सुसमाचार का मार्ग
By Ben Shryock
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About this ebook
क्या आपने कभी सोचा है "गॉस्पल" है क्या? यह हमारे दोस्त जीसस की सच्ची कहानी है। अब आप जीसस की सरल, सच्ची कहानी को इस ईबुक में पढ़ सकते हैं। "गॉस्पल रोड" में दिए गए संदेश आपको प्रोत्साहन, शांति और जीवन का एक साफ मकसद उपलब्ध कराएँगे - अगर आप उनको स्वीकार करते हैं।
इसके सात पाठ आपको भूतकाल और भविष्य की घटनाओं के बारे में बताते हुए आपका मार्गदर्शन करेंगे जिसमें सरल भाषा में जीसस के गॉस्पल को स्पष्टता से समझाया जाएगा। इस ईबुक को खास तौर पर उन पाठकों के लिए लिखा गया था जिनको यह नहीं पता है कि जीसस कौन हैं और जो बाइबल से परिचित नहीं हैं; वैसे, यह उनके लिए भी एक मूल्यवान साधन है जो इस समय जीसस और उनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
इस ईबुक को पढ़ने से इन सामान्य सवालों के जवाब मिल जाएँगे:
- जीसस कौन हैं?
- हमारी यह धरती इतनी सुंदर और कष्ट देने वाली क्यों है?
- मेरी मौत के बाद मेरे साथ क्या होने वाला है?
- क्या धरती के अलावा भी कहीं कोई और जीवन है?
- परमेश्वर मुझसे क्या चाहते हैं?
- जीसस क्राइस्ट की गॉस्पल क्या है?
पाठ के शीर्षक इस प्रकार से हैं:
1) जानिए धरती से पहले कौन और किसका अस्तित्व था।
2) समझिए हम कहाँ से आए।
3) धरती पर हुए पहले युद्ध की जानकारी और किसकी हार हुई थी, इसे पढ़ें।
4) मानव जाति को स्थायी विनाश से बचाने के लिए बचाव की योजना के बारे में जानें।
5) उन दो विपरीत पक्षों पर ध्यान दें जो आपके फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं।
6) इस बात को समझकर प्रोत्साहित हों कि कैसे आप आज से ही एक सार्थक, प्रेम भरा जीवन जी सकते हैं।
7) जीवन के तूफानों के बीच सच्ची शांति की तलाश करें।
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सुसमाचार का मार्ग - Ben Shryock
सुसमाचार
का मार्ग
जीवन के सबसे बड़े प्रश्नों के उत्तर
…कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे।
कुलुस्सियों 1:18
लेखक
बेन श्रेयोक
गॉस्पल रोड पब्लिशिंग
यूबा सिटी, कैलिफ़ोर्निया 95992
संयुक्त राज्य अमेरिका
परिचय
हमारे पास बताने के लिए शुभ सन्देश है! सुसमाचार का मार्ग
में दिए गए संदेश आपको जीवन में प्रोत्साहन, शांति और स्पष्ट उद्देश्य प्रदान करेंगे — यदि आप उन्हें स्वीकार करते हैं। हमारी कहानी अन्य किसी भी कहानी से बहुत अलग है जो अब तक आपने सुनी है — और हम इसे सन्दर्भ सहित बता रहे हैं; हम उन घटनाओं के बारे में बताएँगे जो अतीत में हो चुकी हैं और उनके बारे में भी जिनका भविष्य में होना निर्धारित है।
अब थोड़ा सा विवरण : हमारी कहानी को अच्छी तरह से समझने के लिए उसे आरम्भ से पढ़ें और क्रमानुसार आगे बढ़ें क्योंकि कुछ पात्र और घटनाओं का वर्णन केवल पहले के खण्डों में ही किया गया है।
इस कहानी में दिए तथ्यों के उद्धरण बाइबल
नामक पुस्तक में देखे जा सकते हैं। हमने अपनी स्रोत पुस्तक के रूप में बाइबल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की ओल्ड वर्शन री-एडिटेड, 2002, हिंदी बाइबल को चुना है। हर परिच्छेद के बाइबल उद्धरणों की सूची इस पुस्तक के अंत में दी गई है।
विषय-सूची
1 यह जानना कि पृथ्वी ग्रह से पहले कौन और क्या अस्तित्व में था
2 यह समझना कि हम कहाँ से आए हैं
3 पृथ्वी पर हुए प्रथम युद्ध के विवरण की समीक्षा और कौन हार गया.
