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Chhalang: Nadine Gordimer Ki Kahaniyan
Chhalang: Nadine Gordimer Ki Kahaniyan
Chhalang: Nadine Gordimer Ki Kahaniyan
Ebook382 pages3 hours

Chhalang: Nadine Gordimer Ki Kahaniyan

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About this ebook


An astounding collection of personal and political stories set in varied locales and cultures. In this collection of sixteen stories, Gordimer brings unforgettable characters from every corner of society to life: a child refugee fleeing civil war in Mozambique; a black activist's deserted wife longing for better times; a rich safari party indulging themselves while lionesses circle their lodge. Chhalang is a vivid, disturbing and rewarding portrait of life in South Africa under apartheid.
Languageहिन्दी
PublisherHarperHindi
Release dateJul 21, 2013
ISBN9789350297469
Chhalang: Nadine Gordimer Ki Kahaniyan
Author

Nadine Gordimer

Nadine Gordimer is one of South Africa's best-known authors. In her fiction, Gordimer consistently attacks the system of apartheid from the standpoint of the white middle class. Her stories show how some whites slowly awaken to the injustice and moral corruption of the system while others fail to see how the racial policy eats away at the moral basis of society. Nadine Gordimer is a South African writer, political activist and Nobel laureate. Her writing has long dealt with moral and racial issues, particularly apartheid in South Africa.

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    Chhalang - Nadine Gordimer

    शिकार

    बिस्तर में आपका अपना पाद नाक में सड़ते माँस की बदबू लाता है। कल रात खाया गया मीट। रोसमेरी डाल के बना गोश्त। एक और लाश पच गयी। ‘‘शाकाहारी बन जाओ न फिर।’’ उसने यह सब पहले कई बार सुना था। वह ऊब चुका था, ऊबने से ऊब गया था। ऊब गया था अपनी कही बातों से, जो रह रह कर उठती रहती हैं।

    ‘‘मेरा इससे कोई लेना देना नहीं है।’’ हम लोग ख़बरें सुन रहे हैं।

    ‘‘क्या? तुम क्या कह रहे हो? क्या?’’ आख़िर क्या। क्या नहीं कौन-सा। मैं कौन-सी चीज़ से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था, पुलिस पर पत्थर फेंकने वाला लड़का जिसके दोनों हाथ तोड़ दिये गये थे, जेल में जो लौंड़ेबाज़ी का शिकार हुआ था, अपहृत राजनयिक और वह गिरोह (आदमी, जैसा मैं हूँ, रात जैसी वो है) जिसने डाक से राजनयिक की चौथी उँगली उसके परिवार को भेजी, गद्दार कहलाकर मिट्टी के तेल में ज़िन्दा जलाई गयी लड़की, सूखे के मारे भूखे मरते लोग या बाढ़ में डूबकर मरने वाले, बहुत दूर, और पास में, श्रीमान और श्रीमती जी का उन्नीस साल का बेटा जो मोटरसाइकिल पर बिजली से चलने वाली स्प्रे गन इस्तेमाल करते हुए २२० वोल्ट के झटके से मारा गया था। मेरे जैसे लोगों द्वारा मारे जाना, नियोजित और सोची समझी साज़िश के तहत या फिर प्रकृति द्वारा बिना वजह ऊँटपटांग तरीके से बेवजह मारे जाना, बेतुका। ऐसा क्यों है कि लाश बनाने की सचेत क्रिया ज़्यादा सही लगती है? चेतना आत्मवंचना है। बुद्धिमत्ता एक झूठ। ‘‘तुम्हें बुरे ख़याल आ रहे हैं। यही ज़िन्दगी है।’’ उसकी वही ब्यूटी पार्लर वाली सोच। बासी, जानवर, निष्क्रिय। मैं चुनूँ या नहीं, चुन नहीं सकता, अब और नहीं।

    रोज़ की शवकामुकता।

    ‘‘तो फिर शाकाहारी बन जाओ ना!’’

