही साथ नेतृत्व और संस्थाओं के प्रमुख सार्वजनिक घोटाले, साथ ही प्रतिशोध की राजनीति, अवैयक्तिक और अप्रमाणशाली नौकरशाही, प्रतिज्ञाओं को तोडना जैसी बातों के नियमित रूप से घटने के कारण लोगों का विश्वास हिल चुका है। यहां तक कि वे जिनका पालन-पोषण कलीसियाओं में हुआ है, वे भी अपमानित, चोटिल और शोषित हुए है, उनके द्वारा जो मसीह के चरवाहे होने का दावा करते है।
किंतु कलीसिया के बाहर जो संस्कृति है केवल वही दोषी नहीं है। अधिकांश सुसमाचार प्रचारवाद धर्मपरायनता के ऐसे छदम रूप में है जो मसीह के साथ व्यक्तिगत संबंधों को ऐसा स्वरूप देता है जो दृश्य कलीसिया और उसकी सार्वजनिक सेवकार्इ के विरूद्ध है। आंशिक रूप में यह इसलिये है कि सुसमाचार प्रचारवादियों ने नाममात्र की प्रतिबद्धता और औपचारिकतावाद की उपेक्षा करना चाहा जो उपेक्षा की दृष्टी से सही है। परंतु इस प्रक्रिया में विशेषकर 19 वी सदी की दुसरी बडी जागृति के दिनों से हम ने औपचारिक कलीसिया के अधिकारियों और अनुग्रह के साधारण साधनों की, करिश्मार्इ अगुवों और असाधारण आंदोलनों का पक्ष लेते हुए, अलोचना करने की प्रवृत्ति पाल ली है। शीघ्र और आसान
वाद ने जांचों और परखों
जैसी आज्ञा को परास्त कर दिया है। अनुग्रह में धीरे धीरे बढनें के स्थान पर अतिशीघ्र संख्यावृद्धि को महत्व दिया जाता है। औपचारिक संरचना नहीं परन्तु व्यवहारीक परिणाम अब सफलता का सुत्र समझे जाते है।
हम में से बहुत से अपने जीवन में इस सुसमाचारकीय अपील को सुनते हुए बडे हुए है, मैं आप से किसी कलीसिया में शामिल होने के लिये नहीं, परंतु यीशु को व्यक्तिगत प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने कह रहा हूँ।
यह आश्चर्यजनक नहीं है कि बार बार ऐसी बातें सुनकर उद्धार पाने का, कलीसिया में सम्मिलित होने से कोर्इ संबंध नहीं रह जाता। और अब कुछ सुसमाचारकीय आंदोलन ऐसे भी है जो कलीसिया की सदस्यता का विषय चर्च से पुरी तरह लोप कर देते है। वे कहते है, ‘‘बस मिलतो रहो’’ या ‘‘नहीं’’। एक सुसमाचार प्रचारकीय अगुवे ने क्रांतिकारीयों के उदय का उत्सव मनाया, जिन्होंने किसी प्रकार तय किया की स्वयं कलीसिया बनने का अर्थ है किसी कलीसिया में शामील न होना। इन क्रांतिकारीयों ने इंटरनेट और अनौपचारिक सभाओं मे स्वयं के लिए आत्मिक संसाधन जुटा लिये है।
तब यह लेखक जो न केवल हमें बाइबल के बहुत से वृतान्त स्मरण कराते है जिन्हें दरकिनार कर दिया है, परन्तु इस प्रकार की बातें कहने का साहस भी रखते है कि मसीह ने हमें न केवल कलीसिया में सम्मिलित होने परन्तु कलीसिया की आधीनता में रहने भी बुलाया है। कलीसिया एक स्वैच्छिक संस्था या सोसाइटी नहीं है, जैसे की बाय-स्कॉटस या सियेरा-क्लब इत्यादि। यह मसीह के साम्राज्य का दूतावास है। कोर्इ भी राजा सुझाव नहीं देता, न उत्पाद बेचता है और न संसाधन देता है जिन्हें लोग स्वीकार या अस्वीकार करे।
लीमैन अराजक व्यक्तिवाद और विधीवादी अधिकारवाद के बीच के कारणों को समझते है और आज की मसीहियों की महती आवश्यकता है कि वे उन की बात सुनें। वे हमें दर्शाते है कि वर्तामान में प्रचलित इन चरम विचारधाराओं के लिये मसीह का राजा होना ही विष-विनाशक औषध है। मसीह हमें उद्धार देने, हम पर राज्य करते है और हम पर राज्य करने उद्धार करते है। इस युग के शासकों के समान, यीशु हम से उनके साम्राज्य के लिये अपना लहू बहाने की मांग नहीं करते। इसके बदले उन्होंने अपने राज्य के लिये स्वयं अपना जीवन दिया है। उसके बाद वे नयी सृष्टी के आरंभ की महिमा के रूप मे जिलाए गए और वे अब अपने राज्य के संगी-वारिसों को एकत्रित कर रहे है जो एक दुसरे से संबंधित है, क्योंकि वे सब मिलकर प्रभु के है। सदृष्य कलीसिया वह स्थान है जहां आप पृथ्वी पर मसीह का साम्राज्य पाएंगे, और साम्राज्य का अनादर करने का अर्थ है, उसके राजा का अनादर करना।
कुछ पाठकों को कलीसिया की सदस्यता के संदर्भ में बाइबल-सम्मत अहर्ताएं और आशीष के विषय में कायल होने की आवश्यकता है। कुछ दुसरे पहले ही कायल है और आश्चर्य करते है कि कलीसियार्इ जीवन की भूमि पर सिद्धांत कैसे व्यवहारिक बनते है। सदस्यता का मानदंड क्या है और पासबान के रूप में संवेदनशिलता के साथ वैधानिक रूप में न्याय की बुलाहट