अंतरिक्ष के दैवीय भगवान - अब्राहम की बेवकूफ़ियाँ: अंतरिक्ष के दैवीय भगवान
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इतने सुदूर भविष्य में, जहाँ कुछ भी किया जा सकता है, एक बेहद अमीर, लेकिन सठियाए हुए विलन अब्राहम गोल्डस्टाइन को एक चालाक वैज्ञानिक जैक ब्राउन धोखा देता है और अब्राहम से पैसा ऐंठ कर एक ऐसे "गुप्त" प्रोजेक्ट पर काम करता है जिससे वह स्वर्ग जाकर ईश्वर से मिल सके! आश्चर्यजनक रूप से वह मशीन काम करने लगती है और अब्राहम को पता चलता है कि ईश्वर की मौत हो चुकी है और अपने आत्महत्या के खत में यहोवा ने एक दिमाग पर कंट्रोल करने वाली चिप का डिज़ाइन रख छोड़ा है जिससे उसने कांस्य-युग को इंसानों को भरोसा दिला दिया था कि वही ईश्वर है।
उस डिज़ाइन को लेकर अब्राहम को एक नए प्रोजेक्ट का आइडिया आता है : एक ऐसी कांस्य-युगीन दुनिया बनाई जाए जिसमें वह "ईश्वर" बनकर वहाँ रहने वालों पर राज करे। इस दौरान कई मज़ेदार हादसे होते हैं जिनमें शामिल हैं - गुर्गों की यूनियन का झगड़ा, गलत कैलेंडर देख लेना, अंतरिक्षीय लेसर खराब हो जाना वगैरह। अब्राहम का दिमाग खराब होता जा रहा है औरवह सबकुछ गड़बड़ करता ही रहता है, वह दुष्ट विलन है, उसके गुर्गे मूर्ख हैं और अब्राहम खुद भी कुछ कम नहीं। तभी एक पागल औरत आती है और अब्राहम की बेवकूफ़ियों को खत्म कर देती है!
Martin Lundqvist
Martin's background Martin is a Swedish male born in 1985 He has lived in Australia since 2012, and has been with his partner Elaine Hidayat since 2013. Martin's writing history Martin wrote wrote his first book, the psychological crime thriller James Locker: The Duality of Fate back in 2013. After that Martin had a break from book writing for a couple of years. In late 2016, Martin decided to take up book writing again and he finished his Science Fiction novel The Divine Dissimulation a year later. In July 2018 Martin finished his third book, The Divine Sedition. which constitutes the second book in The Divine Zetan trilogy. In 2018 Martin also wrote a short-story for children Matt's Amazing Week and a parody novella called Divine Space Gods: Abraham's Follies In January 2019 Martin finished writing Divine Space Gods II: Revolution for Dummies Martin's style Martin is a multi-genre writer who likes to mix up his works. So far he has released works in the crime, science fiction, humor and children genre, and he intend to write more genres in the future to mix up his repertoire and improve his writing.
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Book preview
अंतरिक्ष के दैवीय भगवान - अब्राहम की बेवकूफ़ियाँ - Martin Lundqvist
चेप्टर 1 एक बहुत अमीर, गुस्सैल बुढ़ऊ को मरना नहीं है, और वह एक लगभग असंभव प्रोजेक्ट पर अनाप-शनाप पैसा खर्च करता है।
अमीर, बूढ़ा और गुस्सैल अब्राहम गोल्डस्टाइन अंटार्कटिका में अपने पेंटहाउस की छत पर खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था। उसका फ्लैट 3000 मीटर की ऊँचाई पर था, जहाँ से वह अपने सारे साम्राज्य को और बिलकुल क्षितिज के नज़दीक के समुद्र को भी देख सकता था। हालाँकि वह पृथ्वी का सबसे अमीर बूढ़ा था, पर वह खुश नहीं था। उसे और सम्पत्ति चाहिए थी, और ताकत चाहिए थी। लेकिन उसके इस प्लान में एक कमी थी और वह यह थी कि चूँकि अब्राहम 250 साल को हो चला था, वह जो जीवन-वर्धक गोलियाँ लेता था (जो पृथ्वी के सारे अमीर लोग लेते ही थे) उनका असर अब उसके शरीर पर होना कम होने लगा था। इतना अमीर और ताकतवर होने के बाद भी उसकी मौत पास आ रही थी।
लेकिन अब्राहम को अभी मरने की इच्छा नहीं थी, और उसके दिमाग में एक ऐसी बेहूदा और अविश्वसनीय बात घर कर रही थी जिस पर वह मरने से पहले अपना सारा पैसा खर्च करने वाला था ताकि उसके बर्बाद रिश्तेदारों को एक कौड़ी नहीं मिल सके। उसने दुनिया के सबसे अच्छे वैज्ञानिक जैक ब्राउन को एक गोपनीय
काम पर लगा दिया था, जिसमें गोल्डस्टाइन टॉवर के तहखाने में उसे एक बेहद महँगी और बहुत बड़ी मशीन बनानी थी। यह मशीन थी एक विशाल पार्टिकल रेप्लिकेटर यानि चीज़ों की ठीक वैसी कॉपी बनाने वाली मशीन, जिससे हमारे आयामों के बीच दरार पैदा होगी और इससे अब्राहम मरने से पहले ईश्वर से मिल सकेगा। आप देख सकते हैं कि यह बेवकूफ़ी-भरा काम था क्योंकि अब्राहम तो पहले ही 250 साल का हो चुका था और यदि वह बस अपनी जीवन-वर्धक गोलियाँ लेना बंद कर देता तो वैसे ही मर कर ईश्वर से मिल सकता था!