    दूसरे लोगों के बीच, किसी को एहसास भी नहीं होगा कि कुछ गड़बड़ है। वह यह जानता है। वह जानती है कि वो जानता है, इस बात से गौरवान्वित कि वह ठीक वैसा लगेगा जैसा सब सोचते हैं, उस सभा में वो अपना रोल सही से, अदा करेगा। रिज़वै के लॉज पर शनिवार की पार्टी में एक जोकर होगा, जो कैम्प फ़ायर की आग में अपना हाथ जलायेगा और सब हँसेंगे, पूरे समय सब लोगों को खिलाने की तैयारी में लगी महिला होगी, माहौल को हसीन बनाने वाली सुन्दर लड़की होगी, मस्त मौजी जो सब को देर तक पिलाता रहता है, वो शान्त आदमी जो अलग बैठकर कुछ सोचता रहता है और एक आध नये लोग होंगे जो हो सकता है कुछ संजीदा बातें करें, या फिर नहीं। क्यों न मान लिया जाये? नहीं? ख़ैर। उसके दिमाग़ में और क्या है जो उसे और ख़ुश कर देगा? बोलो।

    कुछ नहीं।

    तो फिर।

    जोकर की तुलना में वह लोगों का मन मोह लेता है, अपने बुद्धि चातुर्य से। वह सबकी कमज़ोरियाँ जानता है, उसके किस्से चलते रहते हैं और उसकी कही कहानियों में लोग ख़ुद को किरदार मानने लगते हैं।

    उन सबका जो भी स्वभाव हो, सबको प्रकृति से प्यार है। यह शर्म की कोई बात नहीं है—उसके लिए भी नहीं। जंगल के लिए उनका प्यार उन्हें सभी के साथ लाया था—वो अमीर दम्पत्ति जो उस रिजर्व और लॉज का मालिक था, रेस के घोड़े और नावों की बजाय पब्लिक रिलेशन में काम करने वाली वो सुन्दर लड़की या फिर वो मॉडल थी? एक खदान कम्पनी का डायरेक्टर, साहसी स्टाक ब्रोकर, श्वेत लोगों के अस्पताल में क्लर्क की तनख़्वाह पर काम करने वाला डॉक्टर, पुरातन चीज़ों का जोकरनुमा डीलर और उसे कोई हक नहीं है ख़ुद को श्रेष्ठ, दूसरों से बेहतर समझने का—सही में, नैतिकता (वह जानता है)—क्योंकि यहाँ इस पार्टी में एक ऐसा नौजवान भी है जो राजनैतिक कारावास भी भोग चुका है। वह लड़का तब तक मज़े लेने के लिए अपने श्वेत साथियों का मज़ाक नहीं उड़ाता जब तक कि जिस शासन को ख़त्म करने के लिए उसने अपनी ज़िन्दगी दाँव पर लगाई, जिसे ख़त्म करने के लिए वो जान भी ले सकता है, वो शासन अपनी जगह पर टिका है। यही ज़िन्दगी की पहचान है। इसलिए वैसा व्यवहार करना जैसा आपसे अपेक्षित हो, वह भी एक तरीका है अपनी अब की असलियत के डर से बचने का। शायद जो नज़र आता है, वो वह है, मनमोहक। वह कैसेजान सकता है? इतनी ख़ूबी से निभाता है। उसकी पत्नी की उस पर नज़र जाती है, नंगे पैर, घुटनों पर हाथ लपेटे, डेक पर जहाँ से वह सब नदी की तरफ़ दौड़ते जंगली भैंसों को देखते थे, उसे सुनाई पड़ता है जब वो दूरबीन से देखकर कुछ मज़ाकिया अन्दाज़ में कहता है; उसका ध्यान जाता है कैसे उसने अपनी छाती की नुमाइश में कमीज़ के बटन खुले छोड़े थे—क्या उसकी चुप्पी और उससे उठने वाले अबोध सवाल केवल उसके लिए थे, उसकी पत्नी के लिए, उसे सताने के लिए? क्या वह सिर्फ़ उसे तंग करने के लिए ऐसा करता था? और उसने ऐसा क्या किया है, कि उसके साथ वो बर्ताव करता जो दूसरों के साथ नहीं करता। अपनी दिक्कत अपने आप तक क्यों नहीं रखता। वेलियम खा ले। कुछ भी। शाकाहारी बन जाये। दोपहर की गर्मी में, खाने के साथ वाइन पीने के बाद सब लोग सोने जाते हैं, अपने कमरों में या फिर डेक पर छाँव में लगाये बिस्तरों में। उनके कमरे में भी सब की नज़रों से दूर उसका दिखावा जारी रहता है (लेकिन उसे इस बात का भी एहसास है कि उनके बीच सिर्फ़ एक दीवार की दूरी है) क्योंकि उसे यही उम्मीद थी। इतनी ज़्यादा गर्मी है कि दोनों ने सिर्फ़ कच्छे पहन रखे हैं। उसने अपनी पत्नी के भीगे स्तन पर हल्के से हाथ फेरा, गहरी साँस ली और पीठ के बल सो गया। अगर वह सो नहीं गया होता तो क्या उसने उसके निप्पल को चूसा होता, उसे प्यार किया होता? या फिर उसके हाव-भाव सिर्फ़ दिखावा हैं, गलती से कहीं किसी की नज़र पड़ जाये।

    यह पार्टी उस आग की तरह है जो नौकर शाम को लॉज के बगल में जलाता था। कभी नहीं कह सकते कि बाहर खुले में जली आग धुँआ फेंकेगी या साफ़ सुथरी जलेगी, जैसे यह जल रही है। कभी नहीं कह सकते कि लोगों का एक छोटा समूह अलग-थलग रहेगा, नीरस या फिर इस बार की तरह घुल मिल जायेंगे। शाम के खाने का समारोह कुछ हास्यास्पद था लेकिन क्योंकि उसका मकसद ही यही था, इसलिए मनोरंजक लग रहा था। पुराने उपनिवेशी समय की पैरोडी : जंगली जानवरों का घेरा, खाने का ऐलान करने के लिए अश्वेत आदमी का ढोल पीटना, उसके द्वारा ध्यान से आग से दूर, गोले में लगाई गयी कुर्सियाँ, तैयार ह्विस्की और वाइन, और आग पर भुनते गोश्त की महक। ऊपर देखो : धुँधले आसमान में पहला तारा, बन्दरगाह से निकलती नाव, इस दुनिया को छोड़ती हुई। नीचे देखो : नीली लपटें सिर्फ़ जलती चर्बी और ज़मीन पर चबाई हुई हड्डियाँ। पत्नी ने ध्यान दिया कि वह कुछ ज़्यादा पी रहा था। ताकि सब कुछ बर्दाश्त कर सके, ज़रूर वह ख़ुद को यही कहता होगा।

    राख के नीचे आग धीमी हो रही थी, और चाँद के चढ़ने से कीड़ों का वाद्यवृन्द शान्त हो गया था; उनके शरीर से रगड़ते उनके पंख, उनके पैरों से रगड़ते उनके पैर। लेकिन हँसी जारी थी। उस विशाल रात में ईमारतों की सीमा से दूर खम्बों और तारों से परे, जो कमरों में आती सड़क के लैम्प पोस्ट की रोशनी से खोखली नहीं थी। हँसी और आवाज़ें महज़ बन्जारे हैं जो एक पल आवाज़ की तरफ़ साहसपूर्वक उठते हैं और दूसरे पल एक हल्की लहर में तब्दील हो जाते हैं कि होठों को छोड़ते ही मुरझा जाते हैं। सब एक-दूसरे को बीच में ही टोकते हैं, बहस करते हैं, झगड़ते हैं। कड़वाहट के पल भी होते हैं, जब वो अँगूर रस छलक कर निकलता है। जब मौका मिलता है, कोई मतलब की बात निकल कर आती है तो चुप रहने वाले मेहमान भी बोल उठते हैं, वो जो अपनी सोच ज़ाहिर करने की हिम्मत नहीं कर पाते, सिर्फ़ दूसरों की सोच दोहराते हैं। चमगादड़; अँधेरे से भी काले, काले कपड़ों के टुकड़े—किसी ने कहा, जब एक महिला डर से सिमट रही थी कि उससे डर इसलिए लगता है कि हम उन्हें आते हुए सुन नहीं सकते।

    ‘‘अगर आँखें बन्द हों और ऊपर एक चिड़िया उड़े तो हवा में उसके पंख फड़फड़ाने की आवाज़ सुनाई देती है।’’

    ‘‘और फिर, चमगादड़ के बारे में कुछ कह नहीं पाते,’’—उसका सिर किस तरफ़ है—बस महज़ एक चीज़ है,

    चुप रहने वाला मेहमान समझाने भी लग गया था, कि चमगादड़ आप से टकरायेंगे नहीं; लेकिन इसलिए नहीं जैसा आमतौर पर माना जाता है कि उनमें एक राडार होता है बल्कि उनमें सोनार होता है....

    ‘‘मैं चीते की खाल का कोट पहनती हूँ।’’ दूसरी तरफ़ हो रही बातचीत से उठी यह आवाज़ उसका ध्यान खींच लेती है।

    वो हसीन लड़की थी; उसने दिन की धूप से बचने के लिए चेहरे पर क्रीम पोत रखी थी और उसके चेहरे से चाँद की हल्की चमक आग से कभी कभार उठती एक आध लपट और सिगरेट लाइटर की रोशनी में जाग उठती। वह लगभग सुन्दर है। ‘‘सुना तुमने?’’ ‘‘ग्लिनसि यह लड़की तुम्हें मिली कहाँ से?’’ ‘‘इसे किसी चट्टान पर रख दें, ताकि इसका शिकार इसे खा ले?’’

    ‘‘बदकिस्मती से यहाँ चीते नहीं हैं।’’ ‘‘यह कोट तुम से ज़्यादा चीते पर अच्छा लगेगा।’’ उसका जवाब उसकी ख्याति के लायक नहीं था, महज़ किसी और के शब्द, पता नहीं किसके, फिर भी दोहराये गये थे। उसने लड़की से सीधे बात की थी जबकि बाकी सब उस लड़की का मज़ाक उड़ा रहे थे, लेकिन सीधे नहीं। लेकिन उसके शब्द, जो ना बातचीज का हिस्सा थे और ना ही उनमें कलात्मकता थी ने उस लड़की की दिलचस्पी बढ़ा दी। पहली बार सही मायने में उसे उस आदमी की उपस्थिति का अन्दाज़ा हुआ।

    ‘‘अभी तुमने मुझे उस कोट में देखा नहीं है।’’ उसके शब्दों में थोड़ी आज़ादी थी और थोड़ा संघर्ष।

    ‘‘तो उसका भी इन्तज़ाम हो सकता है।’’

    यह अब उन दोनों के बीच बातचीत थी, दूसरों की बातचीत से अलग, लेकिन उसकी आड़ में। वह ठीक कर रहा था, कटाक्ष करते जवाब दे रहा था, ठीक वैसे जैसे मर्द और औरतें अपने बीच के आकर्षण को व्यक्त करते हैं। फिर उस लड़की ने वो बात कह दी, एक चमगादड़ की तरह उस तक पहुँची होगी, एकोलोकेशन से या वो जो भी होता है, उसकी नफ़रत से ही कुछ कम्पित हुआ होगा। ‘‘क्या तुम्हें भेड़ की खाल का कोट बेहतर लगेगा? तुम गोश्त तो खाते होगे?’’

    उस बातचीत और हँसी के माहौल में उससे पीछा छुड़ाना आसान है।

    उसका ध्यान कहीं और बट जाता है। वह राजनैतिक कैदी से बातचीत करने में व्यस्त हो जाता है।

    उस कैदी ने अपनी प्रेमिका का हाथ पकड़ा हुआ है। उस लड़की के बड़े-बड़े दाँत चमक रहे हैं; वो ख़ूबसूरत नहीं है। केवल प्यार। प्यार को ढूँढ़ने की आख़िरी जगह है सुन्दरता। सुन्दरता महज़ एक चमड़ी है किसी जन्तु की, या किसी जानवर की चमड़ी, किसी सड़ती हुई चीज़ पर। प्यार जेल में मिलता है। इस अ-सुन्दर लड़की ने उसे प्यार किया था जब उसका शरीर अनउपस्थित था, और उस आदमी ने अपने ‘भाइयों’ से प्यार किया है—वह उनके बारे में बात कर रहा है, बिना उनका नाम लिये लेकिन उसका इशारा स्पष्ट है—हालाँकि वे अपनी गन्दगी बाल्टी समेत बन्द रहते हैं, वे कातिलों को भी प्यार करते हैं, जिनके उसने रात भर मौत के गीत सुने थे, अगली सुबह फाँसी लगने से पहले।

    ‘‘आम अपराधी? इस देश में? हमारे क़ानून के तहत?’’