4 मानव जाति को स्थायी विनाश से बचाने की बचाव योजना को जानें
5 उन दो भिन्न पहलुओं पर विचार करें जो आपके निर्णयों को प्रभावित करते हैं
6 यह जानकर प्रोत्साहित हों कि आप आज से कैसे एक अर्थपूर्ण और सुंदर जीवन का आरम्भ कर सकते हैं
7 जीवन की आँधियों के बीच सच्ची शांति पाएँ
1
यह जानना कि पृथ्वी ग्रह से पहले कौन और क्या अस्तित्व में था
इससे पहले कि पृथ्वी या कोई और ग्रह अथवा तारे सृजे जाते, तीन ईश्वरीय प्राणियों का एक बहुत प्यारा सा परिवार अस्तित्व में था। इस ईश्वरीय परिवार के सदस्यों में से प्रत्येक के एक समान चरित्र गुण हैं, जैसे : प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, नम्रता, भलाई, दया, न्याय, सच्चाई, दीनता और संयम। फिर भी हर एक का भिन्न व्यक्तित्व और भूमिकाएँ हैं, वैसे ही जैसे एक मानव परिवार में होती हैं। बाइबल इस ईश्वरीय परिवार को परमेश्वर
कहती है और प्रत्येक ईश्वरीय प्राणी को व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर
कहकर सम्बोधित करती है। इस ईश्वरीय परिवार के तीन सदस्यों को : पिता, और पुत्र और पवित्र आत्मा कहा गया है। ये सब एक साथ पूर्ण एकता में कार्य करते हैं और एक दूसरे से प्रेम रखते हैं।¹
यह ईश्वरीय परिवार एक वास्तविक स्थान स्वर्ग
में निवास करता है। स्वर्ग परमेश्वर का और स्वर्गदूत
नामक अन्य पवित्र प्राणियों का घर है। स्वर्गदूत ईश्वरीय प्राणी नहीं हैं, उन्हें परमेश्वर ने रचा है। स्वर्ग में एक सुन्दर नगर है। कई सामान्य वस्तुओं, जैसे पेड़, नदी और भिन्न-भिन्न प्रकार के फलों के अलावा ऐसी कई वस्तुएँ हैं जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखी, जैसे काँच के समान शुद्ध सोने से बनी सड़कें। स्वर्ग परमेश्वर का सिद्ध निवासस्थान है—एक ऐसा महिमामय और सुन्दर स्थान जैसा न तो पहले कभी हुआ और न कभी होगा!²
परमेश्वर और उसके राज्य के बारे में जानने को बहुत कुछ है, और परमेश्वर का धन्यवाद हो कि उसने हम सबसे यह प्रतिज्ञा की है कि जब हम अपने सम्पूर्ण मन से उसको खोजेंगे, तो उसे पाएँगे। यह बहुत अच्छा समाचार है क्योंकि इसका अर्थ है कि यदि आप अपने सम्पूर्ण मन से स्वर्ग के परमेश्वर को यत्न से खोजेंगे—इस खोज को उच्च प्राथमिकता देना और प्रयासरत रहना, जब तक सफल न हों—तो आप जानेंगे कि वह कौन है और आपके जीवन के लिए उसकी क्या योजनाएँ हैं। आप आज जहाँ भी हैं, चाहे जीवन की किसी भी स्थिति में हैं, आप परमेश्वर से एक मित्र के रूप में बातचीत कर सकते हैं। वह हर उस मनुष्य की पुकार सुनता है, जो उससे सच्चे प्रश्न पूछता है और उसके बारे में और अधिक जानने के लिए उसकी सहायता मांगता है। जब हम परमेश्वर के बारे में और अधिक जानना जारी रखते हैं तो साथ ही साथ हम उसके धन्यवादी भी रह सकते हैं कि उसने हमसे अनंत प्रेम से प्रेम किया है; इससे पहले कि हम उसके बारे में कुछ जान भी पाते। हमारा स्वर्गीय परिवार हमारे साथ प्रेममय सम्बन्ध स्थापित करने को उत्सुक है।³
