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जीवन जीना कैसे सीखें
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जीवन जीना कैसे सीखें

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एक सफल जीवन जीने के लिए, मनुष्य के लिए जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होना सबसे पहले आवश्यक है. वास्तव में, एक आदमी का जीवन विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों से भरा है. कभी-कभी ऐसा लगता है कि जीवन का धागा हमारे हाथों से फिसल रहा है, कुछ भी नियंत्रण में नहीं है और हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं, ऐसी स्थिति में हमें एक सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, एक सकारात्मक सोच और एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास। यह पुस्तक इन विचारों को संदर्भित करती है जिसके द्वारा समय के संबंध में एक इंसान खुद को एक सकारात्मक ऊर्जा दे सकता है, वह जीवन में आगे बढ़ सकता है और आसानी से अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है.

Languageहिन्दी
Release dateOct 15, 2023
ISBN9798890084927
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    जीवन जीना कैसे सीखें - मनीष मंज्या

    अध्याय 1

    जीवन को पहले समझे फिर जीना शुरू करें

    यदि मनुष्य जीवन की वास्तविकता को समझ ले और उसके बाद जीना शुरू करें तो उसके लिए जीवन बहुत आनंदायक हो जाता है यहाँ तक कि यदि उसके सामनें कोई गंभीर समस्या भी आती है तो वह उस समस्या से सहजता के साथ लड़ने में समर्थ हो जाता है ।

    हम अपने जीवन में जो कार्य कर रहे है क्या हम उससे संतुष्ट है ? यदि हाँ तो हम इतने परेशान क्यों रहते हैं ? यदि हम खुश नहीं है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं ? हम कुछ पैसों के लिये काम कर रहे है और अपना कीमती समय वहाँ दे रहे है मान ले यदि वो पैसा कोई व्यक्ति दे देता तो वो अपना कीमती समय कहाँ देना चाहेंगे ? दूसरा प्रश्न ये है कि जीवन जीने के लिए धन की जरूरत कितनी हो सकती है, जरा एक पल के लिए रुकिए और विचार कीजिये । हम हवाओं की तरह बहे क्यों जा रहे है धन को लेकर, मेरा मतलब ये नहीं है कि हमारे लिए धन की जरूरत नहीं है, लेकिन धन के विषय में इतना तो जरूर कहना चाहूंगा कि हमारे लिए धन की आवश्यकता उतनी ही है जितना कि भोजन में नमक का । यदि नमक की मात्रा ठीक है तो भोजन का स्वाद अच्छा होता है ठीक उसी प्रकार धन का भी जीवन में उतना ही महत्व है यदि धन ज्यादा होगा तो जीवन का भी स्वाद बिगड़ सकता है अर्थात हम कह सकते है कि जीवन में धन का भी संतुलन होना जरूरी है ।

    प्रायः इस भाग दौड़ की जिंदगी में हमारी समस्यओं का समाधान डॉक्टर के पास भी नहीं है । सामान्यतः इंसानों की जो बीमारियां है जैसे चिंता, तनाव, डर, घबराहट, बेचैनी, याद्दाश्त कमज़ोर होना, जल्दी गुस्सा होना, उदास रहना इत्यादि सच तो यह है कि हमनें जिंदगी को जीना सीखा ही नहीं । मुझे याद है जब स्नातक के प्रथम वर्ष में था तो मैं एक किताब पढ़ रहा था उसमें एक कवि ने बहुत ही खूबसूरत उदाहरण दिया था वही उदाहरण मैं आपके साथ साझा करता हूँ । जब आँख बंद कर के गुलाब का फूल तोड़ने का प्रयास करेंगे तो कांटे तो चुभेंगे ही यदि गुलाब का फूल तोड़ने से पहले हम उनके तरीको से अवगत हो जाये अर्थात कांटे और फूल के बीच की दूरी जान ले उसके बाद ही गुलाब के फूल को सहजता से तोड़ सकेंगे इसी प्रकार जीवन भी हैं जीवन को बिना जाने, बिना समझे और सीखें बगैर जीने लग जाएंगे तो समस्याओं का सामना करना बहुत मुश्किल हो जाएगा ।

