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Shanaishchar Stotram शनैश्चर स्तोत्रम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
Shanaishchar Stotram शनैश्चर स्तोत्रम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
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Length:
4 minutes
Released:
Apr 22, 2022
Format:
Podcast episode
Description
Shanaishchar Stotram शनैश्चर स्तोत्रम् ★ कोणोऽन्तकारौद्रयमोऽख बभ्रुःकृष्णः शनि पिंगलमन्दसौरि ।
नित्य स्मृतो यो हरते पीड़ां तस्मै नमः श्रीरविनन्दाय ॥ 1 ॥
सुरासुराः किंपु-रुषोरगेन्द्रा गन्धर्वाद्याधरपन्नगाश्च
पीड्य सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 2 ॥
नराः नरेन्द्राः पुष्पत्तनानि पीड्यन्ति
सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 3 ॥
तिलेयवैर्माषुगृडान्दनैर्लोहेन नीलाम्बर-दानतो
वा प्रीणाति मन्त्रैर्निजिवासरे च तस्मै नमः ॥ 4 ॥
प्रयाग कूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यागतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै ॥ 5 ॥
अन्यप्रदेशात्स्वः गृहंप्रविष्टदीयवारेसनरः सुखी ॥ 6 ॥
स्यात् गहाद्गतो यो न पुनः प्रयतितस्मैनभ खष्टा
स्वयं भूवत्रयस्य त्रोता हशो दुःखोत्तर हस्ते पिनाकी एक स्त्रिधऋज्ञ जुःसामभूतिंतस्मै ॥ 7 ॥
शन्यष्टक यः प्रठितः प्रभाते, नित्यं सुपुत्रः पशुवान्यश्च ॥ 8 ॥
पठेतु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोतिनिर्वाण पदं तदन्ते ॥ 9 ॥
कोणस्थः पिंगलो बभ्रूः कृष्णोरौद्रान्तको यमः ॥ 10 ॥
सौरिः शनैश्चरोमन्दः पिपलादेन संस्तुतः ॥ 11 ॥
एतानि दशनामानि प्रतारुत्थाय यः पठेत् ॥ 12 ॥
शनैश्चकृता पीड़ा न न कदाचिद् भविष्यति ॥ 13 ॥
★
राजा दशरथ शनिदेव की स्तुति करने लगे। यह स्तुति शनैश्चर स्तोत्रम् के नाम से जानी जाती हैं। उनके मुख से अपना स्तोत्र सुनकर शनिदेव ने एक वर मांगने को कहा। तब राजा दशरथ ने कहा कि आप किसी को कभी पीड़ा न दें। इस पर शनिदेव ने कहा कि यह संभव ही नहीं। जीवों को कर्म के अनुसार सुख और दुख भोगना पड़ेगा। हां, मैं यह वरदान देता हूं कि तुमने जो मेरी स्तुति की है, उसे जो भी पढ़ेगा, उसे पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी।
नित्य स्मृतो यो हरते पीड़ां तस्मै नमः श्रीरविनन्दाय ॥ 1 ॥
सुरासुराः किंपु-रुषोरगेन्द्रा गन्धर्वाद्याधरपन्नगाश्च
पीड्य सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 2 ॥
नराः नरेन्द्राः पुष्पत्तनानि पीड्यन्ति
सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः ॥ 3 ॥
तिलेयवैर्माषुगृडान्दनैर्लोहेन नीलाम्बर-दानतो
वा प्रीणाति मन्त्रैर्निजिवासरे च तस्मै नमः ॥ 4 ॥
प्रयाग कूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यागतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै ॥ 5 ॥
अन्यप्रदेशात्स्वः गृहंप्रविष्टदीयवारेसनरः सुखी ॥ 6 ॥
स्यात् गहाद्गतो यो न पुनः प्रयतितस्मैनभ खष्टा
स्वयं भूवत्रयस्य त्रोता हशो दुःखोत्तर हस्ते पिनाकी एक स्त्रिधऋज्ञ जुःसामभूतिंतस्मै ॥ 7 ॥
शन्यष्टक यः प्रठितः प्रभाते, नित्यं सुपुत्रः पशुवान्यश्च ॥ 8 ॥
पठेतु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोतिनिर्वाण पदं तदन्ते ॥ 9 ॥
कोणस्थः पिंगलो बभ्रूः कृष्णोरौद्रान्तको यमः ॥ 10 ॥
सौरिः शनैश्चरोमन्दः पिपलादेन संस्तुतः ॥ 11 ॥
एतानि दशनामानि प्रतारुत्थाय यः पठेत् ॥ 12 ॥
शनैश्चकृता पीड़ा न न कदाचिद् भविष्यति ॥ 13 ॥
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राजा दशरथ शनिदेव की स्तुति करने लगे। यह स्तुति शनैश्चर स्तोत्रम् के नाम से जानी जाती हैं। उनके मुख से अपना स्तोत्र सुनकर शनिदेव ने एक वर मांगने को कहा। तब राजा दशरथ ने कहा कि आप किसी को कभी पीड़ा न दें। इस पर शनिदेव ने कहा कि यह संभव ही नहीं। जीवों को कर्म के अनुसार सुख और दुख भोगना पड़ेगा। हां, मैं यह वरदान देता हूं कि तुमने जो मेरी स्तुति की है, उसे जो भी पढ़ेगा, उसे पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी।
Released:
Apr 22, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Baglamukhi Vajra Kavach Mantra बगलामुखी वज्र कवच मन्त्र by Rajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers