परमेश्वर मेरे बारे में क्या सोचते हैं
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“यह पुस्तक प्रत्येक हिंदी — भाषी पाठक के हृदय को बाइबल के इस सच के द्वारा स्पर्श करना चाहती है कि परमेश्वर उस भाई या बहिन के विषय में क्या सोचते हैं।’’
tiaan gildenhuys
Tiaan Gildenhuys has been in full-time ministry as an evangelist since 2003. He has ministered across church-denominational borders in South Africa, Namibia, Zimbabwe, Botswana, Swaziland, Malawi and Scotland, and wherever else the Lord Jesus Christ may send him. He and his wife also lead regular spiritual tour groups to Israel. In 2014 he received an Honorary Doctor of Divinity Degree from Team Impact Christian University in Baton Rouge, Louisiana, USA, as a result of the work he has done in the Kingdom. He has published 43 books, and a large number of CD's and DVD's both in Afrikaans and English, which can be viewed at www.oicb.co.za under: "eshop/tiaan gildenhuys". He also has an active YouTube channel which can be viewed at:https://www.youtube.com/channel/UCBtAiDFZJm09SFs3N6b0IAAll honour and glory for all this goes only to our Lord Jesus Christ of Nazareth!
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परमेश्वर मेरे बारे में क्या सोचते हैं - tiaan gildenhuys
कौन जानता है कि परमेश्वर क्या सोचते हैं?
‘‘क्या किसी के भीतर ऐसा साहस है कि वह ऐसा विचार करे कि परमेश्वर पृथ्वी पर किसी भी चीज के बारे — में या —किसी भी मनुष्य के लिए क्या सोचते हैं।’’ जी हां‚ अगर मैं अपनी बाइबल अच्छे से पढ़ता हूं तो मैं कह सकता हूं कि मैं ऐसा सोचने का साहस करता हूं।
परमेश्वर हमारे बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि परमेश्वर स्वर्ग में बैठे मनुष्य के ऊपर ध्यान लगाते हैं। वर्षों से कई लोग इस निराले तथ्य को समझ पाने में असमर्थ हैं कि क्या परमेश्वर कभी हमारे बारे में सोचते भी हैं। क्या सचमुच वह हमारी व्यक्तिगत और निजी देख रेख में रूचि रखते हैं। क्या वास्तव में वह हमारी देखभाल करते हैं या नही‚ इस बारे में लोग अपनी अलग — अलग राय रखते हैं। । ‘‘क्या वह हमसे इतने दूर विराजमान कोई अस्तित्व है जिन्होंने इस छोटी सी दुनिया को बना डाला और हमें खुद के भरोसे छोड़ दिया?’’
एक तर्क अक्सर दिया जाता हैः ‘‘कि वह इतने सर्वशक्तिशाली हैं या इतने व्यस्त हैं कि हममें रूचि रखने के लिए वह स्वयं कभी नीचे नहीं उतरेंगे!’’ यह तर्क इस बात से संतुलित किया जा सकता है कि जैसे टेलीफोन को खोजने वाला अपनी ही बढ़िया खोज को त्याग दे और दूसरे प्रतियोगियों की ओर मोड़ दें कि वह उसके संदेशों को आगे ले जाएं। जी नहीं, ऐलेक्जेंडर ग्राहम ने अपनी खोज पर काम करते रहना तय किया और उस पर और अधिक काम करते गए ताकि उनकी खोज इतनी विकसित हो जाए और उस उद्देश्य को पूरा करे जिसके लिए वह बनाई गयी थी। उतनी सीमा तक इसका विस्तार हो।