    दूसरा उदाहरण लेते है मान लीजिये आपको शहद पाने की इच्छा है इतना तो आपको विश्वास रखना होगा कि मधुमक्खियाँ काँटेगी ही । इसी प्रकार जीवन में यदि आप किसी बड़े काम को करने जा रहे है तो मुश्किलें आएंगी ही लेकिन आपको उसका सामना कैसे करना है ये जानना बेहद जरूरी है । आज कल सोशल मीडिया का जमाना है हर कोई इसका इस्तेमाल कर रहा है । जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है लोग एक-दूसरें से आगे जाना चाहते है लेकिन किधर जाना है कुछ लोग ही जानते है बाकी सभी बस भाग रहे हैं उनके जीवन में कोई गंतव्य मालूम नही होता है कि कहाँ पहुँचना है बस चले जा रहे है जिस व्यक्ति के जीवन में कोई मंजिल नहीं है कोई लक्ष्य नहीं है वो व्यक्ति कहीं नहीं पहुँच सकता है, वह चिठ्ठी जिस पर कोई पता ही नहीं है वह कहाँ जाएगी, कहीं नहीं वहीं रह जायेगी । इसलिए हमारे जीवन में निश्चित लक्ष्य होना जरूरी है । उसके बाद उस लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते है । बचपन में जो कुछ भी हमें बताया गया है चाहे वो गलत हो या सही बस हम उसे स्वीकार करते चले जाते है जैसा कि हमारे परिवेश में बोला जाता है वैसे ही हमारी भाषा शैली हो जाती लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ना शुरू होता है उसी के मुताबिक सोचना शुरू कर देते है और अपने जीवन को जीने लगते है समाज में जो भी घटनायें हमारी आँखों के सामने होती है, जो हमारे आस-पास ध्वनि गूँजती है वो हर क्षण हमें प्रभावित करती रहती है लेकिन उस वक्त हमें एहसास तक नहीं होता कि जो हम सुन रहे हैं या देख रहे हैं उससे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, हमें दुःख इस बात का है जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो बच्चा किसी के शब्दों को नहीं समझता है वह तो बस उस वक्त अपनी माँ के भावनाओं से जुड़ा होता है और बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है बच्चे के सामने ही माता-पिता एक बार नहीं सैकड़ों बार आपस में झगड़े करने लग जाते हैं गलत शब्दों का उपयोग करने लगते हैं बच्चा सब कुछ अपनी आँखों से उनके व्यवहारों को देख तथा अपनी कानों से सुन रहा होता है धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होता चला जाता है वही आदतें उसके जीवन शैली में भी परिलक्षित होने लगती हैं इसलिए ये जिम्मेदारी माँ-बाप की होती है कि वे अपने बच्चे को अच्छे गुण और संस्कार दें ।

