Sangharsh Se Sikhar Tak: संघर्ष से शिखर तक
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सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह का जन्म एक गरीब किसान के घर हुआ परंतु अपनी मेहनत के बल पर उन्होंने सफलता के शिखर को छुआ । वे एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं। ' आप भी सफल हो सकते हैं', 'पाजिटिव थिंकिंग', ' सुनहरे कल की ओर', ' सफलता आपकी मुट्ठी में' और 'सोच बदलो सफलता पाओ' उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियां है।
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Sangharsh Se Sikhar Tak - Jogindar Singh
करो
उचित कार्य शैली अपनाएं
आदमी की पहचान उसकी संगति से होती है। यदि आप अपने से बेहतर लोगों के साथ ज्यादा समय बिताएंगे तो आप उनकी अच्छाइयों को भी ग्रहण करेंगे और सकारात्मक विचार वाले हो सकेंगे। इसीलिए हमारे शास्त्र हमें संत-महन्तों का साथ करने की राय देते हैं। उनसे आप सही तरह से बोलने या आचरण करने की सीख ग्रहण करते हैं, लेकिन यदि खुंदस करने वाले और शिकायती लोगों का साथ करेंगे तो वैसे ही हो जाएंगे। याद रखें, जीवन काल ज्यादा बड़ा नहीं होता, आपको जल्दी ही सही रास्ता अपनाना चाहिए। इसमें कोई तीर-तुक्का नहीं उनको देखने परखने की अक्ल चाहिए जो जीवन में कुछ प्राप्त कर चुके हैं। उनका साथ कभी न करें जो आपकी शक्ति या ऊर्जा व्यर्थ में ज़ाया करते हैं। हमें अपना लक्ष्य प्राप्त करने को पूरी शक्ति या ऊर्जा चाहिए। आधे-अधूरे से कुछ काम नहीं बनेगा। पूरी निष्ठा से काम करने के लिए हमें न सिर्फ उत्साही होना चाहिए वरन् निश्चिंत भी होना चाहिए। आप जानते ही हैं कि ज़रा-सी बीमारी भी हमें कमज़ोर कर जाती है। ऐसे किसी व्यक्ति का साथ न करें जो आपकी ऊर्जा व्यर्थ जाने देता है। ऋणात्मक विचार वाले तथा हमेशा शिकायत करने वाले भी ऐसे ही होते हैं। किसी असाध्य रोग की तरह उनका परहेज़ करें।
चाहे आप अपने लिए काम करें या किसी संस्था के लिए, जब तक आपको काम में आनन्द नहीं आएगा तब तक किसी का भला नहीं होगा। काम में आनन्द एवं लक्ष्य की स्पष्टता ही सफलता का मूल मंत्र होता है। मौके आप खुद तलाश करें उसकी प्रतीक्षा न करें। पता नहीं कब चमत्कार हो जाए। आपका जीवन, आपका हुनर, आपको अपने जौहर दिखाने के लिए स्वयं ही ईश्वर प्रदत्त मौका देता है।
सफलता के लिए आवश्यक है कि आप अपनी बात दूसरे तक स्पष्ट रूप से पहुंचा सकें। खेद की बात है कि हमारी समस्याओं का अस्सी प्रतिशत कारण अपनी बात सही ढंग से दूसरे तक न पहुँचा पाना ही है। परिवर्तन तो प्राकृतिक नियम है। सम्बन्ध बदल जाते हैं, दोस्ती खंडित हो जाती है और पुरानों से नाता टूट जाता है परन्तु हमें ऐसे बदलावों के साथ सामंजस्य बिठाना आना चाहिए। हमारी बहसों और वाद-विवादों का मूल कारण हमारा दूसरे की बात स्पष्ट न समझ पाना होता है। कम से कम हममें इतनी शराफ़त तो होनी ही चाहिए कि हम दूसरे की पूरी बात तो समझें। जब दूसरों से बात करें तो निगाह उस पर ही रखें। उनसे सहमत न होते हुए भी हमें उनकी बात तो पूरी सुननी ही चाहिए। याद रखें किसी न किसी क्षेत्र में कोई न कोई आपसे ज्यादा माहिर होता है। फिर बातचीत में यथासंभव विनम्र होने का प्रयास करते रहें और ऐसे वाक्य बीच-बीच में जोड़ते रहें........................... ‘मेरा आशय है कि............’ आपकी बात सही है परन्तु..................। चाहे सत्य ही हो पर बातचीत में अप्रिय एवं कटु वाक्यों का प्रयोग न करें। किसी से कहना कि ‘तुम गलत हो...............या मूर्ख हो।’ बेहद गलत तरीका है, इससे आपसी खाई या वैमनस्य बेवजह बढ़ता जाता है।
* * *
बेहतर समय के लिए स्वयं प्रतिस्थापित करें
ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को ऐसी बौद्धिक क्षमता दी है जिससे वह अच्छे-बुरे, बढ़िया या घटिया की पहचान कर सके और समय से पूर्व अपने अच्छे-बुरे का आकलन भी कर सके। इसके बावजूद भी बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो बुरे को छोड़कर अच्छा ग्रहण करते हैं। कई बार तो जानबूझकर वे बुराई को अपनी आदत के कारण छोड़ नहीं पाते जबकि उनका वर्तमान और भविष्य उनके कारण धूमिल या अव्यवस्थित हो जाता है। ऐसी आदतों से शीघ्रातिशीघ्र मुक्ति पाएं जिससे आप निराशा और परेशानियों से बच सकें। वैसे निराशा और दिल टूटना जीवन के स्वाभाविक अंग हैं परन्तु हमें उनका सामना करना आना चाहिए। जिस प्रकार बोया हुआ बीज सर्दी की ठिठुरन और गर्मी की तपन बर्दाश्त करता हुआ पल्लवित हो पाता है वैसे ही हमें बर्दाश्त करना आना चाहिए। संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो चाहे कितना भी सफल रहा हो, जिसे निराशा या उदासी बर्दाश्त न करनी पड़ी हो, परन्तु जीवन का आनन्द उसकी निरंतरता में है। कोई भी निराशा या उदासी सदैव उस पर हावी नहीं रह सकती। यह हमारी आंतरिक शक्ति पर निर्भर है कि उस उदासी और निराशा से मुक्ति पाकर पुनः आशान्वित हो सकें। किसी कवि ने कितना सही कहा हैः ‘‘मानव हृदय में आशा का एक शाश्वत स्त्रोत है।’’ यानी चाहे कुछ भी हो जाए, आशा और विकास की संभावना सदैव विद्यमान रहती है। गिरने के बाद हम सदा उठ खड़े हो सकते हैं- लेकिन उसकी प्रेरणा जब हृदय के अन्दर से आएगी तभी हम पुनः खड़े हो पाएंगे।
जब परेशानियाँ हमें तोड़ने का प्रयत्न करती हैं और हमें लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया, तब हमें आत्म-विश्लेषण कर भूत को भूलकर भविष्य की तरफ केन्द्रित होना चाहिए। तभी हम एक नई शुरुआत करने में सक्षम हो सकेंगे। हमें अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि हम कुछ भी करें, हमारी शक्ति, ऊर्जा इत्यादि सही प्रकार से तभी प्रयुक्त हो पाएंगी जब हम ध्यान केन्द्रित करेंगे तभी प्रेरणा अपना पूरा प्रभाव दिखा सकेगी। वैसे हमारे विचार एवं धारणाएं हमारे कार्य को नियंत्रित करती हैं परन्तु किसी भी स्थिति में हमें ऋणात्मकता का शिकार नहीं होना चाहिए। पीटर ड्रकर की उक्ति है, ‘‘भविष्य के बारे में सही कथन करने का तरीका है उसका स्वयं निर्माण करना।’’ यानी भविष्य निर्माण का सही तरीका है उससे सीधे मुलाकात। यदि कभी वांछित प्रगति नहीं हो पा रही तो इसका कारण सदैव आपके प्रयत्न की कमी ही नहीं होता। संभव है आप पूरा प्रयत्न कर रहे हों पर उन चीजों या क्षेत्रों पर नहीं जो आवश्यक हैं। स्थिति परिवर्तन पर निगाह रखते हुए ही प्रयत्न करना चाहिए। फिर, यह भी जरूरी नहीं कि इस परिवर्तनशील विश्व में जो आज हुआ वही कल भी हो। अपना प्रयत्न करते रहें और समय का पूरा उपयोग करें तभी सफलता प्राप्त होगी। सही स्थिति का आकलन, अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग और समय का यथोचित प्रयोग होगा तो सफलता अवश्य मिलेगी।
यद्यपि हमारे अन्दर विश्वास हमारी करनी से पैदा होता है परन्तु दूसरों की शाबाशी इसको और मजबूत करती है। हमें स्वयं पर विश्वास तो होना ही चाहिए। जब हम रात को सोने जाएं तो यह संतुष्टि होनी चाहिए कि जो संभव था वह हमने किया और कल इससे बेहतर करेंगे। कभी भी स्वयं से निराश नहीं होना चाहिए या फालतू के बहानों में अपनी निष्क्रियता का औचित्य नहीं ढूँढ़ना चाहिए। हिम्मत के साथ आशा भी रहनी चाहिए। कभी ये न सोचें कि आप अपने सपनों को हकीकत में नहीं बदल सकते, चाहे वह कितने भी अव्यावहारिक प्रतीत हों। अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए बहाने, स्पष्टीकरण, निराश और अयोग्य लोगों के औजार होते हैं। कभी जीवन की प्राप्त असुविधाओं से त्रस्त होकर आगे बढ़ने की चाह न करें। ‘पता नहीं क्या होगा’ ऐसे विचारों को पास न फटकने दें। होगा वही जो आप पूरे मन उत्साह और क्षमता से प्राप्त करना चाहेंगे। आगे बढ़ें और दुनिया को अपने कब्जे में कर लें।
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समयोचित उपयोग और उद्देश्य-प्राप्ति
एक अनवरत संघर्ष
कटु आलोचनाओं, उलाहनों एवं तिरस्कारों को सही जवाब है, वह उपलब्ध करने में सक्षम होना जो लोगों के अनुसार आप प्राप्त नहीं कर सकते थे। कटु आलोचनाओं, उलाहनों और दिल तोड़ने वाले व्यंग्यों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाएं अलग-अलग होती हैं। विश्लेषण कर देखें कि आप उनका सामना कैसे करते हैं और फिर सोचें उनका सर्वोत्तम प्रतिकार करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका। यह ज्यादा कठिन नहीं सरल होना चाहिए।
इसके लिए ‘करने वाले कामों की सूची’ जो ज्यादातर सफल व्यक्ति प्रयुक्त करते हैं, इसके अलावा आप यह भी तय करें कि किसको आप सुबह, दोपहर बाद या शाम को करेंगे। इसमें ज़रूरत की हिसाब से आप परिवर्तन तो ला ही सकते हैं क्योंकि कुछ काम तो दूसरों के समय के अनुसार निर्धारित होते हैं, जैसे बैंक का काम तो सुबह ही करना होगा। खरीद फरोख्त का काम जल्दी सुबह संभव नहीं होता क्योंकि दुकानें ही नहीं खुल पाएंगी।