चेप्टर 2 अब्राहम उस बेहूदा महँगी मशीन को टेस्ट करता है और उसे पता चलता है कि ईश्वर की मौत हो चुकी है।
अगले दिन सुबह उठते ही अब्राहम ने सोचा कि वह लिफ़्ट से तहखाने में जाएगा, जैक ब्राउन से मिलेगा और जैक की बनाई हुई उस महँगी और खतरनाक मशीन को चलाकर देखेगा।
दुर्भाग्य से अब्राहम बिल्डिंग की मैनेजमेंट टीम को यह बताना भूल गया कि उसे सिर्फ़ खुद के इस्तेमाल के लिए लिफ़्ट चाहिए, और इसका नतीजा यह हुआ कि जहाँ उसे लिफ़्ट से तहखाने में जाने के लिए बस 5 मिनट लगने चाहिए थे, उसके बजाय उसे आधा घंटा लग गया क्योंकि हर मंज़िल पर लोग लिफ़्ट में चढ-उतर रहे थे। इससे उसका दिमाग और भी खराब हो गया!
आखिरकार वह तहखाने में पहुँच ही गया, और जैक ब्राउन से और उसकी टीम से मिला। अब्राहम ने कहा :
- तो क्या मेरी बहुत बड़ी बेहद महँगी गोपनीय मशीन तैयार है?
जैक को अपनी हंसी रोकने में तकलीफ़ हो रही थी। कोई बेवकूफ़ ही होगा जो सोचता होगा कि दुनिया की सबसे मशहूर इमारत के तहखाने में 1 किलोमीटर लंबी मशीन बनाने का काम गोपनीय रखा जा सकता है। पिछले कुछ सालों में, जबसे जैक ने काम शुरू किया था, जैक की टीम को शोर की हज़ारों शिकायतें मिली थीं, साथ ही उस जगह से हमेशा ट्रकों की लंबी कतार आती-जाती रहती थी क्योंकि निर्माण के दौरान सामान भी लगता था और खोद कर निकाले हुए मिट्टी और पत्थर भी हटाए जाने थे।
जैक ब्राउन ने मुश्किल से हंसी रोकी और कहा :
- जी सर, मशीन तैयार है।
अब्राहम :
- यार, इतने आसान सवाल का जवाब देने में इतना समय लगता है क्या? समय ही धन है! चलो, चलो! क्या तुमने मशीन चलाकर देखी है? मैं उसे चलाने वाला पहला आदमी बनना चाहता हूँ!
फिर एक बार जैक ब्राउन को हंसी रोकने में मेहनत करनी पड़ी। उसने उस मन से यात्रा करवाने वाली मशीन को कई बार चलाकर देखा था, कोई मूर्ख ही होगा जो अपने बॉस से कहे कि मशीन तैयार है, और उसने खुद उसे चलाकर भी न देखा हो!
जैक ब्राउन :
- आपके हुक्म के मुताबिक आप ही पहले आदमी होंगे जो इस बहुत बड़ी और खतरनाक मशीन को चलाएँगे।
अब्राहम गोल्डस्टाइन :
- बहुत अच्छे, मुझे ऐसे नौकर पसंद हैं जो हुक्म का आँखें मूँद कर पालन करते हैं और अपना दिमाग नहीं लगाते। चलो, शुरू करो।
जैक ब्राउन :
- जी, सर। वैसे, मुझे आपको बता देना चाहिए कि दैवीय आयाम में कोई बात तर्क पर नहीं चलती है, बल्कि जैसी उसकी मर्ज़ी हो वैसा होता है।
अब्राहम गोल्डस्टाइन :
- इस बेतुकी बात से मुझे कोई मतलब नहीं। तुम तो मशीन शुरू करो यार!
जैक ने अब्राहम को बैठाकर मशीन शुरू की और अब्राहम तुरंत गहरी नींद में चला गया। उसके मुँह से विचित्र आवाज़ें निकलने लगीं और उसका दिमाग एक तरह के आयामी तूफ़ान में चला गया और अचानक ही उसने खुद को एक खूबसूरत लेकिन डरावने आँगन में खड़ा पाया! यह अनुभव तो अच्छा था, लेकिन उसे कैसे पता चलेगा कि वह सच में स्वर्ग में आ गया है, और यह कोई आभासी खेल नहीं है? अब्राहम को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता यदि उसे पता चलता कि उसने 120 अरब, जो उसकी सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा था, किसी बहुत शानदार वीडियो गेम पर खर्च कर दिए हैं। उसे अपने निवेश पर अच्छी कमाई चाहिए थी, उसे अपने ईश्वर, यानि यहोवा से मिलना था जिससे वह उसके साथ शतरंज खेल सके।
अब्राहम उस महल के अंदर गया जो उस आँगन के दूसरे कोने पर बना था। वहाँ उसे एक बेहद आलीशान सिंहासन दिखाई दिया और उसके सामने चोगा पहने एक आदमी की लाश भी दिखाई दी। अब्राहम ने सोचा कि यह मरा हुआ आदमी यदि किसी तरह का देवता था, तो उसने इतना पैसा क्या यूँही खर्च किया है; लेकिन वह उस लाश के पास गया ताकि उसे ठीक से देख सके। मरने वाले ने बहुत सोच-समझ कर आत्महत्या से पहले एक खत भी लिख छोड़ा था!
उस खत में बहुत-सी उल्टी-सीधी बातें थीं, लेकिन उससे अब्राहम को यह ज़रूर पता चल गया कि वह मरा हुआ आदमी दरअसल यहोवा ही था। यह आदमी किसी दूसरे ग्रह का प्राणी था और उसने ज़ेटा ग्रह की दिमाग पर कंट्रोल करने की तकनीक के इस्तेमाल से पृथ्वी के प्राचीन काल के लोगों को यह भरोसा दिला दिया था कि वही ईश्वर है। अब्राहम भी ऐसा ही कुछ करने की फिराक में था, और उसे यह देख कर मज़ा आ गया कि यहोवा ने उस दिमाग पर कंट्रोल करने वाली तकनीक का सारा डिज़ाइन और नक्शा अपने सिंहासन के पास ही एक खंबे पर बनवा रखा था।
अब्राहम कई घंटों तक उस डिज़ाइन और नक्शे को देखकर उसे याद करने की असफल कोशिश करता रहा, फिर उसे याद आया कि उसके दिमाग में कई तरह की चिप लगी हुई हैं। उसे बस इतना करना था कि खंबे को देखता रहे और अपनी याददाश्त की चिप से उसकी एक फ़ोटो ले। जब वह अपनी प्रयोगशाला में लौटेगा तब वह फ़ोटो उसकी चिप में से निकाली जा सकेगी।
अब बस उसे अपने आयाम में लौटना था, तो अब्राहम इंतज़ार करने लगा। कई घंटों तक इंतज़ार करने के बाद उसे जैक पर गुस्सा आने लगा, तभी अचानक उसे एक झटका-सा लगा और वह अपनी तहखाने वाली प्रयोगशाला में लौट आया।
अब्राहम गोल्डस्टाइन :
- अबे गधे। मुझे वहाँ घंटों इंतज़ार करना पड़ा!
जैक ब्राउन :
- क्या सच? पर मशीन तो बस एक मिनट तक ही चली है।
जैक को फिर हंसी आ रही थी, क्योंकि उसे अच्छे से पता था कि मशीन से जुड़े होने पर एक मिनट भी एक हफ़्ते जैसा लगता है।
अब्राहम गोल्डस्टाइन :
- सच? अच्छा, तो मैंने जो समय वहाँ बिताया, वह बस एक मिनट था। ये तो कोई बात नहीं हुई! खैर। मुझे यह जानकर बड़ा अफ़सोस