    एक बच्चा जब चौदह-पंद्रह साल का हो जाता है चाहे वो लड़का हो या लड़की उसके शरीर में (बदलाव) नए-नए हार्मोन्स बनने शुरू हो जाते है और यही लड़के या लड़की अपने से विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होने लगता है जो मनुष्य की प्रकृति है परंतु यह उम्र ऐसी होती है कि यदि विचार उस वक्त नकारात्मक हो जाए तो जल्द ही वह गलत दिशा में जाने लग जाता है और जब वही लड़का कोई बड़ा अपराध कर देता है या कोई बड़ी गलती कर देता है तो उसी के परिवार वाले उसे बुरा भला कहने लग जाते हैं समाज गलत नजर से उसको देखने लगता है लेकिन मेरा मानना है कि इसमें उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं, यदि वह अपराधी भी है या कोई बुरा काम किया है तो प्रश्न ये है कि उसको अपराधी या बुरा किसने बनाया है ? दरअसल उसका परिवार, उसका समाज पूर्ण रूप से इसके लिए जिम्मेदार है, न कि वो व्यक्ति जिसने अपराध किया । जब वह व्यक्ति बचपन से लेकर युवा होने पर हर वो विचार जो दूसरों से स्वीकार करता चला आ रहा है जब उसका कोई भयानक परिणाम आता है तो अचानक उसको होश आता है और उसे तभी सही या गलत में फर्क नजर आने लगता है इसलिए क्योंकि वह अपने जीवन में नकारात्मक विचारों के साथ इतना उलझ चुका है कि वो उस परिस्थिति से बाहर निकलना चाहता है लेकिन वह बार-बार ठोकरें खाता है उसको ऐसा लगता है वह जहाँ जाना चाहता है उस दिशा में कोई अब साथ नहीं दे रहा वह हर पल अपने को अकेला महसूस करता है, उदास रहता है कई दफा ऐसा हो जाता है कि खुदकुशी करने तक वो निकल पड़ता है । जब वह हताश और निराश हो जाता है तब अपने जीवन के अतीत के तरफ मुड़ कर देखने का प्रयास करता है फिर सोचता है कि मैं ऐसा कैसे हो गया मैं इतना बुरा कैसे हो सकता हूँ वो अपने बीते हुए समय को बार- बार याद करता है उसके बारे में सोचता है जब उसको होश आ जाता है तो उसके अंदर जीवन को जानने की इच्छा जागृत हो जाती है । वह व्यक्ति धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा की ओर कदम बढ़ाने लगता है उसको ये ज्ञान हो जाता है जब मुझे इतना बुरा बनाया जा सकता है तो मैं अपने को बेहतर भी बना सकता हूँ फिर वह इस बहुमूल्य जीवन को सीखने और समझने की ओर अग्रसर हो जाता है अथक प्रयास करता है लेकिन बार-बार वह असफल हो जाता है क्योंकि उसके नकारात्मक विचार उस पर बार-बार हावी हो जाते है । लेकिन जब वह संकल्प ले लेता है मुझे एक चरित्रवान और गुणी व्यक्ति बनना है तो उस दिशा में निरंतर आगे बढ़ना शुरू कर देता है अब वह व्यक्ति अच्छे लोगों से संपर्क करना शुरू कर देता है जो गुणी है जो जीवन में अच्छे कार्य कर रहे हैं । प्रायः इस जीवन यात्रा में हमें दूसरों से ज्यादा पहले अपने आप की जरूरत है भाई-बहन, पिता-पुत्र, पति-पत्नी, सभी एक-दूसरें से दूर होते जा रहे हैं, हम जो बात अपने मित्रों से करते है वही बात अपने परिवार वालों के साथ नहीं कर सकते क्योंकि हमारी मानसिकता ही इतनी गलत हो चुकी है, सभी समझाने की ही कोशिश में लगे हुए हैं एक-दूसरे को समझने के लिए कोई तैयार नहीं, हमें तो लगता है कि सबसे पहले किसी भी चीज को, (कहने का मतलब वो चीज कुछ भी हो सकता है) समझने की कोशिश करनी चाहिए उसके बाद ही कोई उचित सलाह मशवरा हो तो देना चाहिए ।

    सब कुछ तेजी से बदल रहा है समय के साथ वस्तुओं की महंगाई भी बढ़ रही है यदि अपने आप को समय के साथ नहीं बदलते है तो समस्याओं का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए क्योंकि इससे बच नहीं सकते । आज के समय में सोशल मीडिया उस प्रत्येक एक व्यक्ति (विद्यार्थी) के लिए लाभप्रद होने के साथ-साथ कई मामलों में नुकसानदायक भी है यदि वह बुद्धिमत्ता से इसका उपयोग नहीं करता है । सोशल मीडिया उसके जीवन में खतरनाक साबित हो सकती है जिसका परिणाम उसको आने वाले समय में दिख जाएगा । सोशल मीडिया का सदुपयोग करना सीखें अन्यथा इससे दूर ही रहे तो बेहतर है तब तक के लिए जब तक कि आप अपने लक्ष्य की प्राप्ति न कर ले क्योंकि यह आपकों गलत दिशा में ले जा सकता है जैसे किसी भी कंपनी की एडवरटाइजिंग के लिए अश्लील तस्वीरे प्रयोग में लाया जाना यही नहीं मूवी में तो अश्लीलता है ही साथ-साथ अश्लील गाने भी हो गए जिनसे हमें दूर रहने की जरूरत है क्योंकि हर क्षण हमारे ऊपर इसका प्रभाव पड़ रहा है ।

    हमारे आस पास समाज में अक्सर देखने को मिलता है लोगों के बीच झगड़े हो जाते है और हम क्या करते हैं खड़े होकर देखना शुरू कर देते है, वैसे ये मेरी पुरानी आदत थी जब हमें इस बहुमूल्य जीवन के बारें में समझ आया तो, मन में सैकड़ो सवाल उत्पन्न हो गए, मैं कहाँ खड़ा हूँ ? क्या सुन रहा हूँ ? किसको सुन रहा हूँ ? क्या देख रहा हूँ ? इसके क्या परिणाम होंगे ? उस झगड़े में एक-दूसरें के ऊपर अभद्र बातें कहीं जा रही है । ये एक-दूसरें के ऊपर चिल्ला रहे हैं और विवाद कुछ नहीं बस समाज में रहने वाले छोटे बच्चे आपस में झगड़े कर लिए इसके लिए इतना सब हो गया । ऐसी ही छोटी उलझने सभी जगह देखने में नजर आती है । इससे बचने की जरूरत है ।

    "अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के स्तर पर नहीं सुलझा सकते जिस स्तर पर हमने उसको पैदा किया था"

    अपने जीवन को सीखने या समझने के लिए दो मार्ग है ।

    पहला मार्ग- हमकों एक योग्य शिक्षक या गुरु की तलाश करनी चाहिए जो अनुभवी हो जिनके विचार पवित्र, ऊँचे और प्रभावशाली हो तथा वो जीवन को समझते हो, उसने जीवन में अच्छे कार्य किये हो एवं दूसरें व्यक्तियों के लिए वह एक प्रेरणा हो । ऐसे व्यक्ति के पास हम जा सकते है, जो हमारे मन में चल रहे विचारों को समझ सके, हमारी उलझनों को समझे साथ ही हमारे साथ वह मित्रवत व्यवहार करें ताकि हम निडरता के साथ अपनी बात उनसे कह सके तथा उनके मार्ग दर्शन में जीवन को समझकर जिस लक्ष्य का हमने चयन किया हुआ है उस पर दृढ़ संकल्प लेकर अग्रसर हो सकते है ।

    दूसरा मार्ग- ये मार्ग थोड़ा कठिन मार्ग है इस समय जो भी हमारी उम्र हो रही हो, हम जो भी कार्य कर रहे हो उससे सबक लेकर हम जीवन की वास्तविकता को समझ सकते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर लोग जीवन को सीख या समझ नहीं पाते हैं और इनको छोटी-छोटी ठोकरें हमेशा लगती रहती है इस प्रकार से ये जीवन को जी रहे होते है ये सोचते है अब जीवन तो ऐसा ही है वे जीवन के मूल्यों को कभी समझ नहीं पाते और ना ही समझने या जानने का प्रयास करते है और अन्तोगत्वा वो मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । इन्हीं में से कुछ लोगों को बड़ी ठोकरे लग जाती है जीवन में तब ये प्रश्न करना शुरू करते है मेरे साथ ऐसा कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? यदि ये घटना हुई तो मैं अभी तक जीवित कैसे हूँ ? इनके ह्रदय में ऐसे बहुत सारे विचार आने लगते हैं और उसके बाद ये जीवन के सन्दर्भ में प्रश्न करना शुरू करते हैं, मैं कौंन हूँ ? मेरे इस जीवन का उद्देश्य क्या है ? इस तरह के जब विचार

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