    ‘‘हाँ, हाँ। हम राजनैतिक बन्दियों को अलग रखा जाता था लेकिन समय के साथ (मैं दस महीने वहाँ था) हमने अपने ख़याल बाँटना सीख लिया था। (कितने तरीके होते हैं जिनके बारे में आप बाहर सोचते भी नहीं हैं क्योंकि ज़रूरत नहीं पड़ती।) उनमें से एक—जवान, मेरी उम्र का—उसे नियमित अपराधी घोषित कर दिया गया था, अनिश्चित समय के लिए जेल में था। ‘‘लेकिन तुमने तो ख़ून नहीं किया था, चोरी नहीं की थी, उसने तो कई बार किया होगा।’’

    ‘‘हाँ किया तो था उसने। लेकिन मैं किसी नौकरानी की नाजायज़ औलाद नहीं था, ऐसी औरत जिसका अपना कोई घर नहीं था इस एक श्वेत महिला के घर के पीछे एक कमरा था; मुझे ‘स्वदेश’ नहीं भेजा गया था, जहाँ मेरा ध्यान रखने वाली महिला भूखी मर रही हो और अपने पति के पीछे-पीछे काम ढूँढ़ने केप टाउन की झुग्गी झोपड़ी में रह रही हो। मैंने सड़कों पर भीख़ नहीं माँगी थी, खाना नहीं चुराया था, और न ही आराम के लिए गोद सूँघी हो। उसने पहली बार नये कपड़े पहने और बिस्तर पर पहली बार तब सोया जब वह एक कार चोरों के गिरोह में शामिल हुआ। आम लोग; आम अपराधी; आम दुख भरी कहानी।

    ‘‘अगर वह तुम्हें जेल के बाहर मिला होता तो तुम्हारी घड़ी के लिए चाकू मार दिया होता।’’ ‘‘हो सकता है। क्या आप उन लोगों से ‘यह मेरा है’ कह सकते हो जिनकी ज़मीन छीन ली गयी हो, साम्राज्य की बन्दूक के बल पर चोरी की गयी हो?’’

    और सड़कों पर, कार में सुपरमार्केट में किसी को सबक सिखाने के लिए बम मारते हैं। जैसी ज़रूरी कार्यवाही आपराधिक नहीं, (हाँ, अपराधी वो होता है जो ख़ुद के फ़ायदे के लिए कत्ल करता है) इन सब से वह नहीं बहलता, भाई चारे का सड़ा-गला माँस। लेकिन वह बहादुर है और निगल जाता है। बिना उल्टी किये।

    आवाज़ें और हँसी बन्द हो जाती है। जंगल में राजनीति की बात नहीं की जाती। यहाँ चौकस सन्नाटा है जिसकी बीच-बीच में कोई माँग करता है जिसने इन्सानी आवाज़ों के परे एक चीख़ सुनी हो। श श् श् श् ... एक बार यह सियार का रोना था और और पास लकड़बग्घे का विलाप, ख़ून सूँघने के लिए बड़े नथूने वाले जीव का। फिर एक चीख़ जो कोई पहचान नहीं पाया : उल्लू द्वारा खरगोश पर हमला? किसी दूसरे जानवर पर किसी और का हमला? उस रात की ख़ामोशी में क्या हो रहा था, उनके बीच, इन दूसरे जीव जन्तुओं के बीच। ‘‘वे चौबीस घण्टे जीते हैं, हम अँधेरा बर्बाद करते हैं।’’ ‘‘नोर्बट तुम तो उल्लू थे—नाइटक्लब में रहते थे।’’ और वो जवान डाक्टर कहता है, ‘‘वे शिफ़्ट में शिकार करते हैं, बिल्कुल हमारी तरह। कुछ दिन में सोते हैं।’’ ‘‘लेकिन वो बने ही अलग प्रजाति की तरह हैं ताकि पूरे चौबीस घण्टे का इस्तेमाल कर सकें। हम एक प्रजाति हैं, केवल रोशनी के लिए बने हैं। और इतनी पीढ़ियाँ भी नहीं निकली हैं—बस उद्योगीकरण से पहले—कि हम सूरज डूबते ही सो जाते थे। बिजली नहीं थी। कोई रात की शिफ़्ट नहीं थी। हमारी प्रजाति में कोई ऐसा नहीं जिसे अँधेरे में देखने की क्षमता हो।’’ चमगादड़ के विशेषज्ञ को नया विषय मिल गया। ‘‘नये उपकरणों के प्रयोग हो रहे हैं जो रात को देखने की क्षमता दे सकते हैं वह आधारित हैं...’’