उसी तरह से परमेश्वर ने हम सभी को एक खास उद्देश्य से रचा है और उनका अभिप्राय है कि वह हमारे भीतर अंततः उस उद्देश्य को पूरा होते देखें जिसके लिए हम बनाए गए हैं। उतने स्तर तक प्रगति करें जितना वह चाहते हैं। ‘‘क्या उन्होंने हमें रोबोट के समान रचा है कि हमारी प्रोग्रामिंग उनके हाथों में होती और अपनी इच्छानुसार जैसा चाहते हमें चलाते?’’ नहीं! साथियों! बाइबल के बिल्कुल आरंभ के हिस्सों से स्पष्ट है कि परमेश्वर हमारे बारे में क्या सोचते हैं तथा यह भी स्पष्ट है कि उन्होंने हमें रोबोट नहीं बनाया। उत्पत्ति के समय से ही परमेश्वर ने हमारे बारे में बहुत, बहुत खास तरीके से सोचा। आइए, देखते हैं कि बाइबल उस खास तरीके के लिए क्या कहती है जिस प्रकार परमेश्वर हमारे लिए सोचते हैं:
फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। (उत्पत्ति 1:26)
जितना अधिक मैं उत्पत्ति पुस्तक के इस पद को पढ़ता हूं, उतना अधिक मैं अपने विचारों में पिता, पुत्र एवं पवित्र आत्मा (पवित्र त्रिएकत्व) को एक स्वर्गिक भव्य विशाल मेज के आसपास बैठे देखता हूं जो मनुष्य की उत्पत्ति के विषय में विचार — विमर्श कर रहे हों। यह देखना भी रोचक होगा कि यहां इब्रानी भाषा के ‘‘इलोहिम’’ शब्द का अनुवाद ‘‘परमेश्वर’’ के रूप में किया गया है। मूल भाषा में इसका अर्थ है: ‘‘अभिन्न पराक्रमी,’’ अर्थात यह पवित्र त्रिएक परमेश्वर के विषय में लिखा गया है। अपने रचयिता को पूरा आदर व सम्मान देते हुए, हम इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे यह उनकी ‘‘योजना कमेटी की मीटिंग’’ थी।
छोटे से एक ही पद में कहे वचन से ही साफ हो जाता है कि उत्पत्ति के आरंभ से ही परमेश्वर के भीतर सृष्टि को लेकर एक निश्चित विचार व योजना थी। फंक एवं वेगनेल की स्टैंडर्ड डिक्शनरी के अनुसार (इंटरनेशनल संस्करण) में प्रतिरूप का अर्थ होता है: ‘‘किसी चीज का दिखाई देने वाला स्वरूप; एक स्वाभाविक समानता; मिलती जुलती चीज, दिमाग में किसी चीज का ऐसा ख्याल जो अभी साक्षात महसूस नहीं की जा सकती है।’’ इसी डिक्शनरी में ‘‘समानता’’ की परिभाषा दी हुई है: ‘‘एक जैसे गुण होना या समान अवस्था वाले, समानता, एक चित्रण, एक प्रस्तुतीकरण।’’ इन सब से यह स्पष्ट होता है कि परमेश्वर ने योजना बनाई थी कि मनुष्य पृथ्वी पर उनका प्रतिनिधि बनाकर रखा जाएगा। डिक्शनरी ‘‘प्रतिनिधि’’ का अर्थ बतलाती हैः ‘‘उस अधिकार से कार्य करने वाला, जो किसी के बदले प्रतिनिधि बनकर कार्य करने योग्य हो।’’ ‘‘प्रतिनिधि’’ को ऐसे परिभाषित किया जा सकता है: ‘‘जो किसी के बदले कार्य करता हो....’’ क्या यह अचरज की बात नहीं है? परमेश्वर चाहते हैं कि हम उनका प्रकट रूप कहलाएं ताकि हम उनके समान हों — इस पृथ्वी पर उनकी समानता में दिखाई देवें। साथ में इस पृथ्वी पर उनकी तरफ से कार्य करने के लिए वैसी ही सामर्थ हमारे भीतर मौजूद हों!
क्या आप यह बात सच में जानते हैं मैं (नये व पुराने) दोनों प्रकार के मसीही भाइयों से मेरा प्रश्न है? क्या आप सच में जानते हैं कि परमेश्वर आपके बारे में क्या सोचते हैं? परमेश्वर को लेकर आपकी जो पुरानी धारणा है और वास्तव में जिस दृष्टि से वह हमें देखते है, उस बारे में आप अपने विचार बदलने के लिए तैयार हैं। अपने विचार नये बनाए जाने के लिए तैयार हैं?
मैं आपको चुनौती देता हूं कि क्या थोड़ी देर के लिए आप अपनी पुरानी धारणाओं को अलग रख देंगे? और उन बातों को जो मैं इस पुस्तक में लिखता हूं, परमेश्वर की पवित्र आत्मा आपकी आत्मा से कहे, ऐसा होने देंगे........
ऊपर जो पद लिखा गया है, उसके अनुसार हम पृथ्वी पर परमेश्वर के दिखाई देने वाले प्रतिनिधि हैं। क्यों दिखाई देने वाले प्रतिनिधि हैं? क्योंकि परमेश्वर आत्मा हैं और उन्हें स्वाभाविक आंखों से देखा नहीं जा सकता!
‘‘परन्तु वह