फिर, एक तरफ के सारे काम एक बार में ही निपटाने का प्रयत्न करें। पिछले हफ्ते मुझे दंत-चिकित्सक के पास जाना था, मैंने अपना बैंक का काम भी उसी समय में निपटा लिया और अस्पताल में दाखिल अपनी बीमार बहन को भी देख आया तथा थोड़ी खरीदारी भी कर ली। इसी दौरान कुछ ज़रूरी फोन-कॉल्स भी किए, थोड़ी पढ़ाई भी कार में बैठे-बैठे कर ली जबकि ड्राइवर उसे चला रहा था। जैसा पहले भी कह चुका हूँ चूँकि मैं जल्दी सुबह सबसे ज्यादा तरोताज़ा रहता हूँ, अपने प्राथमिकता वाले काम मैं उसी दौरान करता हूँ। ज्यादातर लेखन में जल्दी सुबह या देर रात को ही करता हूँ जब व्यवधान नहीं आते। इस प्रकार अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप अपने कामों का समय निर्धारण करें और उसी के अनुसार अपना काम करें।
अपने महत्त्वपूर्ण समय में मैं लोगों से नहीं मिलता क्योंकि वे अपने निर्धारित समय के बाद भी टिकने का प्रयत्न करते हैं। ज्यादातर लोग टेलीफोन करना या मिलने का कार्यक्रम अपनी सुविधा के अनुसार करना चाहते हैं। मैं भी ऐसा ही करता हूँ फर्क सिर्फ यह है कि मैं उनको अपनी सुविधा के अनुरूप समय देता हूँ। इससे कुछ लोग जरूर नाराज़ होते हैं कि मैं उनकी सुविधा के अनुसार नहीं मिलता हूँ। लेकिन मैं तो अपनी बात पर ही कायम रहता हूँ, यदि किसी को मिलना है तो वह मेरी सुविधा के अनुसार मुलाकात करे।
दूसरी महत्वपूर्ण बात जो आपको भी कायम करनी चाहिए, अपनी काम करने की जगह को साफ-सुथरा रखना। बेशक यह एक अनवरत संघर्ष है क्योंकि हम लोगों की आदत होती है कूड़ा-करकट आस-पास खुली जगह पर फेंक देना। इस लेख को लिखते समय मैंने पाया कि मेरी डिजिटल डायरी, टी.वी. का रिमोट कन्ट्रोल, आई पॉड के स्पीकर्स, मेरी कमीज़, मेरी काम करने की सूची वाली डायरी मेरे बिस्तर पर पड़ी हैं तथा पास की छोटी मेज पर चाय का खाली कप पड़ा है। लेकिन मैं एक ही बार में इन बिखरी चीज़ों को यथास्थान नहीं रखता। जब मैं उठता हूं तो एक तरफ की सारी चीजें उठाकर उन्हें उनके नियत स्थान पर रख देता हूं। वैसे इस लेख को पूरा करने से पूर्व मैं अध्ययन कक्ष से लगे बाथरूम में भी गया और एक मिनट से कम समय में सब चीजें यथास्थान रख दीं। हर चीज का एक ठिकाना होता है जो वहीं रखी जानी चाहिए जिससे उसे ढूँढ़ने में आसानी रहती है।
मैंने रोज का एक नियम बना लिया है कि काम शुरू करने के पूर्व-या कम से कम चार या पांच बार मेरे कार्य-स्थल, कंप्यूटर अध्ययन कक्ष को फालतू चीजों का कब्रिस्तान न बनने दूँ। यदि ऐसा नहीं करूँ तो काम की जगह पर फालतू चीजों की बाढ़ आपको काम नहीं करने देंगी। साफ-सुथरी जगह पर काम करना ज्यादा अच्छा रहता है तथा काम में मन लगता है। यद्यपि इस तरह की सफाई में आपको रोज़ ही थोड़ा समय देना पड़ेगा पर ऐसा करना जरूरी है।
* * *
जीवन में व्यवस्थित योजना का महत्त्व