2
यह समझना कि हम कहाँ से आए हैं
उन लोगों के साथ जो हम से प्रेम करते हैं अपने अनुभवों को बाँटना हमेशा इस बात से भला होता है कि हम जीवन की घटनाओं का अकेले अनुभव करें। परमेश्वर निरंतर देता रहता, बाँटता और प्रेम करता है। परमेश्वर ऐसे विशाल परिवार के साथ आनंदित होता है जिसके साथ वह अपने अनुभव और प्रेम को बाँट सके; जैसे बहुत से माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अपने जीवन के अनुभव बाँटने में ख़ुशी मिलती है।⁴
पृथ्वी को रचने से पहले, परमेश्वर स्वर्ग में अनेक पवित्र स्वर्गदूतों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहता था। परमेश्वर द्वारा सृजा गया एक प्रधान स्वर्गदूत, जिसको उसने सबसे अधिक ज़िम्मेवारियाँ सौंपी थीं, उसका नाम लूसिफ़र था। दुःख की बात है कि लूसिफ़र उन अविश्वसनीय क्षमताओं के कारण, जिसके साथ परमेश्वर ने उसे रचा था, घमंड से भर गया। लूसिफ़र घमंड और स्वार्थ से इतना भर गया कि उसने सोचा कि वह स्वर्ग के राज्य को परमेश्वर से भी बेहतर रीति से सम्भाल सकता है।⁵
लूसिफ़र का विद्रोह यहाँ तक बढ़ गया कि जिस प्रकार परमेश्वर अपने राज्य का शासन करता था उसके विषय में वह दूसरे स्वर्गदूतों पर अपना संदेह व्यक्त करने लगा। समस्त सृष्टि में लूसिफ़र पहला सृजा प्राणी हुआ जिसने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया—ऐसी बातें करना जो परमेश्वर के सिद्ध नैतिक नियमों के विरुद्ध थीं। लूसिफ़र के पाप का उदाहरण स्वर्ग के अनेक ऐसे दूतों में भी फैल गया जिन्होंने अपने सृजनहार पर भरोसा रखने की बजाय लूसिफ़र की बातों पर विश्वास किया। हम इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि परमेश्वर जो युगानुयुग दयालु परमेश्वर है, उसने लूसिफ़र और उसके उन विद्रोही दूतों की ओर जो उसके साथ विद्रोह में सम्मिलित थे, अवश्य अपनी दया का हाथ बढ़ाया होगा, और उसने उन्हें पश्चाताप करने तथा घमंड और स्वार्थ से मन फिराने का अवसर दिया होगा—लेकिन उनमें से बहुतों ने मना कर दिया। अब परमेश्वर के पास एक ही विकल्प था कि स्वर्ग से पाप की जड़ को निकाल दे, इसलिए उसने और उसके बचे हुए निष्ठावान स्वर्गदूतों ने लूसिफ़र और उसके अनुयायियों को स्वर्ग से निकाल फेंका।⁶
दुःख की बात है कि एक-तिहाई स्वर्गदूत भरमाए गए और वे परमेश्वर की बजाय लूसिफ़र की बातों का विश्वास करने लगे और उसके पीछे चल पड़े। इन स्वर्गदूतों को स्थायी रूप से स्वर्ग से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने स्वयं को रचनेवाले और प्रेम करनेवाले परमेश्वर को छोड़कर नए विद्रोही नेता पर भरोसा करना चुना था। पहले पाप का आरम्भ स्वर्ग में हुआ जिसके परिणामस्वरूप परमेश्वर के बहुत से निकट मित्र उससे अलग हो गए।⁷
स्वर्ग में घटी इस दुखदायी घटना के बाद, परमेश्वर ने पृथ्वी
नामक नए