    ‘‘श श् श् श् ...’’

    टूटते काँच की तरह हँसी फूटी।

    ‘‘शट अप क्लेयर।’’

    सब सुन रहे थे, आँखों की हलचल से, एकदम स्थिर।

    उनके लिए मुश्किल है समझ पाना कि वे क्या सुन रहे थे। एक खिंचाव जो बमुश्किल एक घुरघुराहट में तब्दील हो जाता है। एक डकारती हलचल; झटपटाहट, झटपटाहट—लेकिन यह सूखी पत्तियों में उड़ती हवा भी हो सकती थी, यह नदी किनारे सरकण्डे की चिट चिट नहीं थी, यह दूसरी तरफ़ से आयी थी, लॉज के पीछे से। वहाँ कोई और है। एक ऐसा सम्वाद है जिसकी कान को आदत नहीं, उनकी समझ उसे अर्थ नहीं दे सकती; उनकी समझ से परे। पूर्व राजनैतिक कैदी भी नहीं जानता कि वह क्या सुन रहा है, वह, जिसने जेल की दीवारों के पार सुना है, वह जिसने इतना कुछ सुना और समझा है जितना दूसरों ने नहीं। आख़िर उसकी समझ भी इनसानी है। वह २४ घण्टे वाला जीव नहीं है।

    इस मन्द चुप्पी में अश्वेत आदमी ग्लास खनखनाता आता है, जो उसने अभी धोये थे। मेज़बान उसे इशारा करता है : चुप रहो, चले जाओ, गन्दी प्लेटों को रहने दो। वह उनके करीब आता है, मुस्कराते हुए उसे मालूम है कि उसके पास उनके मतलब की जानकारी है। ‘‘शेर। उन्होंने एक ज़ेबरा मारा है। शायद दो को।’’

    क्लास से छूटे बच्चों की तरह सब सन्नाटा चूर कर देते हैं।

    ‘‘कहाँ?’’

    ‘‘इसे कैसे पता?’’

    ‘‘क्या कह रहा है?’’

    वह उन्हें पल भर इन्तज़ार कराता है, उसका हाथ उठा हुआ है, बर्तन धोने की वजह से उसकी हथेली गुलाबी है, जिसे वह एप्रन से पोंछता है। ‘‘मेरी पत्नी ने सुना, वहाँ मेरे घर। ज़ेबरा। और अब खा रहे हैं। उस तरफ़, वहाँ, पीछे।’’ अश्वेत आदमी का नाम बोलने में मुश्किल है। लेकिन अब बेनाम नहीं है। वे एक अभियान का संचालक है। अपने मेज़बान से वे उसके नाम का छोटा रूप सीख़ लेते हैं। सीज़ा पुराना ट्रक ले आया, अपने घर के बगल वाले गैराज़ से। सब जाने के लिए उद्यत हैं, यह मनोरंजन का वो हिस्सा है जिसकी मेज़बान ने उम्मीद तो की थी लेकिन वह इसका वादा नहीं कर सकता था। सब लॉज से १०० मीटर दूर, मशाल की रोशनी में, मोपानी पेड़ों के नीचे होते हुए सफ़ेद पत्थरों के किनारों से सज़े केना फूलों की क्यारी के बगल से (मेज़बान की कभी सीज़ा को कहने की हिम्मत नहीं हुई कि इस तरह के श्वेत आदमी को एक श्वेत आदमी के प्रकार के बग़ीचे की ज़रूरत नहीं थी) वे सीज़ा की पत्नियों के कद्दू और टमाटर के बाग़ तक पहुँचे। सीज़ा एक तार के टुकड़े से जीप के दरवाज़े का हैण्डल ठीक कर रहा है, अपनी भाषा में अपने परिवार को कुछ कह रहा है। एक छोटा बच्चा उसके रास्ते में आ जाता है तो वह उसे उठाकर एक तरफ़ रख देता है। दो महिलाओं ने सिर पर पारम्परिक सर्राफ़े बाँध रखे हैं। एक ने टी-शर्ट पहनी हुई है जिस पर विज्ञापन है। चट्टर पट्टर बातें करती लड़कियाँ, उनके बाजुओं पर छोटी बच्ची झूल रही थी। लड़के ख़ुशी से कूद रहे थे।