अपने पास एक ऐसी विस्तृत कार्य सूची रखनी ज़रूरी है जिससे आप पता करते रहें कि जो आप चाहते थे वह हो पाया कि और क्या वह आपके द्वारा निर्धारित समय-सीमा में ही हुआ है। जो भी काम करने हैं उनकी यदि पहले एक लिखित सूची बना ली जाए तो बाद में यह अफसोस नहीं रहता कि शायद हम इसे और बेहतर कर सकते थे। मैंने तो यह देखा है कि जो काम लिख लिया जाता है वह याद रहता है और पूरा भी होता है। वैसे तो हर काम को और ज्यादा बेहतर तरीके से और शीघ्रता से करने की संभावना तो हमेशा ही रहती है। इस पूर्व योजनाबद्ध तरीके से काम करने से सफलता शीघ्रता से प्राप्त होगी तथा आप इस प्रक्रिया से फालतू कामों को जरूरी कामों में भी विस्थापित करते रह सकते हैं।
अपनी संगठनात्मक क्षमताओं का इस्तेमाल कर अपनी गतिविधियों पर निगाह रखें और उन्हें स्वयं मॉनीटर करते रहें। अगर निगाह रखेंगे तो जरूरी चीज़ तुरन्त हासिल कर सकेंगे। जिन चीजों की प्रायः जरूरत पड़ती है उन्हें सदैव अपनी निगाह में ही रखें जिससे आप उन्हें आसानी से उठा भी सकें। जब सर्दियाँ आती हैं तब सूती कपड़े अलमारियों या बक्सों में भर दिए जाते हैं और जब गर्मियाँ आती हैं सर्दियों के कपड़ों का भी यही हश्र होता है। यही सिद्धान्त अपनी जरूरत की चीजों के लिए भी लागू किया जाना चाहिए। ये अपने बैंक से सम्बन्धित काग़ज़ात, चैकबुक इत्यादि अपनी मेज की एक ही दराज़ में रखता हूँ तथा दूसरी दराज़ में अन्य चीजें जैसे आई पॉड, एम पी-3 प्लेयर इत्यादि रखे रहते हैं। जिनकी दिन में एक ही बार जरूरत पड़ती है जब मैं सुबह घूमने जाता हूँ।
चीजों के रखने में भी बदलाव की जरूरत पड़ती रहती है। मूल बात यह है कि जो आपको जरूरत हो वह चीज बिना किसी झंझट के आसानी से और एक ही बार में मिल जाए। मेरे मित्र तथा सम्बन्धी जो इस मामले में बेहद व्यवस्थित हैं, का कहना है कि हमें अपनी चीजें ऐसे व्यवस्थित रखनी चाहिए जैसे हम गुसलखाने में अपने साबुन शैम्पू इत्यादि रखते हैं जिन्हें जरूरत के अनुसार हम बिना किसी परेशानी के प्राप्त कर लेते हैं।
वैसे आप चाहें कितने भी इलैक्ट्रॉनिक यंत्र या गैजेट्स जैसे डिज़िटल डायरी, या पी डी ए या कम्पयूटर इत्यादि रख लें, यह सब उपयोगी तो हैं परन्तु इनसे समस्या का आंशिक समाधान ही हो पाता है। मेरे पास भी यह सारे गैजेट्स मौजूद हैं परन्तु मैं तो अभी भी पेपर डायरी पर लेखन को ही प्राथमिकता देता हूँ। मैं तो एक के बजाय ज्यादा डायरियाँ रखता हूँ जिससे मैं जो कुछ करना है उसे भूल न सकूं। जीवन में अपना जौहर दिखाने का अवसर तो कभी भी आ सकता है, उसके लिए किसी खास अवसर का इंतज़ार नहीं करना चाहिए। जो भी काम करें, पूरे मनोयोग से और प्रसन्नचित्त होकर करें। इससे आप सफलता के पथ पर दूर तक जाएंगे।
वैसे चाहे कोई कुछ कहे अपने लक्ष्य-प्राप्ति का सबसे ज्यादा सुलभ मार्ग तो आपको स्वयं ही खोजना पड़ता है। लेकिन क्या कभी हम अपनी आशाओं को इसलिए साकार नहीं कर पाते क्योंकि हम सही रूप से स्वयं को व्यवस्थित नहीं करते। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका लक्ष्य बड़ा है या छोटा, व्यवस्थित तो हर स्थिति में होना चाहिए। आप कितनी भी सफलता प्राप्ति सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ लें, जब तक आप स्वयं एक योजनाबद्ध, व्यवस्थित तरीकों से काम नहीं करेंगे,