    जब सीज़ा की दोनों पत्नियाँ और बच्चे पार्टी को अलविदा कहने के बजाय ख़ुद जीप में चढ़े तो इस अभियान में सीज़ा की हैसियत साफ़ हो गयी। बच्चे कड़े सूखे पैरों के तले मेहमानों के जूतों के बीच जल्द जगह ढूँढ़ लेते हैं। उनके ऊन सरीखे बाल, जिस्म को छूता जिस्म, सब गाड़ी में ठस जाते हैं। क्रीम वाले चेहरे और लिली के सेन्ट वाली दुबली लड़की के बगल में एक पत्नी का धुँए से महकता नर्म वजन। ‘‘सब आ गये? सब ठीक हैं?’’ ‘‘नहीं, रुको, कोई टार्च लेने गया है।’’ सीज़ा ने गाड़ी चालू कर दी है। गाड़ी हिचकोले खा रही है, हिल रही है।

    यहाँ न हाज़िर जवाबी की ज़रूरत है न चोंचलेबाज़ी की। वह वही करता है जिसकी उससे उम्मीद है—दौड़कर लॉज से स्वेटर लाता है, कहीं उसकी पत्नी को ठण्ड न लग जाये। वह बमुश्किलन गाड़ी में चढ़ पाता है। वह एक अश्वेत बच्चे को गोदी में बैठाने की कोशिश करती है लेकिन बच्चा बहुत शर्मीला है। वह थोड़ी-सी जगह बनाकर बैठ जाता है। गाड़ी आगे बढ़ती है, सभी लोग जाने और अनजाने एक-दूसरे से चिपके बैठे हैं, झूमते, एक साथ साँस लेते। वह उसकी तरफ़ देखकर मुस्कराती है, गर्दन एक तरफ़ को हिलाकर, इस भीड़ पर टिप्पणी करती है मानो वह कोई और हो—‘‘शिकार का समय।’’

    बाहर निकलना नामुमकिन है।

    ‘‘अगर सब जीप के अन्दर रहें और खिड़की ऊपर कर लें, तो सुरक्षित रहेंगे,’’ मेज़बान ने कहा। उस पुरानी गाड़ी की हेडलाइट में सीज़ा को दूसरे पेड़ों जैसे पेड़ और दूसरी झाड़ियों जैसी झाड़ियों से रास्ते के चिह्न नज़र आ रहे थे। हाईवे पर गाड़ी झाड़ियों, पेड़ के खूँट और चीटिंयों की बाम्बियों के ऊपर से निकल रही थी। वह अचानक रुक जाता है, और वह वहाँ है जहाँ परछाइयाँनुमा आकृतियाँ,हेडलाइट की पहुँच की सीमा से पेड़ के तोरण में टिमटिमाती चीर होकर अपने प्रभामण्डल की गुफा बना रही थीं मानो कोई मोमबत्ती पकड़ रखी हो। सीज़ा धीरे-धीरे गाड़ी चलाता है, लगातार करीब पहुँचते, अपने इन्सानी बोझ को हिलाते हुए। रोशनी की राह में चार आकृतियाँ आगे आती हैं, और रुक जाती हैं। वह भी रुक जाता है। दस गज़ से कम की दूरी पर धाल के कण, पत्तों के टुकड़े और छालों की छीलन लाईट में चार शेरनियों दिख रही थीं। उनकी आँखें चौड़ी हैं, पीली, रोशनी के

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